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Bihar News: देश-विदेश में दुर्लभ मंजूषा कला का नवजागरण कर रहीं भागलपुर की अंजना, नई पीढ़ी को सीखा रहीं हुनर

बिहार के भागलपुर की अंजना कुमारी दुर्लभ मंजूषा चित्रकला के माध्यम से देश विदेश में धूम मचा रही हैं। मुगलों के आक्रमण के बाद से लुप्त हो रही इस कला को अंजना ने न सिर्फ सहेजा है बल्कि इसे नई पीढ़ी को भी सिखा रही हैं। अंजना द्वारा मंजूषा चित्रकला से सजाए गए उत्पादों की मांग देश से विदेश तक है।

By Jagran News Edited By: Mohit Tripathi Updated: Sun, 06 Oct 2024 07:13 PM (IST)
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देश-विदेश में मंजूषा कला का नवजागरण कर रहीं अंजना कुमारी।

ललन तिवारी, भागलपुर। बिहार के भागलपुर की अंजना देश-विदेश में मंजूषा कला का नवजागरण कर रही हैं। एक समय था जब अंग प्रदेश के अधिसंख्य घरों में यह कला जीवित थी।

मुगलों के आक्रमण के बाद इस कला पर अघोषित विराम लग गया, लेकिन नानी से सीखी मंजूषा चित्रकला को सहेज रहीं अंजना नई पीढ़ी को तन-मन से इसकी बारीकी व हुनर सिखा रहीं हैं।

अंजना द्वारा मंजूषा चित्रकला से सजाए गए उत्पादों की मांग देश से विदेश तक है। अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, रोमानिया, जापान आदि देशों में भी इस कला के पारखी उत्पाद की मांग कर रहे हैं। कोलकाता-मुंबई के व्यापारी मंजूषा से सजे उत्पाद खरीदकर दुनिया के कई देशों में भेजते हैं।

(बिहुला-विषहरी पूजा के लिए सजाया गया बारी कलश)

अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम मंदिर के शुभारंभ के अवसर पर ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय रामकथा मेला प्रदर्शनी में स्वदेश संस्थान द्वारा अंजना पुरस्कृत हो चुकी हैं।

बिहार सरकार ने भी इन्हें कई बार पुरस्कृत किया है। इनके नाम अबतक डेढ़ दर्जन से अधिक सरकारी-गैरसरकारी पुरस्कार हैं।

(बिहार सरकार से राज्य मेधा पुरस्कार पातीं अंजना)

रेलवे स्टेशन से सरकारी दफ्तरों तक मंजूषा वाल पेंटिंग

अंजना कुमारी ने मंजूषा चित्रकला के काम में नई पीढ़ी की 25-30 लड़कियों को लगाया है। ये अब छोटे-बड़े शहरों में मंजूषा से सजीं वाल पेंटिंग भी करती हैं।

रेलवे स्टेशन समेत कई सरकारी दफ्तरों की शोभा इनकी वाल पेंटिंग बढ़ा रही हैं। इस काम से हर माह इन्हें एक लाख रुपये से अधिक की आमदनी हो रही है। राज्य व केंद्र सरकार इनसे दूसरे शिल्पकारों-कलाकारों को ट्रेनिंग भी दिलवा रही है।

जीआइ टैग प्राप्त मंजूषा कला को अंजना ने कपड़ों, साड़ियों, पर्स, टेबल क्लाथ, टीवी-फ्रिज कवर, पेन स्टैंड व बेडशीट आदि में जगह दी है।

(लड़कयों को ट्रेनिंग देतीं अंजना)

नानी छोहाड़ा देवी से सीखी कला

रचनात्मकता और कला-शिल्प का केंद्र रहे चंपानगर भागलपुर का पौराणिक नाम में बिहुला-विषहरी पूजा के लिए कलश बनाने का काम अंजना की नानी छोहाड़ा देवी करती थीं।

उनसे यह कला उनकी बेटी निर्मला देवी ने सीखी। बाद में निर्मला देवी से यह कला उनकी बेटी अंजना कुमारी (32) ने सीखी।

विवाह के बाद अंजना ने इस कला को व्यावसायिक रूप देने का निर्णय लिया। ताकि इस चित्रकला के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ बड़ी संख्या में लोग इसे अपनाएं।

अंजना बताती हैं कि विषहरी पूजा के लिए कलश उनकी ननिहाल में ही बनाया जाता था। इस कारण बचपन से ही वे इस कला की खूबियों से प्रभावित हुईं।

(दिल्ली के प्रगति मैदान में मंजूषा कलाकृतियां देखतीं लोक गायिका मैथिली ठाकुर)

बिहुला-विषहरी, मनसा पूजा है मंजूषा का आधार

देश-दुनिया में पहचान बनाने वाली मंजूषा चित्रकला के बारे में कहा जाता है कि बिहुला-विषहरी, मनसा पूजा इसका आधार है। तब चंपानगर में बिहुला-विषहरी (मनसा) पूजन की शुरुआत के साथ यह कला लोगों में प्रचलित होने लगी।

ऐसी लोककथा है कि भगवान शिव की टूटी जटाओं से मैना, बिहुला, भवानी, विषहरी और पद्मा पांच बहनों का जन्म हुआ। ये पांचों मृत्युलोक में अपना पूजन चाहती थीं। तब भोलेनाथ ने उनसे कहा कि चंपानगरी के चांदो सौदागर यदि उनकी पूजा करें तो वे सर्वथा पूजनीय होंगी।

कथा के अनुसार, चांदो सौदागर के मना करने पर इन बहनों ने उसके छह पुत्रों को उनकी शादी की रात ही सांप से कटवाकर मार डाला। जब चांदो सौदागर के एक और पुत्र बाला लखंदर की शादी बिहुला से हुई, तब पहली रात को ही उसे भी सांप ने काट लिया।

इसके बाद सती बिहुला ने पति के शव को मंजूषा में रखकर 12 वर्षों की इंद्रलोक यात्रा की। कहा जाता है कि बिहुला ने स्वर्गलोक जाकर उसने अपने पति व छह जेठों के लिए जीवनदान मांग लिया था।

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