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Reels Addiction: 'पॉपकॉर्न ब्रेन' क्या है? बीमार कर रही रील्स की लत, उठाएं ये कदम, बचाएं बच्‍चों की ज‍िंदगी

ज्यादा समय तक मोबाइल देखने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। रील्स की लत आपके दिमाग को नुकसान पहुंचा सकती है। इसे पॉपकॉर्न ब्रेन कहा जाता है। इसमें ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई चिड़चिड़ापन नींद की कमी और नकारात्मक सोच जैसी समस्याएं होती हैं। इससे बचने के लिए इंटरनेट मीडिया से दूरी बनाएं योग करें और दोस्तों-परिवार के साथ समय बिताएं।

By Mihir Kumar Edited By: Mohit Tripathi Updated: Tue, 17 Sep 2024 06:41 PM (IST)
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कहीं आपको भी तो नहीं लग गई रील्स की बुरी लत। (सांकेतिक फोटो)
जागरण संवाददाता, भागलपुर। डिजिटल युग में बच्चे से लेकर युवाओं तक में मोबाइल का जबर्दस्त क्रेज है। खास कर युवा मोबाइल पर रील्स देखने के लती हो रहे हैं। जरूरत से ज्यादा समय तक मोबाइल देखने से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।

मानसिक रोग विभाग में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है। ऐसे मरीज बात-बात में आक्रोशित हो जा रहे हैं। किसी भी काम को आरंभ करते ही रिजल्ट चाहते हैं और बैचेन रहते हैं। चिकित्सक इसे पापकॉर्न ब्रेन की समस्या बताते हैं। यह समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है।

रील्स का असर दिमाग पर

इंटरनेट मीडिया पर रील्स का चस्का लोगों की परेशानी बढ़ा रही है। कुछ सेकेंड का वीडियो देखने में कैसे समय गुजर जाता है, किसी को कुछ पता नहीं चलता है।

दिमाग जो चीज देखना चाहता है वह रील्स में मिल जाता है। देखने के दौरान किसी को दिमाग लगाने की जरूरत नहीं होती है, तुरंत रिजल्ट भी आता है। इस वजह से यह तेजी से प्रचलित भी हुआ है।

यार दोस्त से रील्स की बातें भी लोग करते हैं। यानी सुबह से शाम तक रील्स के आसपास जिनका जीवन गुजरता है। धीरे धीरे वे इसके लती हो जाते हैं।

पापकार्न ब्रेन में दिखता है यह असर

पापकार्न ब्रेन का शिकार जो होते हैं, उसमें कई परिवर्तन देखने को मिलता है। इसमें ध्यान स्थिर नहीं रहता है। पढ़ाई , काम करने में ध्यान नहीं रहता है। किसी से बात भी करते हैं, तो ध्यान बार बार भटकता रहता है।

इंटरनेट मीडिया पर ज्यादा समय गुजारने वाले ज्यादा नकारात्मक सोचते है। स्ट्रेस और बैचेनी का शिकार रहते हैं। नींद की भी कमी होती है।

इसके शिकार लोगों की स्मरण शक्ति धीरे धीरे कमजोर होने लगती है। किसी भी चीज पर फोकस नहीं कर पाते हैं।

यह भी असर दिख रहा

इंटरनेट मीडिया में लगातार लोग उन चीजों को ज्यादा देखते हैं, जो उनको खुशी दे। ऐसे लोगों का दिमाग लगातार खुशी खोजता है। एक तरह से इस खुशी के आदी हो जाते हैं।

चिकित्सक इसे डोपामाइन यानी हैप्पीनेस हार्मोन के रूप में जानते है। यही कारण है कि मौका मिलते ही ऐसे लोग रील्स देखने लगते हैं। वजह उनका दिमाग इस चीज को खोजने लगता है।

रोजाना परेशानी लेकर आ रहे है लोग

शहर के आधे दर्जन मनोरोग चिकित्सक कहते हैं कि इंटरनेट मीडिया पर ज्यादा समय गुजारने वाले लोग परेशान होकर आने लगे है।

ये लोग संयम नहीं रख पाते है। तुरंत रिजल्ट खोजते हैं। अपनी बातों को दूसरे के सामने खुल कर नहीं कहते हैं।

रोजाना दस से ज्यादा मरीज इसके आ रहे हैं। इन सभी को इंटरनेट मीडिया पर कम से कम समय गुजारने की सलाह दी जाती है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

गैर संचारी रोग पदाधिकारी सह मनोचिकित्सक डॉ. पंकज कुमार मनस्वी कहते है कोई भी व्यक्ति ज्यादा समय इंटरनेट मीडिया पर गुजारते हैं तो यह परेशानी होती है।

इसका सीधे असर उनके दिमाग पर होता है। इसका असर उनके रोजमर्रा की जिंदगी पर होता है। वो ध्यान किसी चीज पर नहीं लगा पाते हैं। ऐसे में बच्चों को खास तौर पर मोबाइल से दूर रखना चाहिए।

उनके जीवन में संयम आएं, इसके लिए आप टाइम आउट विधि का उपयोग कर सकते है। यानी मोबाइल लेने या बच्चे शरारत करते हैं तो आप उसको दीवार के सामने खड़ा कर लें।

पहले आप कम समय के लिए करें, फिर समय बढ़ा दें। इससे बच्चों को सोचने का समय भी मिलेगा और सजा भी हो जाएगा।

इससे बचने के ये हैं उपाय

पापकार्न ब्रेन की समस्या से बचने के कई उपाय हैं। इसमें समय समय पर इंटरनेट मीडिया से दूरी बनाएं। खुद के लिए समय निकाले। योग या किसी दूसरे एक्टिविटी करें। माइंड को शांत करने का उपाय करें। दोस्त, परिवार के बीच समय गुजारें।

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