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पद्म श्री से सम्मानित प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा के पति का निधन, पटना के गुलबी घाट पर होगा अंतिम संस्कार

पद्म श्री से सम्मानित प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा के पति ब्रज किशोर सिन्हा का निधन हो गया। वो 80 वर्ष के थे। उनके बेटे अंशुमान ने बताया कि पिताजी दो दिन पहले घर में गिर गए थे। उनके सिर में चोट आई थी। ब्रेन हेमरेज की वजह से उनका निधन रविवार को हो गया। वे शिक्षा विभाग के रिजनल डिप्टी डायरेक्टर पद से सेवानिवृत्त थे।

By prabhat ranjan Edited By: Mukul Kumar Updated: Sun, 22 Sep 2024 02:03 PM (IST)
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पद्म श्री से सम्मानित प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा

जागरण संवाददाता, पटना। पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा के पति ब्रज किशोर सिन्हा अब इस दुनिया में नहीं रहे। 80 साल की उम्र में उनका निधन हो गया है। उनके बेटे अंशुमान ने इस बात की जानकारी दी।

ब्रज किशोर सिन्हा दो दिन पहले घर में गिर गए थे। उनके सिर में चोट आई थी। ब्रेन हेमरेज की वजह से पटना के साईं अस्पताल में उनका निधन रविवार को हो गया।

वे शिक्षा विभाग के रिजनल डिप्टी डायरेक्टर पद से सेवानिवृत्त थे। अब पटना के गुलबी घाट पर उनका अंतिम संस्कार होगा।

शारदा सिन्हा को मिलता रहा पति का साथ  

शारदा सिन्हा को आगे बढ़ाने में उनके पति स्व. ब्रजकिशोर सिन्हा की अहम भूमिका रही। शारदा सिन्हा कार्यक्रम के दौरान बताते रही हैं कि मेरे पति को भी लोक गीतों से बहुत स्नेह रहता था। शारदा सिन्हा एक इंटरव्यू में कहा था कि मेरे तरह उन्हें भी गीत पसंद है।

शादी के बाद जब सुसराल में भजन कीर्तन होता था तो पति काफी मदद करते थे। सासू मां हमेशा कहती थी कि घर में भजन कीर्तन करना ठीक है लेकिन बाहर नहीं। ऐसे में पति ने काफी सहयोग किया था। शारदा बताती हैं कि घर में बेटा, बेटी और पति सभी एक दूसरे का दोस्त बनकर रहते थे।

2020 में आठ मई को विवाह के वर्षगांठ पर शारदा सिन्हा ने कहे तोहसे सजना ये तोहरी सजनियां.. गीत गाई थीं जो बाद में काफी लोकप्रिय हुआ था। इंटरनेट मीडिया पर शारदा ने पोस्ट करते हुए पति के लिए लिखा था कि वे एक स्तंभ बनकर हमेशा साथ खड़े रहे। पति के अंदर सहिष्णुता, स्नेह, धैर्य काफी है।

शारदा सिन्हा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि किस्मत से मेरी तरह मेरे पति बृजकिशोर सिंहा को भी गीतों से खास लगाव था। उन्होंने मेरी सास को मनाकर मेरी गायिकी जारी रखने में मदद की थी। 1970 में जब शादी हुई और मैं अपने ससुराल बेगूसराय गई तो वहां का माहौल अलग था। वहां का रहन-सहन अलग था।

शारदा सिन्हा के गानों का विरोध करतीं थीं उनकी सास

उन्होंने कहा कि मैथिली भी अलग तरीके से बोली जाती थी। मेरी सासू मां का कहना था कि घर में भजन करने तक तो ठीक है, लेकिन उससे आगे गाना-बजाना नहीं चलेगा। हमारे यहां घर की बहू बाहर जाकर गाना नहीं गातीं, इसलिए तुम भी नही गाओगी।

शारदा सिन्हा ने कहा कि मेरे सुसर जी को भजन-कीर्तन सुनना बहुत पसंद था। मेरी शादी के पांच दिन हुए थे कि तभी मेरे गांव के मुखिया जी हमारे यहां आए और मेरे ससुर जी से कहा कि सुना है आपकी बहू बहुत अच्छा गाती हैं। आप अपनी बहू से बोलिए कि वह ठाकुरबाड़ी में भजन गा दें।

ससुर जी ने ठाकुरबाड़ी में भजन गाने की इजाजत दे दी। यह सुनना था कि मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। ठाकुरबाड़ी का दरवाजा घर के बगल में ही था।

'मोहे रघुवर की सुधि आई', शारदा सिन्हा की गीत 

उन्होंने कहा कि इसके बावजूद मेरी सास को यह पसंद नहीं था कि मैं वहां जाकर भजन गाऊं, लेकिन बिना कुछ सोचे, सास से बिना नजर मिलाए ससुर के पीछे-पीछे ठाकुरबाड़ी चली गई। वहां मैंने तुलसीदास जी का भजन गाया- ‘मोहे रघुवर की सुधि आई।’

गांव के बुजुर्ग और ससुर जी काफी खुश हुए लेकिन मेरी सास काफी नाराज हो गईं। गुस्से में उन्होने दो दिन तक खाना नहीं खाया। ऐसे समय में मेरे पति ने मेरा साथ दिया और सास को उन्होंने मनाया।

आगे जब गांव के लोग मेरे गाने को पसंद करने लगे और सास के सामने तारीफ करने लगे तो मेरी सास भी मेरे गायन का सपोर्ट करने लगीं। कई पुराने गीत तो सासु मां से पूछ कर मैंने लिखे और उसे गाया।