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Bihar Politics: मझधार में फंसे पशुपति पारस, किनारे की खोज में देख रहे इधर-उधर; सियासी अटकलें तेज

राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस राजनीति के मझधार में फंस गए हैं। कुछ दिन पहले तक वे राजग में थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भेंट के बाद सम्मानजक पद मिलने की आस लगी थी लेकिन घटनाक्रम इतनी तेजी से बदला कि पिछले महीने हुई एनडीए की बैठक में उन्हें निमंत्रित तक नहीं किया गया।

By Arun Ashesh Edited By: Rajat Mourya Updated: Thu, 14 Nov 2024 05:23 PM (IST)
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पशुपति पारस आने वाले दिनों में बड़ा फैसला ले सकते है। फाइल फोटो- PTI
राज्य ब्यूरो, पटना। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) राजनीति के मझधार में फंस गए हैं। कुछ दिन पहले तक वे राजग (NDA) में थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) से भेंट के बाद सम्मानजक पद मिलने की आस लगी थी, लेकिन घटनाक्रम इतनी तेजी से बदला कि पिछले महीने हुई एनडीए की बैठक में उन्हें निमंत्रित तक नहीं किया गया।

रही सही कसर बिहार सरकार ने पूरी कर दी। लोजपा कार्यालय के लिए आवंटित सरकारी भवन से उन्हें बेदखल कर दिया गया। पूरे प्रकरण पर पारस स्वयं चुप हैं। उनके करीबी संकेत दे रहे हैं कि एनडीए से अलग किसी नए समीकरण पर विचार चल रहा है।

2021 में लोजपा (LJP) के पांच सांसदों के साथ पारस जब राजग में शामिल हुए थे, उन्हें नरेंद्र मोदी की कैबिनेट (PM Modi Cabinet) में मंत्री पद दिया गया था। लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान (Chirag Paswan) अकेले पड़ गए थे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Chunav 2024) से ठीक पहले पारस की ग्रह दशा बिगड़ी और उन्हें लोकसभा चुनाव में एक अदद टिकट के योग्य भी नहीं समझा गया।

उन्होंने केंद्रीय कैबिनेट से त्याग पत्र दे दिया। समर्थकों को विश्वास था कि पारस अपनी पार्टी रालोजपा (RLJP) के चुनाव चिह्न पर स्वयं लड़ेंगे। कुछ समर्थकों को भी टिकट देंगे। भाजपा से समायोजन का संकेत मिलने के बाद उन्होंनेे लोकसभा चुनाव से स्वयं को अलग रखा। दूसरी तरफ, चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) चुनाव में सभी पांच सीटों पर जीत गई।

कब बढ़ा पारस का भाव?

अगस्त में चिराग पासवान ने केंद्र सरकार के कुछ निर्णयों पर नकारात्मक टिप्पणी की थी। चिराग को सतर्क करने के लिए गृह मंत्री अमित शाह ने पारस से मुलाकात कर ली। प्रभाव यह हुआ कि पारस राज्य में राजग की मजबूती का दावा करने लगे। समर्थकों को उन्होंने बताया कि शीघ्र ही खुशखबरी मिलेगी।

पारस खुशी बांट ही रहे थे कि चिराग और अमित शाह की भी मुलाकात हो गई। चिराग का स्वर भी बदल गया।उन्होंने कहा कि राजग के साथ उनका अटूट संबंध है। चिराग ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) की भी प्रशंसा शुरू कर दी। पहली बार उन्होंने कहा कि 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhan Sabha Chunav 2025) नीतीश के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।

नीतीश से भी भरोसा टूटा

पारस को अबतक नीतीश कुमार से आशा थी, मगर सरकारी भवन से रालोजपा को बेदखल करने के निर्णय से पारस की यह आशा भी समाप्त हो गई। उनकी पार्टी ने इस भवन में बने रहने के लिए मुख्यमंत्री को पत्र भी लिखा था। उसका प्रभाव नहीं पड़ा। कठिनाई यह है कि महागठबंधन की ओर से भी पारस को आमंत्रण नहीं मिल रहा है।

क्यों हुई उपेक्षा?

भाजपा की राज्य इकाई का आकलन यह है कि मूल लोजपा का वोट चिराग से जुड़ा हुआ है। पारस साथ रहें न रहें, अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा। चिराग का अलगाव राजग को नुकसान पहुंचा देगा। चिराग ने हाल की अपनी गतिविधियों से नीतीश को भी अपने पक्ष में कर लिया है। इससे पहले, पारस के पक्ष में नीतीश कुमार कई बार खड़े हुए थे, क्योंकि चिराग से वे नाखुश थे।

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