सोनपुर मेला : परंपरा और आधुनिकता का संगम, गंगा तट पर फिर उमड़ी रौनक
सोनपुर मेला, एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला, गंगा-गंडक के संगम पर सज गया है। 'लोक संस्कृति से लोक कल्याण तक' थीम पर आधारित यह मेला बिहार ही नहीं, पड़ोसी राज्यों के लोगों को भी आकर्षित कर रहा है। यहाँ लोकगीत, झूले, स्ट्रीट फूड और पशु बाजार सब कुछ है। सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं और मेला बिहार की जीवंत संस्कृति का प्रतीक बना हुआ है।

सोनपुर मेला में उमड़ी भीड़
डिजिटल डेस्क,पटना। एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कहलाने वाला सोनपुर मेला एक बार फिर अपनी रौनक पर है। गंगा और गंडक के संगम तट पर फैले इस ऐतिहासिक मेले में इन दिनों लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही है। परंपरा, संस्कृति, आस्था और मनोरंजन का संगम बना यह मेला अब बिहार ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्यों के लोगों को भी अपनी ओर खींच रहा है।
इस बार मेले की थीम “लोक संस्कृति से लोक कल्याण तक” रखी गई है। जहां एक ओर ग्रामीण कलाकार लोकगीत और झूमर की धुनों पर सबका मन मोह रहे हैं, वहीं दूसरी ओर आधुनिक झूले, इलेक्ट्रॉनिक खिलौने और स्ट्रीट फूड स्टॉल युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं।
पशु बाजार का दृश्य भी खासा दिलचस्प है। पहले जहां यहां हाथियों और घोड़ों की खरीद-बिक्री होती थी, अब ऊंट, गाय, बकरी और मुर्गे तक के व्यापार में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। पशुपालक कहते हैं कि भले ही हाथी व्यापार अब बंद हो गया हो, लेकिन मेला की रौनक आज भी बरकरार है।
मेले में झूले, सर्कस, नाटक मंडली और लोकनृत्य मंच लोगों का मुख्य आकर्षण बने हुए हैं। रात के समय रोशनी से नहाया मेला परिसर एक मिनी मेले से ज्यादा किसी “मेले के शहर” जैसा प्रतीत होता है। बच्चे गुब्बारे और खिलौनों के साथ घूमते नजर आते हैं, तो महिलाएं पारंपरिक साड़ियों और आभूषणों की दुकानों पर खरीदारी में व्यस्त दिखती हैं।
प्रशासन की ओर से सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, साथ ही स्वच्छता और यातायात नियंत्रण के लिए विशेष टीमें तैनात हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सोनपुर मेला सिर्फ व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि बिहार की जीवंत संस्कृति का प्रतीक है, जहां हर बार इतिहास नए रंगों में मुस्कुराता दिखता है।

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