Bihar Election Result 2025: सारण में पलटे चुनावी समीकरण, लालू यादव के गढ़ में एनडीए को मिली 7 सीटें
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। सारण जिले में 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने शानदार प्रदर्शन किया। एनडीए ने सारण की सभी लोकसभा सीटें जीतीं। महागठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने 6 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार वे एक भी सीट नहीं जीत पाए। अब देखना है कि 2025 में क्या होगा।

जागरण संवाददाता, सारण। जिले में इस बार विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सभी राजनीतिक अनुमान बदल दिए। पिछले दो चुनावों में जहां सारण को राजद का मजबूत गढ़ माना जाता था, वहीं इस बार समीकरण पूरी तरह उलट गए। वर्ष 2015 में राजद ने जिला की 10 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2020 में पार्टी ने सात सीटें अपने नाम की थीं। लेकिन इस चुनाव में राजद को केवल तीन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है।
जिले की 10 विधानसभा सीटों में से इस बार एनडीए गठबंधन को सात और महागठबंधन को मात्र तीन सीटें मिलीं। यह परिणाम पिछले चुनाव के ठीक विपरीत रहा। भाजपा ने छपरा, अमनौर, बनियापुर, तरैया और सोनपुर में जीत दर्ज कर अपनी पकड़ मजबूत की। वहीं जदयू ने एकमा और मांझी सीट पर कब्जा जमाया। दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल केवल मढ़ौरा, परसा और गड़खा सीटें ही बचा सका। इन नतीजों ने न सिर्फ स्थानीय राजनीतिक संतुलन बदल दिया है, बल्कि यह भी संकेत दिया है कि सारण की जनता ने इस बार पुराने समीकरणों को दरकिनार कर नए नेतृत्व और नए विकल्पों को चुना है। प्रस्तुत है सभी विधानसभा सीटों पर राजीव रंजन की रिपोर्ट-
1. एकमा में जदयू का दबदबा, धूमल सिंह की प्रचंड जीत
एकमा विधानसभा क्षेत्र में इस बार जनता ने जदयू पर पूरा भरोसा जताते हुए पार्टी उम्मीदवार मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल सिंह को भारी समर्थन दिया। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी और राजद प्रत्याशी श्रीकांत सिंह को निर्णायक अंतर से पराजित किया। दिलचस्प बात यह रही कि श्रीकांत सिंह वर्तमान विधायक थे और पिछली बार पहली बार चुनाव जीतकर सदन पहुंचे थे, लेकिन इस बार जनता का रुख उनके खिलाफ रहा।
स्थानीय लोगों में उनके प्रति नाराजगी की चर्चा पूरे चुनाव के दौरान बनी रही। मतदाताओं का आरोप था कि जीत के बाद श्रीकांत सिंह लंबे समय तक कोलकाता में ही रहे और क्षेत्र की समस्याओं से दूरी बनाए रखी। कई मतदाताओं ने तो यहां तक कहा कि वे पांच साल में कभी अपने विधायक से मिल भी नहीं पाए।
पिछले चुनाव में इसी सीट से धूमल सिंह की पत्नी सीता देवी ने मैदान संभाला था, पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस बार धूमल सिंह ने खुद चुनाव अभियान की कमान संभाली और पहले राउंड से मिली बढ़त को अंत तक बरकरार रखते हुए जीत दर्ज कर ली। धूमल सिंह के राजनीतिक रिकॉर्ड की बात करें तो वे एकमा से तीसरी बार विधायक चुने गए हैं। इससे पहले वे बनियापुर विधानसभा क्षेत्र से भी चुनाव लड़ते रहे हैं और उल्लेखनीय यह है कि उन्होंने जिस भी चुनाव में हिस्सा लिया, विजय ही हासिल की।
इस जीत के साथ उन्होंने एक बार फिर साबित किया कि क्षेत्र में उनकी मजबूत पकड़ और संगठनात्मक क्षमता कायम है। जदयू की जीत ने एकमा में नए समीकरण स्थापित कर दिए हैं और माना जा रहा है कि यह परिणाम आने वाले राजनीतिक संदेशों को भी प्रभावित करेगा। मनोरंजन सिंह उर्फ धूमल सिंह ने चुनाव जीतने के बाद कहा कि लोगों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपने विश्वास को व्यक्त किया है। उनके द्वारा जो विकास कार्य किए जा रहे हैं, उसी का परिणाम है कि एनडीए को इतनी प्रचंड बहुमत मिली है।
2. मांझी में जदयू का परचम, रणधीर सिंह ने महागठबंधन को दी मात
मांझी विधानसभा क्षेत्र में इस बार मतदाताओं ने महागठबंधन को स्पष्ट रूप से नकार दिया और जदयू उम्मीदवार रणधीर कुमार सिंह को विजयी बनाकर विधानसभा भेजने का फैसला किया। रणधीर कुमार सिंह, पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के पुत्र हैं, और इस बार जदयू के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी तथा विधायक डा. सत्येंद्र कुमार यादव को हराया है। डा. यादव पिछली बार इसी सीट से विधायक चुने गए थे, लेकिन इस बार वे हार से बच नहीं सके। उधर रणधीर सिंह की राजनीतिक यात्रा भी काफी रोचक रही है। वे पहले छपरा विधानसभा से राजद के टिकट पर उपचुनाव जीत चुके हैं। बाद में उन्होंने दो बार और चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा उम्मीदवार डा. सीएन. गुप्ता से पराजित हो गए। इस बार उन्होंने राजद छोड़कर जदयू का दामन थामा और यह फैसला उनके लिए जीत का रास्ता बना।
मांझी में चुनावी मुकाबला शुरुआत से ही दिलचस्प बना रहा। युवा और पारंपरिक मतदाताओं के बीच भी रणधीर सिंह को अच्छा समर्थन मिला। लोगों ने स्थानीय मुद्दों, विकास और क्षेत्र की सियासी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए नया नेतृत्व चुनने का निर्णय लिया। इस परिणाम को महागठबंधन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि यह क्षेत्र वर्षों से उनके प्रभाव में रहा है। वहीं जदयू खेमे में उत्साह का माहौल है। रणधीर कुमार सिंह की जीत से पार्टी की क्षेत्र में पकड़ और मजबूत हुई है। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि यह जीत स्थानीय समीकरणों में बड़ा बदलाव लेकर आएगी।
जीत हासिल करने के बाद रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि वह क्षेत्र को विकसित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। यह जीत पूरी तरह से जनता को समर्पित है। यहां के लोगों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति अपनी आस्था को व्यक्त किया है। उसी का परिणाम है कि उन्हें यहां से जीत हासिल हुई है।
3. बनियापुर में केदारनाथ सिंह का दम, भाजपा को मिली महत्वपूर्ण जीत
बनियापुर विधानसभा सीट पर इस बार का चुनाव बेहद रोमांचक रहा, जिसमें अंततः भाजपा के प्रत्याशी केदारनाथ सिंह ने जीत का परचम लहराया। वे पहले राजद के विधायक रह चुके हैं और समय के अनुरूप राजनीतिक परिवर्तन करते हुए उन्होंने भाजपा का दामन थामा था। पहली बार भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ते हुए उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद की चांदनी देवी को हराया।
चांदनी देवी पहली बार चुनाव लड़ रही थीं और वे मशरक के दिवंगत पूर्व विधायक अशोक कुमार सिंह की पत्नी हैं। उन्हें राजद ने महिलाओं और सहानुभूति फैक्टर के चलते मैदान में उतारा था, लेकिन केदारनाथ सिंह का अनुभव और क्षेत्रीय आधार भारी पड़ा।
केदारनाथ सिंह का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है। वे पूर्व में जदयू और राजद दोनों पार्टियों के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। पिछले चुनाव में भी वे राजद से विधायक बने थे और इस बार भाजपा में शामिल होकर उन्होंने चौथी बार जीत का नया रिकॉर्ड बनाया है। बनियापुर में चुनावी मुकाबला जातीय समीकरणों, व्यक्तिगत छवि और स्थानीय मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता रहा।
केदारनाथ सिंह ने अपने लंबे राजनीतिक अनुभव, जनसंपर्क और संगठनात्मक कौशल के आधार पर मतदाताओं को अपने पक्ष में किया। चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट है कि मतदाताओं ने स्थिरता और अनुभव को प्राथमिकता दी। भाजपा के लिए यह जीत विशेष महत्व रखती है। अब भाजपा ने यहां अपनी स्पष्ट पकड़ बना ली है, जो आगे की राजनीति को सीधे प्रभावित करेगी।
जीत हासिल करने के बाद केदारनाथ सिंह ने कहा कि उनके द्वारा इस क्षेत्र को विकसित करने का कार्य हमेशा किया जाता रहा है। उसी का परिणाम है कि यहां के लोगों ने अपना पूरा समर्थन दिया है। इसके साथ ही लोगों ने देश के प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री के प्रति अपनी आस्था को भी व्यक्त किया है।
4. तरैया में फिर चमके जनक सिंह, भाजपा ने लगातार दूसरी बार दर्ज की जीत
तरैया विधानसभा सीट पर इस बार भी मुकाबला कड़े उतार-चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन अंत में भाजपा प्रत्याशी और वर्तमान विधायक जनक सिंह ने एक बार फिर जीत हासिल कर ली। उन्होंने राजद उम्मीदवार शैलेंद्र प्रताप सिंह को पराजित किया।
शैलेंद्र प्रताप पहली बार राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। पिछले चुनाव में वे निर्दलीय के रूप में मैदान में थे, लेकिन इस बार पार्टी समर्थन के बावजूद वे जीत नहीं पाए।
पूरे चुनाव में दोनों प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। हर राउंड में बढ़त का उतार-चढ़ाव चलता रहा, जिससे परिणाम को लेकर मतगणना केंद्र पर लगातार रोमांच का माहौल बना रहा। जनक सिंह की यह लगातार दूसरी जीत है, जिससे भाजपा का तरैया में जनाधार और सुदृढ़ हुआ है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान स्थानीय मुद्दों, सड़क-पुल निर्माण, स्वास्थ्य सुविधाओं तथा जनसंपर्क को मजबूती दी, जिसका लाभ उन्हें इस चुनाव में मिला। राजद उम्मीदवार ने भी चुनाव में पूरी ताकत झोंकी, लेकिन भाजपा की मजबूत संगठनात्मक तैयारी और जनक सिंह की छवि भारी रही।
इस जीत के बाद तरैया में भाजपा समर्थकों में उत्साह है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह परिणाम स्थानीय मतदाताओं की स्थिर और अनुभवी नेतृत्व के प्रति पसंद को दर्शाता है। तरैया की यह जीत भाजपा को अगले चुनावी समीकरणों में और मजबूती देगी।
जीत के बाद जनक सिंह ने कहा कि यह जीत क्षेत्र की जनता की जीत है। यहां के लोगों ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति अपना विश्वास जताया है। उसी का परिणाम है कि वह लगातार दूसरी बार यहां से चुनाव जीतने में सफल रहे हैं।
5. गड़खा में फिर चमके सुरेंद्र राम, राजद ने सुरक्षित रखी अपनी सीट
गड़खा विधानसभा सीट पर इस बार भी राजद ने अपना किला बचाए रखा है। पार्टी प्रत्याशी सुरेंद्र राम ने लगातार दूसरी बार विजय हासिल करते हुए लोजपा (रामविलास) उम्मीदवार सीमांत मृणाल को हराया। यह सीट सुरक्षित वर्ग में आती है और सीट बंटवारे के दौरान एनडीए ने इसे लोजपा के खाते में दिया था।
सीमांत मृणाल ने पूरी ताकत से मुकाबला किया, लेकिन सुरेंद्र राम का अनुभव और पिछले कार्यकाल का प्रदर्शन उनके लिए बढ़त का आधार बना। सुरेंद्र राम दो बार लगातार विधायक चुने गए हैं और बिहार में महागठबंधन की सरकार बनने पर उन्हें मंत्री पद भी मिला था। उसी अनुभव और जनसंपर्क ने उन्हें इस बार भी लाभ दिया।
गड़खा में चुनाव शुरू से ही दिलचस्प बना रहा। कई राउंड में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। स्थानीय मुद्दों, सड़क और शिक्षा व्यवस्था सुधार, तथा उनके सरल व्यवहार ने उन्हें व्यापक समर्थन दिलाया। पिछली दो बार से यहां भाजपा विधायक चुने जाते रहे थे, लेकिन 2020 और 2025 दोनों चुनावों में राजद ने यह सीट मजबूती से अपने पक्ष में बनाए रखी है। इस जीत के साथ राजद खेमे में उत्साह है, जबकि एनडीए में निराशा। विश्लेषकों का कहना है कि गड़खा का राजनीतिक रुझान इस बार क्षेत्रीय नेतृत्व से अधिक व्यक्तिगत कार्यों पर आधारित रहा। सुरेंद्र राम की जीत ने यह साबित कर दिया है कि जनता लगातार प्रयास और दिखने वाले कार्यों को सराहती है।
जीत हासिल करने के बाद सुरेंद्र राम ने कहा कि गड़खा के लोगों के विश्वास का यह परिणाम है। वह क्षेत्र को और विकसित करेंगे। यहां की योजनाओं को जमीन पर उतार देंगे ताकि लोगों को और फायदा मिल सके।

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