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    मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज के दम पर GDP ने लगाई छलांग, निजी खर्च और पूंजी निवेश का भी मिला सहारा

    Updated: Fri, 28 Nov 2025 06:12 PM (IST)

    GDP-boom: सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने शुक्रवार को जुलाई-सितंबर तिमाही के आंकड़े जारी किए। इसके मुताबिक पिछली तिमाही में भारत की जीडीपी में 8.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह बीती 6 तिमाही में सबसे अधिक है। मंत्रालय ने यह भी बताया है कि फरवरी 2026 के अंत में दिसंबर तिमाही के जो आंकड़े जारी किए जाएंगे, वे नई सीरीज पर आधारित होंगे।

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    मैन्युफैक्चरिंग ने दी GDP को गति

    जुलाई-सितंबर 2025 तिमाही में जीडीपी ग्रोथ के आंकड़ों ने तमाम अनुमानों को पीछे छोड़ दिया है। इस तिमाही भारत की जीडीपी 8.2 प्रतिशत बढ़ी। यह 2023-24 की चौथी तिमाही के बाद सबसे ज्यादा है, जब अर्थव्यवस्था में 8.4 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। इस वर्ष पहली तिमाही में ग्रोथ 7.8 प्रतिशत और 2024-25 की दूसरी तिमाही में 5.6 प्रतिशत थी। इस ग्रोथ का श्रेय मैन्युफैक्चरिंग (manufacturing growth) और सर्विसेज (services sector) में तेज ग्रोथ को दिया जा सकता है।

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    आर्थिक आंकड़ों की गणना दो पैमाने पर की जाती है- स्थिर मूल्यों पर और मौजूदा मूल्यों पर। जीडीपी में 8.2 प्रतिशत वृद्धि स्थिर मूल्यों (2011-12) के आधार पर है। मौजूदा मूल्यों के आधार पर (नॉमिनल) इसमें 8.7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। मौजूदा मूल्यों पर गणना में महंगाई के प्रभाव को भी शामिल किया जाता है। रियल और नॉमिनल के बीच का अंतर 2019-20 की तीसरी तिमाही के बाद सबसे कम है।

    रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी के अनुसार, निजी खपत में वृद्धि तेज ग्रोथ का मुख्य कारण है। सप्लाई साइड से, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज में काफी बढ़ोतरी देखी गई। लो-बेस इफेक्ट से भी मदद मिली, क्योंकि पिछले साल इसी तिमाही में इकोनॉमी औसत से कम, 5.6% की दर से बढ़ी थी।

    खुदरा और थोक महंगाई पहली तिमाही के मुकाबले दूसरी तिमाही में कम थी। खाने-पीने की चीजों की कम महंगाई ने अपनी मर्जी से (डिस्क्रेशनरी) खर्च को बढ़ावा दिया। गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स (GST) की दरों को तर्कसंगत बनाने और उनमें कमी करने से भी निजी खपत बढ़ रही है। इनकम टैक्स और ब्याज दरों में कटौती का भी लाभ मिल रहा है।

    मैन्युफैक्चरिंग ने दिखाई तेज रफ्तार

    इस ग्रोथ में मैन्युफैक्चरिंग का बड़ा योगदान है। मैन्युफैक्चरिंग ग्रॉस वैल्यू एडिशन (GVA) 9.1 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि पिछले साल समान तिमाही में इसमें सिर्फ 2.2 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। बिजली, गैस जैसी यूटिलिटी सर्विसेज में ग्रोथ 3 प्रतिशत से बढ़कर 4.4 प्रतिशत, ट्रेड, होटल, कम्युनिकेशन जैसी सर्विसेज में 6.1 प्रतिशत के मुकाबले 7.4 प्रतिशत, फाइनेंशियल सर्विसेज में 7.2 प्रतिशत से बढ़कर 10.2 प्रतिशत और जन-प्रशासन, रक्षा तथा अन्य सेवाओं में 8.9 प्रतिशत की तुलना में 9.7 प्रतिशत रही है।

    हालांकि कृषि और कंस्ट्रक्शन की विकास दर कम हुई है। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 4.1 प्रतिशत से घटकर 3.5 प्रतिशत और कंस्ट्रक्शन की 8.4 प्रतिशत की तुलना में 7.2 प्रतिशत रह गई। कृषि में पहली तिमाही में 3.7 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। खनन में ग्रोथ निगेटिव है। कुल मिलाकर पिछली तिमाही में जीवीए 8.1 प्रतिशत बढ़ा है।

    सर्विसेज ने भी दिया इकोनॉमी को सहारा

    GVA में सर्विसेज (टर्शियरी सेक्टर) का हिस्सा 60 प्रतिशत हो गया है, जो शायद पहली बार हुआ है। प्राइमरी सेक्टर की हिस्सेदारी सिर्फ 14.9 प्रतिशत रह गई है। बाकी 25.1 प्रतिशत हिस्सा सेकंडरी सेक्टर का है। प्राइमरी सेक्टर में कृषि और खनन आते हैं। सेकंडरी सेक्टर में मैन्युफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन के साथ बिजली-गैस जैसी यूटिलिटी सर्विसेज होती हैं। टर्शियरी सेक्टर में ट्रेड, होटल तथा बाकी सभी सेवाएं शामिल हैं।

    टर्शियरी सेक्टर में तेज वृद्धि ने भी अर्थव्यवस्था को बूस्ट दिया है। इकोनॉमी में सबसे ज्यादा (60 प्रतिशत) हिस्सेदारी वाले टर्शियरी सेक्टर की ग्रोथ रेट 7 प्रतिशत से बढ़कर 9.3 प्रतिशत हो गई। सेकंडरी सेक्टर की 6.3 प्रतिशत के मुकाबले 7.6 प्रतिशत और प्राइमरी सेक्टर की 2.8 प्रतिशत की तुलना में 2.9 प्रतिशत रही है।

    कितना है जीडीपी का आकार

    सितंबर तिमाही में जीडीपी का आकार पिछले साल के 44.94 लाख करोड़ रुपये की तुलना में 48.63 लाख करोड़ रुपये रहा है। मौजूदा मूल्यों पर या नॉमिनल जीडीपी 78.40 लाख करोड़ से बढ़कर 85.25 लाख करोड़ रुपये रही है।

    छमाही आधार पर देखें तो अप्रैल-सितंबर 2025 के दौरान जीडीपी का आकार (स्थिर मूल्यों पर) 96.52 लाख करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल 89.35 लाख करोड़ रुपये था। इस दौरान नॉमिनल जीडीपी 157.48 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 171.30 लाख करोड़ रुपये हो गई।

    GDP में निजी खर्च 62.5 प्रतिशत पहुंचा

    अर्थव्यवस्था में मांग का बड़ा महत्व होता है। इसमें सबसे बड़ा कंपोनेंट निजी खपत (PFCE) का रहता है। इसमें 7.9 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इस साल पहली तिमाही में निजी खपत (private consumption) में 7 प्रतिशत और पिछले साल की दूसरी तिमाही में 6.4 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। सरकारी खर्च (GFCE) 2.7 प्रतिशत घटा है, जबकि पहली तिमाही में यह 7.4 प्रतिशत और पिछले साल दूसरी तिमाही में 4.3 प्रतिशत बढ़ा था। यह संभवतः राजकोषीय घाटा कम रखने की कोशिश का नतीजा है। पूंजी निवेश (GFCF) 7.3 प्रतिशत बढ़ा है। जीडीपी में निजी खर्च की हिस्सेदारी 62.5 प्रतिशत, सरकारी खर्च की 9.1 प्रतिशत और पूंजी निवेश की 30.5 प्रतिशत रही है।

    क्रिसिल के जोशी के मुताबिक, तीसरी तिमाही में भी इनमें से कुछ वजहों का फायदा मिलने की उम्मीद है। सरकारी निवेश शायद स्थिर रहे, लेकिन प्राइवेट निवेश में बढ़ोतरी के संकेत हैं। इसलिए हमने इस वर्ष भारत की GDP ग्रोथ का अनुमान 6.5% से बढ़ाकर 7% कर दिया है।

    हालांकि रियल GDP में बढ़ोतरी अच्छी है, लेकिन महंगाई में बड़ी गिरावट से होने वाली धीमी नॉमिनल ग्रोथ के बुरे असर हो सकते हैं। यह टैक्स टारगेट को हासिल करने में मुश्किल पैदा करता है। अप्रैल से अक्टूबर तक 4% की टैक्स कलेक्शन ग्रोथ अभी 11% के साल के टारगेट से कम है। इसके अलावा, धीमी नॉमिनल ग्रोथ आमतौर पर कम कॉर्पोरेट कमाई और सुस्त क्रेडिट ग्रोथ से जुड़ी होती है।

    अगली बार नई सीरीज के अनुसार आएंगे आंकड़े

    सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार स्थिर मूल्यों पर गणना के लिए आधार वर्ष 2011-12 को बदलकर 2022-23 करने की प्रक्रिया चल रही है। आधार वर्ष बदलने पर कुछ पुराने आंकड़ों में भी संशोधन संभव है। अक्टूबर-दिसंबर 2025 तिमाही से जीडीपी के आंकड़े नई सीरीज (222-23) के आधार पर जारी होंगे, जो 27 फरवरी 2026 को आएंगे। जोशी का कहना है कि इससे इकॉनमी को बेहतर तरीके से कैप्चर किया जा सकेगा लेकिन मौजूदा अनुमानों में फर्क पड़ सकता है।

     

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