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    वैश्विक राजधानी के रूप में उभरने में क्यों विफल रही दिल्ली? बड़ी वजह आई सामने

    Updated: Sun, 02 Nov 2025 07:47 AM (IST)

    आजादी के बाद दिल्ली ने विकास में कई मील के पत्थर स्थापित किए, पर समस्याएं भी बढ़ीं। प्रबुद्धजन दिल्ली को वैश्विक राजधानी के रूप में देखना चाहते हैं, जो मुश्किल पर असंभव नहीं। प्रदूषण, जाम, अवैध निर्माण जैसी कई चुनौतियां हैं। चांदनी चौक को पुनर्जीवित करना होगा। विकास गुरुग्राम-नोएडा में क्यों? मास्टर प्लान को भविष्य की ज़रूरतों के अनुसार बनाना होगा। सरकार को कचरा प्रबंधन, सफाई, यातायात पर ध्यान देना होगा।

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    आजादी के बाद दिल्ली ने विकास में कई मील के पत्थर स्थापित किए, पर समस्याएं भी बढ़ीं।

    नेमिष हेमंत, नई दिल्ली। स्वाधीनता के बाद दिल्ली ने विकास के मामले में कई मील के पत्थर गढ़े। हर क्षेत्र में प्रगति, उन्नति हुई, लेकिन समय के साथ समस्याएं भी गहराती गई। समस्याएं ऐसी विकराल की उसके समाधान के लिए भागीरथी प्रयास की आवश्यकता है। दिल्ली के विभिन्न वर्ग के प्रबुद्ध लोगों की चिंता एक सी है तो सपने एक से हैं।

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    सभी दिल्ली को वैश्विक स्तर की राष्ट्रीय राजधानी के रूप में देखना चाहते हैं। वह कहते हैं कि यह काफी कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। वैश्विक स्तर पर कई शहरों ने खुद को उस अनुरूप ढाला है। फिर दिल्ली क्यों पीछे रहे।

    सीधे कहें तो दिल्ली रहने लायक शहर नहीं रह गई है। यहां समस्याओं की भरमार है। वायु व यमुना नदी का प्रदूषण, सड़कों पर यातायात जाम, दिल्ली में हर ओर अवैध निर्माण जैसे मामले प्रमुख है। इसी तरह, चांदनी चौक जो ऐतिहासिक धरोहर है, वह खत्म होती जा रही है। उसे पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। आखिरकार क्या कारण है कि विकास दिल्ली की जगह गुरुग्राम और नोएडा में हो रहा है? यहां आबादी का दबाव बढ़ता जा रहा है, लेकिन उन सबके मद्देनजर मास्टर प्लान अभी तक नहीं आया है। मास्टर प्लान भी 100 वर्ष बाद को ध्यान में रखकर तैयार किया गया हो।
    -विजय गोयल, पूर्व केंद्रीय मंत्री

    विकास का ब्लू प्रिंट और उसकी समयबद्धता का अभाव है। उसके बिना कोई हल नहीं निकलेगा। सरकार बदलने के बाद सड़क पर जो बदलाव दिखाई देना चाहिए था, वह नदारद है। कचरा प्रबंधन, सफाई व्यवस्था, यातायात जाम जैसी समस्याओं पर गंभीरता से काम करना होगा। दिल्ली में बड़ी आबादी गांवों से आती है, जिनकी संस्कृति अलग है। शहर के लायक उन्हें जीने का सलीका कौन सिखाएगा। यह कब सरकार की जिम्मेदारी में शामिल होगी। यह तभी होगा जब सड़क के नियमों का कड़ाई से पालन कराया जाए। कूड़ा फेंकने, थूकने, गलत दिशा में चलने जैसे मामलों पर सख्ती से चालान हो।
    अतुल गोयल, अध्यक्ष, ऊर्जा, आरडब्ल्यूए फेडरेशन


    दिल्ली देश का प्रमुख कारोबारी हब है, लेकिन समस्याएं भी उतनी ही है। इंस्पेक्टर राज से व्यापारी माहौल खराब हो रहा है। जरूरी है कि ईज आफ डूइंग बिजनेस लागू हो। व्यापारियों को अच्छा माहौल दिया जाए। बाजारों का पुनर्विकास जमीनी जरूरतों पर हो। यह एयरकंडीशन कमरों में बैठकर तय न हो। उसके पहले संबंधित बाजारों तथा लोगों से रायशुमारी हो।
    विक्रम बधवार, महासचिव, नई दिल्ली ट्रेडर्स एसोसिएशन

    प्रदूषण की सर्वाधिक गंभीर है। दिल्ली, देश में ही नहीं विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। इससे लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता हो रहा है। इसके बाद यातायात जाम की समस्या गंभीर है। निश्चित ही फ्लाईओवर का जाल बिछा है, लेकिन लोग अब भी घंटो जाम की समस्या से जूझ रहे हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आयुष्मान भारत जैसी कई योजनाएं सरकारों द्वारा लाई गई है, लेकिन जमीनी स्तर पर उसका लाभ कम देखा गया है। सवाल कि सफाई में मामले में इंदौर का ही नाम क्यों आता है, दिल्ली क्यों नहीं। पिछली सरकार ने शिक्षा पर प्रचार खूब किया, जिसमें वास्तविक से काम करने की आवश्यकता है।
    डा. अश्विनी गोयल, पूर्व अध्यक्ष, दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन

    उद्योग धंधों के लिहाज से सरकार को यह निर्णय करना होगा कि वह दिल्ली को किस दिशा में ले जाना चाहती है? औद्योगिक इकाईयों को हटाने से रोजगार के साथ राजस्व को नुकसान होगा। जहां तक सेवा क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात है तो वह भी निर्माण इकाईयोें के बिना अधूरी है।

    मध्य प्रदेश और हरियाणा की सरकारें उद्योग हितैषी नीतियां ला रही है। उस दिशा में काम यहां भी हो। साथ ही उत्पाद लागत कम करने का प्रयास हो। दिल्ली के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में ले जाने के लिए यह जरूरी है। इसके लिए बिजली, पानी व श्रमदर तर्कसंगत करनी हाेगी। विभिन्न सिविक एजेंसियों का उत्पीड़न तथा उनकी मनमानी वसूली भी बंद करनी होगी। हर सड़क अवैध रेहड़ी-पटरी वालों के कब्जे में है, जिससे जाम और अव्यवस्था पैदा होती है। ऐसे में रेहड़ी-पटरी वालों के लिए हर क्षेत्र में जगह तय हो। इससे जाम की समस्या पर लगाम लगाई जा सकती है।
    मुकेश कुमार, उपाध्यक्ष, लघु उद्योग भारती