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दिल्ली की जामिया मिल्लिया में गैर मुस्लिमों से होता है भेदभाव, डाला जाता है मतांतरण का दबाव; रिपोर्ट में हैरान कर देने वाले दावे

संस्थान के गैर मुस्लिम फैकल्टी सदस्य छात्रों व कर्मचारियों तथा पूर्व छात्रों से बातचीत के आधार पर तैयार इस 65 पेज की रिपोर्ट में जामिया में धार्मिक आधार पर भेदभाव और गैर मुसलमान लोगों के प्रति पूर्वाग्रह की बात कही गई है। फैक्ट फाइंडिंग टीम का नेतृत्व दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा कर रहे थे। रिपोर्ट तैयार करने में तीन माह का वक्त लगा।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Fri, 15 Nov 2024 06:29 AM (IST)
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दिल्ली की जामिया मिल्लिया में गैर मुस्लिमों से होता है भेदभाव
 जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। कॉल ऑफ जस्टिस ट्रस्ट ने अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में प्रतिष्ठित जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआइ) में गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव और मतांतरण के दबाव के गंभीर आरोप लगाए हैं। संस्थान के गैर मुस्लिम फैकल्टी सदस्य, छात्रों व कर्मचारियों तथा पूर्व छात्रों से बातचीत के आधार पर तैयार इस 65 पेज की रिपोर्ट में जामिया में धार्मिक आधार पर भेदभाव और गैर मुसलमान लोगों के प्रति पूर्वाग्रह की बात कही गई है।

रिपोर्ट में 27 लोगों की गवाही है, जिसमें सात प्रोफेसर व फैकल्टी सदस्य, आठ-नौ कर्मचारी, 10 छात्र व कुछ पूर्व छात्र हैं। रिपोर्ट आगे की कार्रवाई के लिए गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, शिक्षा मंत्रालय और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को सौंपी गई है।

रिपोर्ट तैयार करने में तीन माह का वक्त लगा

फैक्ट फाइंडिंग टीम का नेतृत्व दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एसएन ढींगरा कर रहे थे, जबकि छह सदस्यीय टीम में दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त एसएन श्रीवास्तव भी शामिल थे। रिपोर्ट तैयार करने में तीन माह का वक्त लगा।

एसएन ढींगरा ने बताया कि इसी वर्ष अगस्त में जामिया मिल्लिया के एक कर्मचारी राम निवास के समर्थन में अनुसूचित जाति और वाल्मीकि समाज के सदस्यों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर गैर-मुस्लिम होने के कारण जामिया में परेशान करने और भेदभाव का आरोप लगाया था।

कई अन्य लोगों से मौखिक और लिखित शिकायतें मिली

इसके पूर्व भी काल आफ जस्टिस को जामिया में गैर-मुसलमानों के उत्पीड़न, मतांतरण और गैर-मुसलमानों के साथ भेदभाव के संबंध में कई अन्य लोगों से मौखिक और लिखित शिकायतें मिली थीं। प्रारंभिक जांच के बाद आरोपों की विस्तृत जांच के लिए फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के गठन का निर्णय लिया गया।

मुस्लिम कर्मचारी गैर मुसलमानों के साथ दु‌र्व्यवहार और भेदभाव करते थे

रिपोर्ट के अनुसार एक गैर मुस्लिम महिला सहायक प्रोफेसर ने कहा कि उन्होंने शुरू से ही पूर्वाग्रह महसूस किया था और मुस्लिम कर्मचारी गैर मुसलमानों के साथ दु‌र्व्यवहार और भेदभाव करते थे। पीएचडी थीसिस प्रस्तुत करते समय मुस्लिम क्लर्क ने उन पर अपमानजनक टिप्पणियां कीं और कहा कि वह कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगी।

थीसिस का शीर्षक भी ठीक से नहीं पढ़ पा रहा क्लर्क उसकी गुणवत्ता पर टिप्पणी कर रहा था। एक अन्य गैर-मुस्लिम फैकल्टी सदस्य ने बताया कि उनके साथ मुस्लिम सहयोगियों को दी जाने वाली सुविधाएं जैसे बैठने की जगह, केबिन व फर्नीचर आदि के मामले में भेदभाव किया गया।

'कैसे एक 'काफिर' को केबिन दे दिया गया'

अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले फैकल्टी सदस्य ने बताया कि उनको केबिन आवंटित किए जाने पर परीक्षा शाखा के कर्मचारियों ने कहा कि कैसे एक 'काफिर' को केबिन दे दिया गया। अनुसूचित जनजाति के एक पूर्व छात्र ने बताया कि कैसे एमडी पूरा करने के लिए एक शिक्षक ने कक्षा में घोषणा की कि जब तक वह इस्लाम का पालन नहीं करता, उसकी एमडी पूरा नहीं होगी। उसके सामने ऐसे छात्रों का उदाहरण रखा गया जिनके मतांतरण करने के बाद अच्छा व्यवहार होने लगा।

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