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हाशिए के लोग का लोकार्पण किया गया

लेखक सत्ता का मुजरिम होता है क्यों कि वह सत्ता के दमन के खिलाफ लिखता है इसलिए सत्ता का मुजरिम होता है दूसरी तरफ़ वह दलितों उपेक्षितों की अगर आवाज़ नहीं बनता तो वह उन तमाम उपेक्षितों का मुजरिम होता है। लेखक ने कहा मैंने जो कहना था वह लिख दिया अब इस पर विचार विमर्श करना आप विद्वानों का काम है।

By Jagran News Edited By: Anurag Mishra Updated: Sat, 21 Sep 2024 03:18 PM (IST)
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हरेन्द्र सिंह असवाल की दो पुस्तकों, “खेडा़खाल“ और “हाशिए के लोग“ का लोकार्पण किया गया

प्रोफ़ेसर हरेन्द्र सिंह असवाल की दो पुस्तकों, “खेडा़खाल“ और “हाशिए के लोग“ का लोकार्पण ज़ाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज के सभागार में किया गया। पुस्तक लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर बलराम पाणी अधिष्ठाता महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय और प्रोफ़ेसर अनिल राय अधिष्ठाता अन्तर्राष्ट्रीय संबंध, समाज विज्ञान एवं मानविकी, हिन्दी विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय एवं कॉलेज के प्राचार्य प्रोफ़ेसर नरेन्द्र सिंह के द्वारा किया गया। ”खेड़ाखाल” हरेन्द्र सिंह असवाल का एक कविता संग्रह हैं और “हाशिए के लोग” में, हिन्दू समाज के उन कलाकारों का स्मरण किया गया जिन्होंने हिन्दू संस्कृति को हज़ारों वर्षों तक अनपढ़ होते हुए भी निरन्तर ज़िन्दा रखा लेकिन बदले में वर्ण व्यवस्था ने उन्हें हमेशा हाशिए पर रखा।

लेखक ने कहा मुजरिम हाज़िर है, उन्होंने कहा लेखक सत्ता का मुजरिम होता है क्यों कि वह सत्ता के दमन के खिलाफ लिखता है इसलिए सत्ता का मुजरिम होता है, दूसरी तरफ़ वह दलितों उपेक्षितों की अगर आवाज़ नहीं बनता तो वह उन तमाम उपेक्षितों का मुजरिम होता है। लेखक ने कहा मैंने जो कहना था वह लिख दिया अब इस पर विचार विमर्श करना आप विद्वानों का काम है। क्या यह विचार कि ये लोग, सम्मान के हक़दार थे या नहीं ?

प्रोफ़ेसर अनिल राय ने पुस्तक पर गंभीर चर्चा की. समाज के इन हाशिए के लोगों का जिक्र करते हुए प्रोफ़ेसर राय ने “गगनी दास“ को याद करते हुए सीता, द्रौपदी, और गगनी दास के सवालों को उठाते हुए वर्मान समाज में स्त्री और दलितों के प्रश्नों पर फिर से विचार करने के लिए बाध्य किया है। हिन्दी के महान कवि घाघ भड्डली वाले लेख को प्रोफ़ेसर अनिल राय ने अनुसंधान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बताया और कहा साहित्य में घाघ जैसा कवि जो अपनी पत्नी से संवाद करता हुआ जीवन, खेती बाड़ी की समस्याओं पर संवाद शैली में बात करता है, ऐसे लोक कवि को भी हमारे आचार्यों ने हाशिए पर ही रख छोड़ा। उन्होंने कहा इसमें जितने भी ऐसे हाशिए के लोग हैं, उन्हें हमें मुख्यधारा में रख कर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है।