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    एनजीटी ने स्कूलों में एस्बेस्टस शीट पर तत्काल बैन से किया इंकार, 6 महीने में वैज्ञानिक समीक्षा का आदेश

    Updated: Sun, 02 Nov 2025 03:30 PM (IST)

    राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने स्कूलों में एस्बेस्टस शीट के उपयोग पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। एनजीटी ने इस मामले में वैज्ञानिक समीक्षा करने का आदेश दिया है, जिसके लिए छह महीने का समय दिया गया है। समीक्षा के बाद एनजीटी इस मामले पर अंतिम फैसला लेगा।

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    NGT ने तत्काल रोक से किया इंकार।

    विनीत त्रिपाठी, जागरण, नई दिल्ली। देशभर के स्कूलों में एस्बेस्टस सीमेंट की शीटों का उपयोग करने पर रोक लगाने से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इन्कार कर दिया है। एनजीटी ने रिकार्ड पर लिया कि एनजीटी के आदेश के बावजूद भी स्कूल भवनों में एस्बेस्टस सीमेंट की छत शीट के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के संदर्भ में कोई विशिष्ट अध्ययन नहीं किया गया है।

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    हालांकि, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि भवन में एस्बेस्टस स्वतः ही फाइबर नहीं छोड़ता है, लेकिन यह स्वीकार किया है कि एस्बेस्टस फाइबर अपक्षय के कारण हवा, पानी और मिट्टी में प्रवेश कर सकते हैं। एनजीटी एनजीटी ने कहा कि ऐसे में किसी भी सकारात्मक विशिष्ट वैज्ञानिक साक्ष्य/सामग्री के अभाव में पूरे भारत के स्कूलों में एस्बेस्टस सीमेंट की छत शीट के उपयोग को तत्काल बंद करने का निर्देश देना उचित नहीं होगा।

    एनजीटी ने उक्त आदेश से एनजीटी ने कल्याणेश्वरी बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2011 के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने एस्बेस्टस के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ी याचिका खारिज कर दी थी।

    उक्त तथ्यों को देखते हुए एनजीटी न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी व पर्यावरण सदस्य डा. अफरोज अहमद की पीठ ने केंद्र सरकार व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को इस संबंध में मौजूद वैज्ञानिक साक्ष्य की छह महीने में समीक्षा करने व एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) तैयार करने का आदेश दिया।

    एनजीटी ने साथ ही केंद्र सरकार व सीपीसीबी को निर्देश दिया कि एटीआर में लिए गए नीतिगण पर एक दिशानिर्देश व मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) दिल्ली सहित सभी केंद्र शासित व राज्योें के मुख्य सचिव को भेजी जाए।

    एनजीटी के उक्त आदेश का -1981 में स्थापित हुए फाइबर सीमेंट उत्पाद निर्माता संघ (एफसीपीएमए) को बड़ी राहत मिली है। देश के राजस्व में संघ का 10,000 करोड़ का योगदान है और इसके अधीन तीन लाख से अधिक लोग आजीविका से जुड़े हैं।

    दिए ये अहम निर्देश:-

    • एस्बेस्टस के संपर्क में आने की संभावना वाले क्षेत्रों में धूम्रपान, खाना या पीना प्रतिबंधित होना चाहिए।
    • एस्बेस्टस युक्त धूल और मलबे की सूखी सफाई, फावड़ा चलाने या अन्य सूखी सफाई से बचना चाहिए।
    • एस्बेस्टस युक्त छत और बाउंड्री शीट्स लगाने, रखरखाव के लिए पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों को कम करने के लिए सुरक्षा प्रोटोकाल का कड़ाई से पालन किया जाए।
    • वर्तमान में लैंडफिलि साइट सबसे आम निपटान विधि है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि ये विशेष रूप से एस्बेस्टस अपशिष्ट के लिए डिजाइन हों, ताकि अन्य अपशिष्ट के साथ संपर्क में आने से रोका जा सके।

    यह है मामला

    एस्बेस्टर शीट के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग को लेकर याचिका दायर कर आवेदनकर्ता अमर कालोनी निवासी डा. राजा सिंह ने कहा कि कई बार ग्रामीण इलाकों में स्कूल की इमारतों में एस्बेस्टस शीट का इस्तेमाल किया जाता है। समय के साथ, एस्बेस्टस शीट भुरभुरी हो जाती हैं और इन शीट से एस्बेस्टस फाइबर निकलते हैं जो स्कूल की अंदरूनी हवा में फैल सकते हैं।

    इससे स्कूल में रहने वाले छोटे बच्चों सांस के जरिए अंदर ले सकते हैं। इससे सबसे बड़ी समस्या फेफड़ों की बीमारियों की होती है जोकि जानलेवा भी हो सकती हैं। एस्बेस्टस फाइबर के सांस के जरिए अंदर जाने से होने वाली बीमारियों की खासियत यह है कि इनमें देरी होने की अवधि बहुत ज्यादा होती है।