उमेश चतुर्वेदी। कांग्रेस दावा कर रही है कि मोदी सरकार का आम बजट उसके न्याय पत्र की कापी है। यह सही है कि कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष लोकसभा चुनाव में बेरोजगारी और अग्निवीर को एक मुद्दा बनाए था। युवाओं को लुभाने के लिए कांग्रेस ने डिप्लोमाधारी बेरोजगार युवाओं को सालाना एक लाख रुपये की वृत्ति पर इंटर्नशिप देने का वादा किया था, वहीं खाली पड़े तीस लाख पदों को जल्द भरने की भी बात कही थी। तेजस्वी यादव भी बिहार में सरकारी नौकरियों में बहाली का वादा और अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सरकारी भर्तियों में बार-बार पर्चा लीक होने का सवाल उठाते रहे।

माना जा रहा है कि इससे प्रभावित होकर युवाओं ने कांग्रेस की अगुआई में विपक्षी दलों को भाजपा की तुलना में ज्यादा वोट दिया। ऐसे में कोई नासमझ सरकार ही होगी, जो नाराज युवा वोटरों को साधने की कोशिश नहीं करेगी। मोदी सरकार ने बजट को इसका जरिया बनाया है। बजट में युवाओं के लिए इंटर्नशिप कार्यक्रम की घोषणा कांग्रेस की कथित युवा केंद्रित राजनीति का जवाब है। इसके तहत सरकार ने हर साल एक करोड़ युवाओं को पांच सौ कंपनियों में पांच हजार रुपये महीने की वृत्ति पर इंटर्नशिप देने का वादा किया है। उनको एकमुश्त छह हजार रुपये भी दिए जाएंगे। इसके साथ ही सालाना बीस लाख युवाओं को कुशल बनाने और उन्हें रोजगार दिलाने का प्रस्ताव किया गया है।

इंटर्नशिप और कौशल विकास के अलावा सरकार पहली नौकरी पाने वाले युवाओं को पहली सैलरी भी तीन किश्तों में देगी। हां, इसकी एक सीमा 15 हजार रुपये की होगी। सरकार का मानना है कि इस योजना का फायदा दो करोड़ 10 लाख युवाओं को मिलेगा। उच्च शिक्षा के लिए दस लाख रुपये तक का कर्ज लेने वाले उन छात्रों को भी सरकारी मदद दी जाएगी, जिन्हें कोई सरकारी फायदा नहीं मिल रहा है। इसके तहत हर साल एक लाख छात्रों को फायदा देने की कोशिश का प्रविधान किया गया है। इसके साथ ही रोजगार बढ़ाने के लिए केंद्र की ओर से हर नियोक्ता को हर अतिरिक्त कर्मचारी के पीएफ में योगदान के लिए दो साल तक प्रति माह 3000 रुपये तक की मदद देने का एलान

मामूली नहीं कहा जाएगा। साफ है कि सरकार बेरोजगारी को लेकर गंभीर है और विपक्षी सवालों के जवाब देने की कोशिश कर रही है। बजट इस दिशा में एक पहल है। संभव है ऐसे प्रयास आगे भी जारी रहेंगे।

मोदी सरकार के शपथ लेने के दिन से ही विपक्ष उसके गिरने की घोषणा कर रहा है। विपक्षी खेमा सरकार को समर्थन दे रहे दो प्रमुख दलों टीडीपी और जदयू को लगातार उकसाने की भी कोशिश कर रहा है। अल्पमत सरकार में अपनी अहमियत को जानते हुए दोनों दल भी परोक्ष दबाव बनाकर कुछ राजनीतिक सौदेबाजी कर रहे हैं। दोनों ही दल एक लंबे अर्से से अपने-अपने राज्यों को विशेष दर्जा देने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकारी मानदंडों के लिहाज से यह संभव नहीं था, तो सरकार ने नया रास्ता निकाल लिया। उसने बिहार को जहां 58 हजार 900 करोड़ का एकमुश्त पैकेज दिया, वहीं आंध्र प्रदेश को नई राजधानी के लिए 15 हजार करोड़ रुपये और दूसरी योजनाओं के लिए करीब 63 हजार करोड़ रुपये के बड़े बजट का एलान कर दिया। इन घोषणाओं के बाद नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की खुशी देखते ही बन रही है। इन घोषणाओं के जरिये केंद्र सरकार ने उकसावे के विपक्षी बारूद पर एक तरह से बर्फ डाल दिया है।

आजादी के बाद से अब तक हर चुनाव में गांवों का विकास और किसानों की बेहतरी राजनीतिक मुद्दा रहा है। वोट बैंक की राजनीति में किसान बड़े आधार रहे हैं। शायद यही वजह रही कि किसान संगठनों ने बीते चुनाव से ठीक पहले विपक्ष के लिए पिच तैयार करने की कोशिश की। इसका पंजाब और हरियाणा में असर भी दिखा। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन के बाद से ही भाजपा के लिए खेती-किसानी चिंता का विषय रही है। इस बार किसानों का बजट पिछली बार की तुलना में 27 हजार करोड़ बढ़ाकर एक लाख 52 हजार करोड़ कर दिया गया है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और देश के चार सौ जिलों के छह करोड़ किसानों की जमीनों का रिकार्ड तैयार करने का फैसला ऐसा है, जिसे अगर ईमानदारी से लागू कर दिया गया तो किसानों की स्थिति बदलने में बड़ी मदद मिलेगी। गांवों की बड़ी समस्या जमीनी विवाद हैं। जमीनों का रिकार्ड तैयार होने के बाद ये विवाद भी थमेंगे। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिला तो रासायनिक खादों और बीजों पर होने वाला खर्च कम होगा, सिंचाई खर्च भी बचेगा। उत्पाद बाजार में महंगी कीमत पर बिकेगा, जिसका फायदा आखिर में किसानों को मिलेगा। इसके साथ ही खेती, खासकर सब्जी और फलों की खेती में कारपोरेट और आधुनिकता को बढ़ावा देने के लिए खेती से जुड़े उपकरणों के आयात पर पांच प्रतिशत की छूट दी गई है। इन प्रविधानों के जरिये किसानों को लुभाने की भी कोशिश की गई है।

वास्तव में, भाजपा के अल्पमत में आने के बाद भी मोदी सरकार के कामकाज के तरीके में कोई बदलाव नहीं दिख रहा है। अतीत के दो कार्यकाल की तरह इस बार भी सरकार की छवि दबंग जैसी ही है। जिस तरह उसने बजट प्रस्तावों के जरिये विपक्ष को जवाब दिया है, उसे लेकर कहा जा सकता है कि नई परिस्थिति में सरकार नई चाल भी चल रही है और अपने सियासी मकसद को हासिल करने की कोशिश भी कर रही है। सरकार ने कांग्रेस के न्याय पत्र की कापी की हो या नहीं, लेकिन यह तय है कि उसी के हथियार से उसी को मात देने की कोशिश अवश्य की है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)