नए बजट का मजबूत आधार: सरकार को वित्तीय एवं श्रम सुधारों पर देना चाहिए ध्यान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले दस वर्षों में केंद्र सरकार ने लगातार वित्तीय अनुशासन दिखाया है। ऐसे में आगामी बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 5.1 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2025-26 में इसे 4.5 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य सराहनीय होगा। उम्मीद करें कि आगामी बजट आर्थिक सुधारों आर्थिक कल्याण और तेज विकास का आधार बनने वाला होगा।
डॉ. जयंतीलाल भंडारी। पिछले दिनों राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि राजग सरकार के तीसरे कार्यकाल में वित्त वर्ष 2024-25 का बजट ऐतिहासिक होगा। इसमें आर्थिक तथा सामाजिक मोर्चे पर बड़े एलान किए जाएंगे। इस बजट से सरकार सुधारों की प्रक्रिया को और तेज करेगी।
यह नई सरकार की नीतियों और भविष्य के दृष्टिकोण के लिहाज से बहुत ही प्रभावी दस्तावेज होगा। इसके लिए देश में कई क्षेत्रों में मजबूत आधार तैयार हो गए हैं, जैसे कि विगत में किए गए विभिन्न सुधारों से भारतीय बैंकिंग जगत विश्व के सबसे मजबूत बैंकिंग क्षेत्रों में शुमार हो गया है।
सरकार ने सार्वजनिक हिस्सेदारी वाले बैंकों को मजबूत किया और उनकी गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) को कम किया है। गरीब, युवा, महिलाएं और किसानों के कल्याण के लिए उठाए गए कदमों से इन वर्गों का तेजी से उत्थान हो रहा है। जीएसटी संग्रह औसतन दो लाख करोड़ रुपये मासिक हो गया है। मोदी सरकार ने विनिर्माण, सेवा और कृषि जैसे क्षेत्रों को भी बराबर तवज्जो दी है।
पिछले दस वर्षों में सरकार के मंत्र-रिफार्म, परफार्म एंड ट्रांसफार्म ने भारत को विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती हुई बड़ी अर्थव्यवस्था बनाया है। भारत ने 2021 से 2024 के बीच आठ प्रतिशत सालाना की दर से वृद्धि की है। यह दर अब और तेज होने की उम्मीद है। ऐसे में सरकार को अटके पड़े वित्तीय एवं श्रम सुधारों को आगामी बजट में आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, उद्योग जगत की लाजिस्टिक्स लागत घटाने, वैश्विक बाजार में भारतीय खाद्यान्नों की मांग बढ़ाने, किसानों की आय बढ़ाने तथा रोजगार सृजित करने वाले मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के विकास पर फोकस करना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि गत एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किया गया अंतरिम बजट एक लेखानुदान की तरह था। इसका उद्देश्य नई सरकार बनने तक की व्यय जरूरतों को पूरा करना था। अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने लोकलुभावन योजनाओं और रियायतों के रूप में कोई तोहफे नहीं दिए, बल्कि गरीबों, किसानों, महिलाओं, युवाओं, ग्रामीण विकास और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए अहम कदम उठाए गए।
इसने पूर्ण बजट के लिए एक सुदृढ़ आर्थिक और वित्तीय आधार तैयार करने का काम किया है। देखा जाए तो देश में पिछले 10 वर्षों में आयकर रिटर्न भरने वाले आयकरदाताओं की संख्या और आयकर की प्राप्ति में तेज वृद्धि हुई है। जहां पिछले 10 वर्षों में आयकर रिटर्न भरने वाले दोगुने से भी अधिक हुए हैं, वहीं आय की असमानता में भी कमी आई है।
देश में कर सुधारों से आयकरदाताओं की संख्या बढ़ाने और आयकर संग्रहण के साथ-साथ जीएसटी में लक्ष्य से भी अधिक वृद्धि होने की उम्मीद है। पिछले वर्षों में मोदी सरकार वित्तीय अनुशासन का पालन करते हुए राजकोषीय घाटे को बजट लक्ष्य के मुताबिक नियंत्रित रखने में काफी हद तक सफल रही है। ऐसे में आगामी बजट में गरीब, युवा, महिलाएं और किसानों के कल्याण के लिए नए उपाय किए जाने चाहिए। इसके लिए किसान सम्मान निधि की राशि बढ़ाई जा सकती है।
नए बजट में विनिवेश का लक्ष्य भी बढ़ाया जा सकता है। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को प्रोत्साहनमूलक राहत दी जा सकती है। विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देकर रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी करने के लिए सरकार पीएलआइ योजना का दायरा बढ़ाते हुए इसे नए क्षेत्रों तक विस्तृत कर सकती है। रियल एस्टेट सेक्टर को भी राहत दे सकती है। मोबाइल सेवा प्रदाताओं सहित विभिन्न उत्पादों और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विकास के लिए अधिक पूंजीगत व्यय के प्रविधान भी हो सकते हैं।
इन दिनों वेतनभोगी वर्ग का एक बड़ा तबका यह कहते हुए दिखाई दे रहा है कि पिछले बजट में उसे टैक्स संबंधी कोई उपयुक्त राहत नहीं मिली है। इस बीच महंगाई के साथ-साथ उनके जरूरी खर्चे बढ़ गए हैं। इस कारण उन्हें आयकर में राहत की अपेक्षा है। इसे देखते हुए बजट में छोटे आयकरदाताओं को राहत का एलान किया जा सकता है। वे
तनभोगी वर्ग को राहत की अपेक्षा इसलिए भी न्यायसंगत है, क्योंकि उसके द्वारा दिया गया कुल आयकर पेशेवरों एवं कारोबारियों द्वारा चुकाए गए कुल आयकर से काफी अधिक होता है। वेतनभोगी वर्ग के आयकर की कटौती आमदनी अर्जित करने के स्रोत पर की जाती है। इसे टीडीएस के रूप में जाना जाता है। टीडीएस के कारण वेतनभोगी अपने वेतन पर ईमानदारीपूर्वक आयकर चुकाते हैं और आमदनी को कम बताने की गुंजाइश नगण्य होती है।
इस परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि देश की कुल आबादी के दो प्रतिशत से भी कम लोग ही आयकरदाता हैं। देश में शून्य आयकर देयता वाले आइटी रिटर्न की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में नए बजट में आयकर से बचने वाले लोगों की खोज के साथ-साथ नए आयकरदाताओं को खोजने के लिए भी पुख्ता व्यवस्था करने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले दस वर्षों में केंद्र सरकार ने लगातार वित्तीय अनुशासन दिखाया है। ऐसे में आगामी बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 5.1 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2025-26 में इसे 4.5 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य सराहनीय होगा। उम्मीद करें कि आगामी बजट आर्थिक सुधारों, आर्थिक कल्याण और तेज विकास का आधार बनने वाला होगा। साथ ही यह भारत को 2027 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था तथा वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाने के सपने को साकार करने की एक मजबूत बुनियाद तैयार करने का काम करेगा।
(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)