सृजनपाल सिंह। पिछले एक दशक के दौरान मुझे भारत भर के स्कूलों, कॉलेजों और विभिन्न संस्थानों के लगभग पांच लाख से भी अधिक छात्रों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला है। प्रत्येक कार्यक्रम के बाद छात्र मुझसे विभिन्न विषयों पर प्रश्न पूछते रहते हैं। विगत एक-दो वर्षों में मैंने पाया है कि इन दिनों एक विशेष प्रश्न युवाओं के मन में चिंता बढ़ाता जा रहा है।

यहां तक कि छोटे-छोटे स्कूली बच्चे भी अब मुझसे पूछते हैं कि बढ़ते आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) के प्रभाव के चलते क्या भविष्य में उनको रोजगार के अवसर मिलेंगे? छात्र यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि क्या विश्व में अंततः सभी काम रोबोट द्वारा किए जाएंगे? मानव अस्तित्व का मूल्य कितने समय तक प्रासंगिक रहेगा? छात्रों के बीच यह नकारात्मक माहौल एक चिंता का विषय है। यह भी सत्य है कि इस प्रश्न के पीछे एक ठोस तथ्य है।

विश्व भर की अर्थव्यवस्थाएं, कंपनियां और सरकारें एआई से प्रभावित हो रही हैं और इसका सीधा परिणाम शिक्षा में बदलाव और रोजगार पर प्रभाव के रूप में दिख रहा है। इस युग में बच्चों के पालन-पोषण और मार्गदर्शन में माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। कई माता-पिता और शिक्षक एआई की तीव्र प्रगति और विभिन्न कार्यों में मनुष्यों की जगह लेने की इसकी क्षमता के बारे में निराशावादी हैं। यह सामूहिक भय बच्चों में व्यापक चिंता की भावना को जन्म दे रहा है।

हालांकि दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है कि आज के संदर्भों का उपयोग करके भविष्य की कल्पना करना विवेकपूर्ण नहीं है। मशीनें स्वयं को प्रशिक्षित कर रही हैं और विकसित हो रही हैं। स्वास्थ्य और शिक्षा से लेकर शासन, रक्षा और वित्त तक हर क्षेत्र में एआई और मशीन लर्निंग महत्वपूर्ण होती जा रही हैं। जिस गति से एआई मानवीय भूमिकाओं का स्थान ले रही है, भविष्य में कौन-सी नई नौकरियां बनेंगी और बढ़ेंगी और कौन-से क्षेत्र पूरी तरह से स्वचालित हो जाएंगे, इसका पूर्वानुमान लगाना शिक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि एआई की नवीनतम लहर से 300 करोड़ नौकरियां अगले पांच साल में प्रभावित होंगी और हमें अपने बच्चों को इस नई अर्थव्यवस्था के लिए तैयार करना होगा। ऐसे में हमें यह सोचने की जरूरत है कि आने वाले समय में हमें बच्चों को कौन-से कौशल प्रदान करने चाहिए, जिससे वे न सिर्फ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर रहें, बल्कि उनकी आज की चिंताओं को भी कम किया जा सके।

एआई से मुकाबला करने के लिए सबसे पहले हमें बच्चों में मौलिक कल्पना को जगाना और उसे बढ़ाना होगा। मशीनों में यह क्षमता नहीं होती और न ही निकट भविष्य में एआई से ऐसा संभव हो सकेगा। हमारा मस्तिष्क दो भागों में विभाजित है। बायां मस्तिष्क मौखिक, विश्लेषणात्मक और तार्किक है और दायां मस्तिष्क दृश्य, सहज और रचनात्मक है।

दिलचस्प बात यह है कि देश की हर प्रतियोगी परीक्षा जैसे कि जेईई, नीट, यूपीएससी या कैट आदि में से कोई भी रचनात्मक मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है। इसके अलावा स्कूलों, कालेजों और घरों में भी हमारा ध्यान मुख्य रूप से बच्चों के बाएं मस्तिष्क को विकसित करने पर केंद्रित हो गया है। इस पूरी कोशिश में हम भूल गए हैं कि आज एआई इसी बाएं मस्तिष्क वाले कौशल-विश्लेषण और तर्क में मानव को पीछे छोड़ते जा रही है।

ऐसे में अब यह आवश्यक हो गया है कि हम अपने बच्चों को प्रेरित करें कि वे अधिक रचनात्मक और कल्पनाशील बनें। जब कोई बच्चा अनोखा और मौलिक विचार लेकर आता है, चाहे वह कोई चित्र, क्राफ्ट, डिजाइन या विचार हो तो हम अक्सर उसकी सराहना करना भूल जाते हैं। ऐसा कर हम एक बड़ी गलती करते हैं। अगले दस वर्षों में कल्पनाशक्ति की मांग सभी क्षेत्रों में उच्च स्तर पर होगी।

इसके साथ-साथ हमें बच्चों में यह सोच दृढ़ करना होगा कि जितना जरूरी किसी ज्ञान को सीखना है, उतना ही आवश्यक समय बदलने पर विनम्रता के साथ उस ज्ञान को भूलकर नया ज्ञान अर्जित करना है। बौद्धिक अहंकार भविष्य में विषाक्त हो जाएगा, क्योंकि आने वाले समय में इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं रह जाएगी। आज हम जो कुछ भी सीखेंगे वह कल पुराना हो जाएगा। परिवर्तन को स्वीकार करके, उसके अनुकूल ढलना एक अनिवार्य कौशल होगा।

जब मैं किसी छोटे बच्चे में एआई के संभावित प्रभाव को लेकर भावनात्मक उथल-पुथल देखता हूं, तो मुझे विशेष चिंता होती है। लिहाजा हमें अपने विद्यार्थियों को मानसिक रूप से भी सुदृढ़ बनाना होगा। हम सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से हैं, जहां हमारे शास्त्र और हमारा ऐतिहासिक ज्ञान हमें मानसिक सहनशीलता का महत्व और भावनात्मक विकास के साथ किसी भी चुनौती पर विजय पाने की क्षमता सिखाते हैं। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में चिंतित अर्जुन को ज्ञान देकर कर्म पर ध्यान देने और व्याकुलता को दूर रखने का साहस दिया।

आज एआई के बढ़ते दौर में बच्चों के लिए यह ज्ञान प्रासंगिक है। दिलचस्प बात यह है कि अर्जुन यहां उन छात्रों के प्रतीक हैं, जो एआई के बढ़ते प्रभाव के कारण व्याकुल हैं और एआई के अनेक रूप उनकी आने वाली महाभारत है। हमारी सभ्यता का इतिहास यह दर्शाता है कि बदलते समय की चुनौतियों को पार करने के लिए मानसिक दृढ़ता महत्वपूर्ण है। हम एआई को नकार नहीं सकते। यह पहले से ही हमारे जीवन का हिस्सा है। हम इसे अपने जीवन और शिक्षा में शामिल कर सकते हैं और इसके सकारात्मक प्रभावों के साथ मानवता की सेवा कर सकते हैं। छात्रों को एआई को वृद्धि के एक उत्प्रेरक और साधन के रूप में स्वीकार करना चाहिए, न कि एक भय के रूप में।

(पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे लेखक कलाम सेंटर के सीईओ हैं)