विवेक देवराय और आदित्य सिन्हा। पिछली सदी के सातवें दशक तक दक्षिण कोरिया की दशा दयनीय रही, लेकिन आज यह छोटा सा देश विश्व की एक बड़ी आर्थिक शक्ति है। दक्षिण कोरिया ने आर्थिक कायाकल्प का यह मुकाम अपनी उच्च कोटि की प्रौद्योगिकी के दम पर हासिल किया और ऐसी तकनीक का सिरमौर बनने के लिए उसने शोध एवं विकास (आरएंडडी) की दिशा में निरंतर प्रयास किए।

राष्ट्रपति पार्क चंग-ही के नेतृत्व में सरकार ने उद्योगीकरण एवं तकनीकी उन्नयन पर ध्यान केंद्रित कर आर्थिक नियोजन के एक सिलसिले को शुरू करने की पहल की। इसके अंतर्गत कोरिया इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड टेक्नोलाजी (केआइएसटी) और कोरिया एडवांस्ड इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड टेक्नोलाजी (केएआइएसटी) जैसे संस्थानों की स्थापना की गई।

सैमसंग, हुंडई और एलजी जैसे कारोबारी दिग्गजों के जरिये कारपोरेट आरएंडी को प्रोत्साहन के साथ ही एसटीईएम-स्टेम (साइंस-टेक्नोलाजी-इंजीनियरिंग-मैथ्स) पर जोर देते हुए शैक्षणिक सुधारों, नवाचार के लिए कर रियायतों के दम पर दक्षिण कोरिया ने इलेक्ट्रानिक्स, आटोमोटिव और टेलीकम्युनिकेशन के मोर्चे पर ऊंची छलांग लगाई। इन प्रयासों से उसकी जीडीपी वृद्धि को तेजी के पंख लगे और देश ऊंची आय वाले राष्ट्रों की सूची में सम्मिलित हुआ। उसकी गिनती विश्व के सबसे इनोवेटिव देशों में होने लगी।

बीते कुछ वर्षों के दौरान चीन ने भी आरएंडडी में भारी निवेश किया है। इस प्रकार वह नवाचार और अकादमिक शोध के अग्रणी राष्ट्र के रूप में उभरा है। नेचर इंडेक्स 2024 के अनुसार चीन ने नवाचार के मोर्चे पर महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। दुनिया में जो उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक शोध प्रकाशित हो रहे हैं उसमें चीन की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत के साथ शीर्ष पर पहुंच गई है। उसने 21 प्रतिशत के योगदान वाले अमेरिका को इस मामले में पीछे छोड़ दिया है। चीन अपनी जीडीपी का करीब 2.4 प्रतिशत आरएंडडी पर खर्च करता है।

यह राशि सालाना 500 अरब डॉलरसे अधिक बैठती है। चीन के इन प्रयासों ने रंग लाना भी शुरू कर दिया है। वर्ष 2023 में उसने 15 लाख से अधिक पेटेंट का आवेदन किया जबकि अमेरिका से ऐसे छह लाख आवेदन ही हुए। इसके अतिरिक्त, सिंघुआ और पेकिंग जैसे दो चीनी विश्वविद्यालय शोध की गुणवत्ता के मामले में विश्व के शीर्ष दस संस्थानों में शामिल हो गए हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बायोटेक्नोलाजी और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों पर चीन ने जिस प्रकार ध्यान दिया है उससे एआइ से जुड़े शोधों एवं क्वांटम तकनीक को लेकर समझ के मामले में उसने अमेरिका को पछाड़ दिया है। इसने वैश्विक शोध एवं नवाचार के परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है।

भारत को भी दक्षिण कोरिया और चीन से सीख लेनी चाहिए। भारत ने अपनी स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का जो महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है वह आरएंडडी में निवेश बढ़ाकर ही संभव हो सकता है। इसी राह पर बढ़कर उत्पादकता एवं सक्षमता को बढ़ाने के साथ ही नए उद्योगों का सृजन किया जा सकता है।

यदि भारत को अपना आर्थिक दर्जा और प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ानी है तो उसे विभिन्न क्षेत्रों में आरएंडडी को प्राथमिकता के आधार पर बढ़ाना होगा। फिलहाल हम इस दिशा में पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे। अभी भारत अपनी जीडीपी का महज 0.6 से 0.7 प्रतिशत ही इस पर व्यय कर रहा है। जबकि चीन (जीडीपी का 2.4 प्रतिशत), इजरायल (4.9 प्रतिशत), दक्षिण कोरिया (3.26 प्रतिशत), जापान (3.26 प्रतिशत) और जर्मनी (3.09 प्रतिशत) जैसे देश हमसे कहीं ज्यादा खर्च कर रहे हैं।

कृषि केंद्रित अर्थव्यवस्था से खुद को उद्योग केंद्रित एवं सेवा केंद्रित आर्थिकी के रूप में रूपांतरित करने की दिशा में भारत के लिए तकनीकी उन्नयन अत्यंत आवश्यक है। आरएंडडी में कृषि, सेवा और विनिर्माण जैसे अर्थव्यवस्था के तीनों स्तंभों के लिए नई क्रांतिकारी तकनीकें विकसित कर समग्र उत्पादकता बढ़ाने की असीम क्षमताएं हैं। समय के अनुरूप बदलती आवश्यकताओं के लिहाज से भी आरएंडडी में निवेश बहुत उपयोगी सिद्ध होता है, क्योंकि इससे स्वयं को सदैव प्रासंगिक बनाए रखा जा सकता है।

आरएंडडी से जैव-प्रौद्योगिकी, अक्षय ऊर्जा, सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में कायापलट संभव है। इससे अर्थव्यवस्था को ज्ञान आधारित आर्थिकी बनाने में भी मदद मिलती है। ऐसी अर्थव्यवस्था भौतिक इनपुट के बजाय बौद्धिक क्षमताओं से अधिक संचालित होती है, जो समावेशी एवं सतत वृद्धि को पोषित करते हुए समाज को व्यापक रूप से लाभान्वित करती है।

पानी की किल्लत से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर भारत जिस प्रकार की अनूठी चुनौतियों से जूझ रहा है उनका तोड़ निकालने के लिए आरएंडडी में निवेश अत्यंत आवश्यक हो गया है। आरएंडडी की मदद से भारत कम पानी की खपत वाली कृषि पद्धतियां, किफायती स्वास्थ्य सेवा समाधान और सतत विकास के उपाय खोज सकता है। मानव पूंजी को बढ़ाने के लिए भी आरएंडडी में निवेश बढ़ाना जरूरी हो गया है। नवाचार और आर्थिक वृद्धि के लिए सुशिक्षित एवं कौशल से लैस कामकाजी आबादी भी चाहिए होती है। आरएंडडी से शिक्षा और कौशल विकास की स्थिति को भी व्यापक रूप से सुधारा जा सकता है।

शोध एवं विकास से जुड़े ढांचे को बेहतर बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एएनआरएफ) की स्थापना की है। इससे संबंधित कानून के अंतर्गत आरएंडडी प्रयोगशालाओं, विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों के जरिये देश भर में शोध एवं विकास को बढ़ावा दिया जाएगा। इस रणनीतिक पहल से देश में नवाचार की संस्कृति विकसित होने की उम्मीद है।

इससे विभिन्न स्रोतों से वित्तीय संसाधनों को जुटाने के साथ ही उद्योग, अकादमिक जगत और सरकारी संस्थाओं में समन्वय स्थापित होकर विभिन्न क्षेत्रों में शोध को प्रोत्साहन मिलेगा। आगामी केंद्रीय बजट में भी आरएंडडी को प्राथमिकता देते हुए उसके लिए संसाधन आवंटन करने पर ध्यान दिया जाए। तात्कालिक तौर पर इस मोर्चे पर जीडीपी का एक प्रतिशत तक खर्च बढ़ाकर एक अच्छी पहल की जा सकती है।

(देवराय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख और सिन्हा परिषद में ओएसडी-अनुसंधान हैं)