यह अच्छा तो है कि केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय यमुना को स्वच्छ करने के लिए एक नई योजना की रूपरेखा बना रहा है, लेकिन क्या ऐसी योजना तैयार करने के लिए दिल्ली में सत्ता परिवर्तन की प्रतीक्षा की जा रही थी। ऐसी कोई योजना तो पहले भी बनाई जा सकती थी।

प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों नहीं किया गया। क्या यमुना को स्वच्छ करना केंद्र सरकार की भी जिम्मेदारी नहीं थी। केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय की पहल पर भले ही यह कहा जा रहा हो कि यमुना की सफाई के काम को एक अभियान का रूप दिया जाएगा और उसे एक निश्चित समयसीमा में स्वच्छ किया जाएगा, लेकिन इस पर भरोसा करना इसलिए कठिन है, क्योंकि यमुना केवल दिल्ली में ही प्रदूषित नहीं है।

दिल्ली में प्रवेश करने के पहले ही वह प्रदूषित होनी शुरू हो जाती है। दिल्ली से लगते हरियाणा के इलाकों में कई कारखानों का बिना शोधित जल उसमें डाला जाता है। आखिर हरियाणा सरकार अपनी सीमा में यमुना को प्रदूषित होने से बचाने के अपेक्षित उपाय क्यों नहीं कर सकी।यह ठीक नहीं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के शासन के दौरान यमुना की सफाई का एजेंडा राज्य और केंद्र के झगड़े में उपेक्षित बना रहा।

नदियों को साफ-स्वच्छ करने को दलगत राजनीति का प्रश्न नहीं बनाया जाना चाहिए। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि अपने देश में अधिकांश नदियां बुरी तरह प्रदूषित हैं। उन्हें प्रदूषण से मुक्त करने में न तो राज्य सरकारें सफल हो पा रही हैं और न ही केंद्र। स्थिति यह है कि नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए आवश्यक बुनियादी काम भी नहीं हो पा रहे हैं।

यह किसी से छिपा नहीं कि नदियों के किनारे पर्याप्त संख्या में सीवेज शोधन संयंत्र स्थापित नहीं किए जा सके हैं और जो हैं भी, उनमें से अनेक पूरी क्षमता से काम नहीं करते। इस मामले में नगर निकायों का काम बेहद असंतोषजनक है। यही स्थिति प्रदूषण रोधी एजेंसियों की भी है, क्योंकि कल कारखानों को भी विषाक्त जल नदियों में छोड़ने से नहीं रोका जा पा रहा है।

इसका मूल कारण नौकरशाही की लापरवाही और सरकारों की ओर से राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय न दिया जाना है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि गंगा को भी पूरी तरह प्रदूषण मुक्त नहीं किया जा सका है। गत दिवस ही बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया कि राज्य में गंगा का जल स्नान के योग्य नहीं है।

जब देश की सबसे प्रमुख नदी की यह स्थिति है तो इसका अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य नदियों का क्या हाल होगा। उचित यह होगा कि राज्य और केंद्र सरकार, नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने के आश्वासन देकर कर्तव्य की इतिश्री न करें और यह समझें कि नदियों को साफ-स्वच्छ रखने का काम संतोषजनक नहीं।