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Kangana Ranaut के बाद राजनीति में कदम रखेंगे Randeep Hooda, बोले- कई सालों से मैं...

बॉलीवुड अभिनेता रणदीप हुड्डा ने हाल ही में इंटरव्यू में अपने निर्देशन और लेखन को लेकर बात की है। इसके साथ ही एक्टर ने बताया है कि उन्होंने 15 से 20 शॉर्ट स्टोरी लिख ली है। जब रणदीप से राजनीति में शामिल होने को लेकर सवाल किया गया तो चलिए जानते हैं कि स्वातंत्र्य वीर सावरकर एक्टर ने क्या कहा है।

By Jagran News Edited By: Rajshree Verma Updated: Sun, 16 Jun 2024 09:29 AM (IST)
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बॉलीवुड एक्टर रणदीप हुड्डा (Photo Credit: Instagram)

दीपेश पांडेय, मुंबई। फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ से फिल्म निर्माण और निर्देशन में भी उतरे अभिनेता रणदीप हुड्डा को अब निर्देशन और लेखन का चस्का लग चुका है। वह आगे और भी कहानियां निर्देशित करना चाहेंगे। निर्देशन और लेखन के अनुभवों पर उनसे बातचीत के अंश...

बतौर निर्देशक क्या अपने ही काम को रिजेक्ट करना और रीटेक कहना आसान रहा?

इस पर रणदीप (हंसते हुए) कहते हैं, ‘देखिए मैं फिल्मों में पिछले 23 साल से एक्टिंग कर रहा हूं। मैंने कभी अपने काम को मॉनिटर पर जाकर नहीं देखा था। मैंने हमेशा निर्देशक के नजरिए पर ही निर्भर रहकर काम किया है। ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ फिल्म में भी मैं अपनी परफॉर्मेंस और पात्र पर ध्यान बहुत कम दे पाया था, क्योंकि दूसरे लोगों पर और बाकी सारी चीजों पर भी ध्यान देना था।

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मेरे लिए तो अभी भी अपने टेक देखना बहुत मुश्किल होता है। शूटिंग के दौरान मैं अपने टेक तभी देखता था जब मुझे किसी सीन पर बहुत ज्यादा संदेह होता था, नहीं तो अपने अनुभवों के सहारे ही आगे बढ़ा। कैमरे के सामने और कैमरे के पीछे एक साथ दोनों काम करना बहुत मुश्किल होता है। अब संयोगवश निर्देशन का खून मेरे मुंह लग गया है तो अब लग रहा है कि आगे और फिल्में निर्देशित करनी पड़ेंगी।’

लगा लेखन का चस्का

कलम और लेखन से लगाव को लेकर रणदीप कहते हैं, ‘जब मेरी टांग टूट गई थी और मेरी फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ ठंडे बस्ते में चली गई थी तो मैं आठ सप्ताह तक बिस्तर पर पड़ा रहा। उस दौरान मैंने कहानियां लिखनी शुरू कर दी थीं। मैंने 15-20 लघु कहानियां लिख ली हैं।

उनमें से कुछ वर्सोवा के बारे में, कुछ मेरे आस-पास के लोगों के बारे में हैं। इस फिल्म से मुझे जो लेखन का चस्का लगा है, वो मेरे लिए फिल्म की सबसे बड़ी देन है। (हंसते हुए) पूरी जिंदगी लिखने-पढ़ने से बचने के लिए ही एक्टर बना था, अब पढ़ ही रहा हूं। वो भी पूरी बारीकी के साथ करना पड़ रहा है।

अब मुझे अपने विचारों को लिखने में बहुत मजा आने लगा है। मैं आस-पास की जिंदगी देखकर कई बार उसे अपने दृष्टिकोण से लिखता हूं। मुझे अपनी लिखावट की शैली बदलनी पड़ेगी, क्योंकि कहीं बाद में वह लोगों को मेरी ऑटोबायोग्राफी न लगने लगे।’

संपत्ति छुड़ाने का आया समय

बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ के लिए रणदीप ने अपनी संपत्ति भी गिरवी रख दी थी। अब उसे छुड़ाने पर वह कहते हैं, ‘मैंने इसके लिए कोई अपने पूर्वजों या बाप दादाओं की जमीन नहीं बेची थी। मेरे पिता ने मेरे ही पैसे बचाकर मेरे लिए जो एक-दो जगह जमीन ली थी, उन्हीं को मैंने फिल्म के लिए दांव पर लगाया था। हमारी फिल्म सफल रही। मैंने सोचा था कि फिल्म सहवाग (क्रिकेटर) होगी, लेकिन यह तो राहुल द्रविड़ निकली (फिल्म की कमाई धीमी रही)। हमारा काम अच्छा चल रहा है, अब सारी संपत्ति छुड़ाने का समय आ गया है।’

राजनीति नहीं, सिनेमा पर ध्यान

भविष्य में राजनीति से जुड़ने की संभावनाओं और राजनीति से जुड़ने के मिलने वाले प्रस्तावों को लेकर रणदीप कहते हैं, ‘कई वर्षों से मैं अपने फिल्मों में काफी व्यस्त रहा हूं। राजनीति भी अपने आप में एक करियर है, जो आपको लोगों की सेवा करना का मौका देती है। अभी मेरे अंदर बहुत सिनेमा बचा है, अभी तो मैं नया-नया निर्देशक बना हूं। अभी मेरी रुचि सिनेमा में ही है, सिनेमा भी एक तरह से देश के सोच, विचार, संस्कृति और इतिहास को समझने के लिए एक जरूरी माध्यम है।’

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