Hisar Assembly Seat: सावित्री जिंदल Vs कमल गुप्ता, निर्दलीयों की 'किलाबंदी' भाजपा-कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती
हिसार विधानसक्षा क्षेत्र प्रदेश की वह हॉट सीट है जिस पर मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। जहां एक और भाजपा के डॉ. कमल गुप्ता चुनावी मैदान में है तो उन्हें टक्कर देने के लिए देश की सबसे अमीर महिला सावित्री जिंदल बतौर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक रही हैं। इसके साथ ही कांग्रेस के रामनिवास टांडा और गौतम सरदाना भी जबरदस्त टक्कर देने के लिए तैयार है।
अमित धवन, हिसार। Hisar Assembly Seat: बागड़ बेल्ट का विधानसभा क्षेत्र हिसार। वर्ष 1354 में मुगल शासक फिरोजशाह तुगलक का बनाया किला राज्य के 15वें विधानसभा चुनावों में हॉट सीट बन गया है। इससे पहले भी कई बार इसे यह गौरव हासिल है। देश ही नहीं, एशिया की सबसे अमीर महिला सावित्री जिंदल यहां से निर्दलीय भाग्य आजमा रही हैं।
इनके अलावा भाजपा से निवर्तमान स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर कमल गुप्ता और कांग्रेस से रामनिवास राड़ा मैदान में हैं। भाजपा के पूर्व मेयर गौतम सरदाना और पूर्व जिला उपाध्यक्ष तरुण जैन भी निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं। यहां निर्दलीयों मजबूत किलाबंदी से पार पाना पार्टी प्रत्याशियों के लिए टेढ़ी खीर नजर आ रही है।
47 साल पहले निर्दलीय उतरे थे जिंदल
जिंदल परिवार का हिसार विधानसभा सीट पर वर्चस्व रहा है। 1968 में जिंदल परिवार से ओम प्रकाश जिंदल ने पहला चुनाव लड़ा था। 1977 में वह निर्दलीय चुनाव में उतरे थे। उसके बाद अब सावित्री जिंदल निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। वह इसे अपना आखिरी चुनाव कह रही हैं।
तीन समाज के प्रत्याशियों में रोचक मुकाबला
यहां वैश्य और पंजाबी समाज का वोट बैंक सबसे ज्यादा है। उसके बाद सैनी समाज का वोट बैंक आता है। इसमें वैश्य समाज से मुख्य रूप से तीन प्रत्याशी है तो पंजाबी समाज से पूर्व मेयर और सैनी समाज से कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव मैदान में है।
कमल गुप्ता और सावित्री जिंदल दो-दो बार बने विधायक
भाजपा के टिकट से चुनाव मैदान में उतरे डॉ. कमल गुप्ता 2014 में सावित्री जिंदल को हरा कर पहली बार विधायक बने थे। डॉ. कमल गुप्ता उसके बाद 2019 में विधायक बने और मंत्री रहे। वहीं सावित्री जिंदल 2005 में ओम प्रकाश जिंदल के निधन के बाद राजनीति में आईं और दो बार विधायक व मंत्री रहीं। 2014 में चुनाव हारने के बाद वह 10 साल तक राजनीति से दूर रहीं।
छह बार जीती कांग्रेस तो दो बार भाजपा
कांग्रेस ने यहां से छह बार जीत हासिल की है। इसमें चार बार तो जिंदल परिवार का सदस्य ही विधायक बना। पिछले दो चुनावों में भाजपा प्रत्याशी जीत रहे हैं। वैश्य, पंजाबी और सैनी समाज के नेताओं का ही कब्जा हुआ है।
राड़ा के सामने चुनौती
कांग्रेस के टिकट से चुनाव मैदान में आए रामनिवास राड़ा के सामने उनका समाज ही बड़ी चुनौती बना हुआ है। उनके समाज के काफी लोग साथ देने को तैयार नहीं है। वहीं भाजपा से सैनी समाज से मुख्यमंत्री होने के कारण पार्टी ने सेंध लगाई है।
सरदाना: लोगों में नाराजगी
पांच साल भाजपा से मेयर रहने के बाद गौतम सरदाना अपनी छाप पूरी तरह से नहीं छोड़ पा रहे हैं। लोग उनके कार्य पर सवाल उठा रहे हैं। साथ ही पंजाबी समाज भी बंटा है। पर्याप्त काम नहीं कराने के कारण मतदाताओं में नाराजगी भी है।
डॉ. कमल गुप्ता: अपनी पार्टी के नेता बने चुनौती
पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री डॉ. कमल गुप्ता के सामने उनकी पार्टी से निर्दलीय खड़े हुए तीन प्रत्याशी चुनौती दे रहे हैं। सावित्री जिंदल सहित अन्य नेताओं के आने के बाद वैश्य समाज बंट गया है। साथ ही पूर्व राज्यसभा सदस्य सुभाष चंद्रा भी उनसे दूरी बनाए हुए हैं।
इसलिए हॉट सीट 2014 के चुनाव में डॉ. कमल गुप्ता, सावित्री जिंदल और गौतम सरदाना आमने-सामने थे। उस समय तीनों अलग-अलग पार्टी से लड़े थे। इस बार डॉ. कमल गुप्ता भाजपा से और अन्य दोनों निर्दलीय के रूप में मैदान में है। कांग्रेस ने भी जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशी उतारा है।
सावित्री: 10 साल रहीं दूर
सावित्री जिंदल के 10 साल तक राजनीति से दूर रहने से उनके अपने समर्थक भी दूर हो गए थे। वह निर्दलीय हैं लेकिन अभी भी काफी कार्यकर्ता कांग्रेस या भाजपा से जुड़े हैं। साथ ही वैश्य समाज का वोट बैंक भी बंटा है तो पंजाबी समाज का वोट बैंक अपने दूसरे प्रत्याशी की तरफ देख रहा है।
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