रत्नावली ने हरियाणवी पगड़ी को विश्व में दिलाई पहचान, युवाओं में भी जबरदस्त क्रेज; देशभक्ति का दिया संदेश
रत्नावली प्रतियोगिता ने हरियाणवी पगड़ी को दुनियाभर में पहचान दिलाई है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शुरू हुई इस प्रतियोगिता में युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने इसे 2014 में पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता रत्नावली में शुरू की थी। पगड़ी को लोक जीवन में कई नामों से जाना जाता है। पगड़ी धारण करने की परंपरा भी अनादिकाल से चली आ रही है।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र। पगड़ी हरियाणा की लोक सांस्कृतिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। इसका इतिहास सदियों पुराना है। पगड़ी को लोक जीवन में पग, पाग, पग्गड़, पगड़ी, पगमंडासा, साफा, पेचा, फेंटा, खंडवा, खंडका नामों से जाना जाता है। साहित्य में पगड़ी को रूमालियो, परणा, शीशकाय, जालक, मुरैठा, मुकुट, कनटोपा, मदील, मोलिया और चिंदी आदि नामों से जाना जाता है।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शुरू हुई रत्नावली
पगड़ी की परंपरा धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग ने पगड़ी की परंपरा को बनाए रखने व इसे जीवंत करने के लिए वर्ष 2014 में पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता रत्नावली में शुरू की। आज हरियाणवी पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता में अनेक युवा एवं युवतियां भाग ले रहे हैं। युवाओं में पगड़ी बांधने के प्रति विशेष उत्साह है।
'सिर को सुरक्षित रखने के लिए होता है पगड़ी का प्रयोग'
कुवि लोक संपर्क विभाग के निदेशक प्रो. महासिंह पूनिया ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड क्राफ्ट मेला, अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव तथा हरियाणा के सभी उत्सवों में पगड़ी का उत्साह देखने को मिलता है। यह उत्साह युवक व युवतियों में विशेष रूप से देखने को मिलता है।
उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में सिर को सुरक्षित ढंग से रखने के लिए पगड़ी का प्रयोग किया जाने लगा। पगड़ी को सिर पर धारण किया जाता है। इस परिधान को सभी परिधानों में सर्वोच्च स्थान मिला।
अनादिकाल से धारण की जाती है पगड़ी
वास्तव में पगड़ी का मूल ध्येय शरीर के ऊपरी भाग (सिर) को सर्दी, गर्मी, धूप, लू, वर्षा आदि विपदाओं से सुरक्षित रखना रहा है, किंतु धीरे-धीरे इसे सामाजिक मान्यता के माध्यम से मान और सम्मान के प्रतीक के साथ जोड़ दिया गया, क्योंकि पगड़ी सिरोधार्य है। पगड़ी के अतीत के इतिहास में झांक कर देखें, तो अनादिकाल से ही पगड़ी को धारण करने की परंपरा रही है।
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