पट्टे पर खेती करने वाले किसानों के लिए खुशखबरी, फसल नुकसान होने पर मिलेगा मुआवजा; विधानसभा में पास हुआ बिल
हरियाणा में पट्टे की जमीन पर खेती करने वाले किसानों के लिए बड़ी खबर है। अब वे भी फसली ऋण ले सकेंगे और प्राकृतिक आपदा से फसल खराब होने पर मुआवजा पा सकेंगे। विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित कृषि भूमि पट्टा विधेयक से पट्टेदार किसानों को कई लाभ मिलेंगे। इस बिल पर किसी विपक्षी विधायक ने सवाल नहीं खड़े किए।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा में पट्टे (ठेके) की जमीन पर खेती करने वाले किसान भी अब फसली ऋण ले सकेंगे। ठेके की जमीन पर लगी फसल अगर प्राकृतिक आपदा के कारण खराब होती है तो सरकार या बीमा कंपनी की ओर से मुआवजा भूमि मालिक की जगह पट्टेदार को दिया जाएगा। गिरदावरी में पट्टेदार किसान को भू-मालिक नहीं दिखाकर अलग कालम में पट्टेदार ही दिखाया जाएगा, जिससे भविष्य में विवाद की कोई गुंजाइश भी नहीं रहेगी।
मंत्री विपुल गोयल ने रखा था प्रस्ताव
कृषि भूमि को पट्टे पर देने को वैधानिक बनाने के लिए मंगलवार को हरियाणा के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री विपुल गोयल ने कृषि भूमि पट्टा विधेयक सदन में रखा, जिसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने नए कानून की प्रशंसा की। इस बिल की खास बात यह थी कि किसी भी विपक्षी विधायक ने इस पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया। हुड्डा द्वारा बिल की सराहना किये जाने पर राजस्व मंत्री विपुल गोयल ने उनकी सराहना की।
बिल पर चर्चा के दौरान विपुल गोयल ने कहा कि कृषि भूमि को पट्टे पर देने की मान्यता के लिए एक तंत्र बनाने, कृषि भूमि को पट्टे पर देने की अनुमति देने, उसे सुगम बनाने, भूमि स्वामियों के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए यह कानून जरूरी था।
पट्टाकर्ता और पट्टेदार दोनों की हितों की रक्षा के लिए बनाई व्यवस्था
अमूमन भू-स्वामी द्वारा पट्टे पर जमीन दी जाती है। इस आंशका के कारण कि पट्टेदार कब्जा अधिकारों की मांग कर सकता है, भू-मालिक अक्सर हर साल पट्टेदार बदल देता है या उसे बंजर रख देता है। इससे कृषि उत्पादन को हानि होती है।यही नहीं, पट्टाकर्ता अपनी भूमि को लिखित रूप में पट्टे पर देने में संकोच करता है और पट्टेदार के साथ अलिखित समझौते को प्राथमिकता देता है। इसके परिणामस्वरूप पट्टेदार को प्राकृतिक आपदा के समय केंद्र अथवा राज्य सरकार से मिलने वाली किसी राहत राशि को पाने से वंचित कर दिया जाता है।फसल ऋण भी नहीं मिल पाता। भूमि संसाधनों के अधिकतम उपयोग करने तथा पट्टाकर्ता व पट्टेदार दोनों के हितों की रक्षा करने के लिए पट्टा राशि पर भूमि देने की कानूनी व्यवस्था बनाई गई है।
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