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मां के साथ भीख मांगने वाली पिंकी बनी डॉक्टर, पिता करते थे मोची का काम

टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक भिक्षु लोबसांग जामयांग ने भीख मांगने वाली पिंकी हरयान के जीवन में बदलाव लाया। आज पिंकी एक सफल चिकित्सक हैं। पिंकी अपनी मां के साथ भीख मांगती थी। भिक्षु ने पिंकी की जिंदगी बदलने का फैसला कर लिया। उन्होंने काफी मेहनत से पढ़ाई की। पिंकी डॉक्टर बनकर गरीबों की मदद करना चाहती है। जानिए उनकी प्रेरणादायक कहानी।

By Jagran News Edited By: Sushil Kumar Updated: Fri, 04 Oct 2024 01:02 PM (IST)
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भिक्षु जामयांग ने बदली जिंदगी, मां के साथ भीख मांगने वाली पिंकी बनी डॉक्टर।
दिनेश कटोच, धर्मशाला। 'करीने से तराशा ही न जाए तो किसी पहलू कहां हीरा चमकता है'। फराग रोहवी का यह शेर तिब्बती शरणार्थी एवं टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक भिक्षु लोबसांग जामयांग पर सटीक बैठता है। उनके प्रयास से ही कभी भीख मांगने वाले हाथ अब लोगों का दर्द दूर करेंगे। हम बात कर रहे हैं 20 वर्ष पहले मैक्लोडगंज स्थित बौद्ध मंदिर के पास भीख मांगने वाली पिंकी हरयान की।

उस समय पिंकी की उम्र साढ़े चार साल थी और वह मां के साथ भीख मांगती थी। बच्ची की हालत देखकर लोबसांग जामयांग ने उसका भविष्य संवारने की ठानी। यह भिक्षु के तप का ही परिणाम है कि आज पिंकी हरयान चिकित्सक बनी हैं। वर्ष 2017 में जब पिंकी ने जमा दो की परीक्षा पास की थी।

टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट के हॉस्टल में पिंकी ने की पढ़ाई

इस दौरान मेधावी पिंकी ने कहा था कि वह चिकित्सक बनकर टोंगलेन संस्था व गरीबों की मदद करना चाहती है। बकौल पिंकी, वह माता-पिता के साथ धर्मशाला के समीप चरान खड्ड क्षेत्र में झुग्गी-झोपड़ी में रहती थी। जामयांग ने बूट पॉलिश करने वाले उसके पिता कश्मीरी लाल से अनुरोध किया कि उसे टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट के छात्रावास में भेज दें।

अन्य बच्चों के साथ पिंकी का लगा मन

शुरुआत में माता-पिता ने इन्कार किया लेकिन बाद में राजी हो गए। चिकित्सक पिंकी ने बताया कि शुरुआत में छात्रावास में स्वजन की बहुत याद आई लेकिन बाद में अन्य बच्चों के साथ मन लग गया। इस दौरान जामयांग ने धर्मशाला स्थित दयानंद माडल स्कूल में अन्य बच्चों के साथ पिंकी का भी दाखिला करवा दिया और यहां जमा दो तक पढ़ाई की।

लोबसांग जामयांग बच्चों को पैसा कमाने की मशीन बनाने के बजाय अच्छा इंसान बनाते हैं। उन्होंने धर्मशाला और आसपास के क्षेत्रों में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए अपनी सारी जिंदगी समर्पित कर दी है। जो बच्चे भीख मांगते थे वे आज चिकित्सक, इंजीनियर, पत्रकार और होटल मैनेजर बने हैं।

- प्रो. अजय श्रीवास्तव, अध्यक्ष उमंग फाउंडेशन शिमला एवं टोंगलेन से जुड़े हुए।

पिंकी पढ़ाई में शुरू से बहुत अच्छी थी। जमा दो की पढ़ाई के बाद पिंकी ने नीट भी उत्तीर्ण कर लिया था और उसे किसी गैरसरकारी कॉलेज में प्रवेश मिल सकता था, लेकिन वहां फीस बहुत अधिक थी। मैंने पिंकी को चीन के एक प्रतिष्ठित मेडिकल विश्वविद्यालय में 2018 में दाखिला करवाया। वहां छह साल एमबीबीएस की पढ़ाई कर अब पिंकी धर्मशाला लौट आई हैं।

-लोबसांग जामयांग, संस्थापक टोंगलेन चैरिटेबल ट्रस्ट


जब छात्रावास में रहने लगी तो मां को भी भीख मांगने से मना किया। पिता जी भी बूट पॉलिश का काम छोड़ गलियों में सामान बेचने लगे। मेरा छोटा भाई और बहन भी आधुनिक सुविधाओं से लैस टोंगलेन स्कूल में पढ़ते हैं। मुझे सफलता जामयांग और टोंगलेन की पूरी टीम के सहयोग से मिली है।
-पिंकी हरयान, चिकित्सक

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