शिमला के कमला नेहरू अस्पताल में अचानक ठप हो गई टेस्ट जांच व्यवस्था, वैकल्पिक लैब या बैकअप मशीन भी नहीं
शिमला के कमला नेहरू अस्पताल में टेस्ट जांच व्यवस्था ठप होने से मरीजों को भारी परेशानी हो रही है। क्रस्ना लैब में रूटीन टेस्ट बंद होने से नवजात शिशुओं के टेस्ट भी नहीं हो पा रहे। मरीजों को निजी लैब में अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं, जिससे उन पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि मशीन में खराबी आई है, जिसे ठीक करने का प्रयास किया जा रहा है।

शिमला के केएनएच में अचानक टेस्ट सेवा ठप हो गई है। प्रतीकात्मक फोटो
जागरण संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश के शिमला शहर में प्रमुख मातृ एवं शिशु कमला नेहरू अस्पताल (केएनएच) में टेस्ट जांच व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। क्रस्ना लैब में रूटीन से लेकर अहम मेडिकल टेस्ट बंद हो चुके हैं। हालात इतने गंभीर हैं कि नवजात शिशुओं के आधे से ज्यादा टेस्ट अस्पताल में नहीं हो पा रहे हैं।
नवजातों से लेकर माताओं को निजी लैब के हवाले छोड़ा गया है। मरीजों और उनके परिवारों को लाचार होकर महंगी निजी लैब की ओर जाना पड़ रहा है। अस्पताल में रविवार शाम से टेस्ट सेवाएं बाधित हैं, जिस कारण दूरदराज से आए मरीज अब गंभीर आर्थिक बोझ का सामना कर रहे हैं।
यहां रोजाना होता है 20-30 बच्चों का जन्म
केएनएच पूरे प्रदेश के लिए मातृ एवं नवजात देखभाल का सबसे बड़ा केंद्र है, जहां रोजाना 20-30 बच्चों का जन्म होता है। जन्म के तुरंत बाद कई महत्वपूर्ण जांच की जाती हैं, जिनसे बीमारी, संक्रमण या किसी भी जटिलता का पता चलता है। लेकिन अब आधे से अधिक टेस्ट ठप पड़ जाने से नवजातों की स्वास्थ्य सुरक्षा पर सीधे खतरे के हालात बन गए हैं।
निजी लैब में करनी पड़ रही जेब ढीली
कई स्वजन ने बताया कि डाक्टरों द्वारा तत्काल टेस्ट करवाने को कहा जाता है, लेकिन अस्पताल के भीतर सुविधा बंद होने के कारण उन्हें इनके लिए बाहर निजी लैब में तीन से पांच गुना तक अधिक पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर है, उनके लिए यह स्थिति किसी संकट से कम नहीं है।
बुनियादी रूटीन टेस्ट भी नहीं
क्रस्ना लैब बंद होने से अस्पताल में साधारण एलएफटी, आरएफटी, सीडीएच, लिपिड प्रोफाइल, शुगर सहित तमाम बुनियादी रूटीन टेस्ट उपलब्ध नहीं हैं। ये टेस्ट न केवल ओपीडी मरीजों के लिए आवश्यक हैं बल्कि अस्पताल में भर्ती महिलाओं और बच्चों की निगरानी के लिए भी अनिवार्य होते हैं। अब स्थिति यह है कि जिन टेस्ट पर अस्पताल में एक रुपया भी खर्च नहीं होता था, वहीं इनके लिए निजी लैब में जाना मजबूरी है। कई पैथोलाजी प्रोफाइल के 1500 से 3000 रुपये तक निजी लैब संचालक वसूल कर रहे हैं। स्वजन का कहना है कि इलाज निश्शुल्क होने की जगह महंगा होता जा रहा है क्योंकि टेस्ट करने के लिए अस्पताल से हमें बाहर भेजा दिया जाता है।
वैकल्पिक लैब या बैकअप मशीन नहीं
अस्पताल में रोजाना 20 से 30 डिलीवरी, 50 नए मरीज भर्ती होने के साथ 300 से अधिक ओपीडी मरीज आते हैं। इतने दबाव वाले अस्पताल में जांच सुविधा का अचानक गायब होना दिखाता है कि पूरी व्यवस्था कितनी कमजोर और मशीनों पर निर्भर है। मरीजों का कहना है कि अस्पताल में संसाधनों के बावजूद वैकल्पिक लैब या बैकअप मशीन तक नहीं रखी गई है जिस कारण उन्हें बाहर ठोकरें खानी पड़ रही हैं।
यह भी पढ़ें: हिमाचल: जमीन का कब्जा लेने गई बघाट बैंक की टीम, तारीख देने के बावजूद नहीं पहुंचे राजस्व कर्मचारी; गरमाया मामला
अस्पताल प्रशासन की सफाई-मशीन खराब है
अस्पताल के एमएस डा. सुंदर नेगी ने स्वीकार किया कि मशीन में तकनीकी खराबी आई है। इंजीनियर को बुलाया गया है। उनके आने के बाद मशीन को जल्द ठीक किया जाएगा। हालांकि मशीन कब तक ठीक होगी, इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया। प्रशासन की यह अस्पष्टता लोगों की नाराजगी और चिंता बढ़ा रही है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।