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    भारत के भूकंप जोखिम मानचित्र में बड़ा बदलाव, क्या है जम्मू-कश्मीर के पूरी तरह जोन-छह में शामिल होने का मतलब?

    By Satnam Singh Edited By: Rahul Sharma
    Updated: Tue, 02 Dec 2025 11:27 AM (IST)

    भारतीय मानक ब्यूरो ने जम्मू-कश्मीर को भूकंप के सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्र-छह में शामिल किया है। यह बदलाव 2025 अर्थक्वेक डिजाइन कोड का हिस्सा है और हिमालयी क्षेत्र को उच्च खतरे वाली श्रेणी में रखता है। विशेषज्ञों ने नए मानकों को अपनाने और भू-वैज्ञानिक मूल्यांकन को अनिवार्य करने की बात कही है, ताकि भविष्य में संभावित आपदाओं से बचा जा सके। 

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    यह मानचित्र तत्काल भूकंप की भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि तैयारी का अवसर है।

    राज्य ब्यूरो, जम्मू। भारत के भूकंपीय जोन मानचित्र में जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह नए निर्मित सर्वोच्च जोखिम वाले ज़ोन-छह में शामिल किया गया है।

    यह मानचित्र, जिसे कुछ दिन पहले भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा जारी 2025 अर्थक्वेक डिजाइन कोड के हिस्से के रूप में प्रकाशित किया गया, देश में भूकंप खतरे के मूल्यांकन में दशकों बाद सबसे महत्वपूर्ण बदलाव माना जा रहा है।

    नए वर्गीकरण में संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र, जिसमें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के सभी जिले शामिल हैं, को शीर्ष खतरे की श्रेणी में रखा गया है।

    नया भूकंपीय मानचित्र प्रोबेबिलिस्टिक सिस्मिक हैज़र्ड असेसमेंट ( पीएसएचए) पर आधारित है, जिसमें फाल्ट, अधिकतम संभावित रप्चर, भूमि कंपन के व्यवहार और भूविज्ञान जैसे विस्तृत वैज्ञानिक इनपुट शामिल हैं। ये आधुनिक पद्धतियां पुराने मॉडलों की जगह लेती हैं, जो मुख्यतः ऐतिहासिक भूकंपों, मिट्टी की श्रेणियों और पूर्व नुकसान के रिकॉर्ड पर निर्भर थे।

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    विशेषज्ञों के अनुसार, यह संशोधन हिमालयी पट्टी में लंबे समय से मौजूद विसंगतियों को ठीक करता है, जहां पहले समान टेक्टॉनिक जोखिम होने के बावजूद क्षेत्र को ज़ोन-छह और ज़ोन-पांच में बांटा गया था।

    नए निर्माण के लिए भू-वैज्ञानिक मूल्यांकन अब अनिवार्य होगा

    वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. विनीेत गहलौत ने कहा कि नया वर्गीकरण आखिरकार उन लंबे समय से निष्क्रिय लेकिन तनाव जमा कर रहे भ्रंश-खंडों के खतरे को स्वीकार करता है, खासकर मध्य हिमालय में।

    उन्होंने कहा कि पिछली जोन इन इन लॉक्ड सेगमेंट्स की क्षमता का सही मूल्यांकन नहीं कर पाई थी, जिनमें से कई ने लगभग दो शताब्दियों से कोई बड़ा सतही रप्चर वाला भूकंप नहीं उत्पन्न किया है।

    नए मानकों में लिक्विफैक्शन जोखिम, मिट्टी की लोच पर विशेष जोर दिया गया है। संवेदनशील जिलों में नए निर्माण के लिए भू-वैज्ञानिक मूल्यांकन अब अनिवार्य होगा। अस्पतालों, स्कूलों, पुलों और सरकारी भवनों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को ऐसे डिजाइन करना होगा कि बड़े भूकंप के बाद भी उनकी कार्यक्षमता बनी रहे और आपात सेवाएं निर्बाध रूप से जारी रह सकें।

    भारत का 61% हिस्सा मध्यम से उच्च भूकंप जोखिम वाले क्षेत्रों में

    नए मानचित्र के अनुसार अब भारत का 61% हिस्सा मध्यम से उच्च भूकंप जोखिम वाले क्षेत्रों में आता है।
    विशेषज्ञों और अधिकारियों ने जम्मू-कश्मीर के इंजीनियरों, प्लानरों और स्थानीय निकायों से अपील की है कि वे नए कोड को तुरंत अपनाएं।

    विशेषज्ञों ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मानचित्र किसी तत्काल भूकंप की भविष्यवाणी नहीं है, बल्कि एक वैज्ञानिक चेतावनी है और जम्मू-कश्मीर के लिए अभी से तैयारी करके भविष्य की संभावित आपदा से पहले लचीला ढांचा विकसित करने का अवसर भी।