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जम्मू-कश्मीर में आरक्षण पर सियासत, नई रिजर्वेशन पॉलिसी सियासी दलों को नहीं आ रही रास

नई आरक्षण नीति सियासी दलों को रास नहीं आ रही है और आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत के भीतर समेटने की मांग उठा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद केंद्र सरकार ने पहली बार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। इसके अलावा पहाड़ियों व अन्य जनजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर उन्हें सामाजिक तौर पर सशक्त बनाने का प्रयास किया।

By Jagran News Edited By: Jeet Kumar Updated: Fri, 22 Nov 2024 05:45 AM (IST)
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जम्मू-कश्मीर में नई रिजर्वेशन पॉलिसी सियासी दलों को नहीं आ रही रास (फोटो- पीटीआई)
नवीन नवाज, जागरण, जम्मू। विशेष दर्जे की उठापटक के बाद अब जम्मू-कश्मीर की सियासत आरक्षण के मुद्दे पर उबाल लेने लगी है। नई आरक्षण नीति सियासी दलों को रास नहीं आ रही है और आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत के भीतर समेटने की मांग उठा रहे हैं। नेकां के भीतर भी आरक्षण नीति में बदलाव की आवाज उठ रही है और नेकां सांसद आगा सैयद रुहुल्ला ने प्रदेश सरकार को 22 दिसंबर तक का अल्टीमेटम देते हुए मुख्यमंत्री आवास पर धरने की चेतावनी दी है।

आरक्षण पर कांग्रेस व भाजपा जैसे दल चुप

पीडीपी व अन्य कश्मीरी दलों का सुर भी कुछ ऐसा ही है। हालांकि कांग्रेस व भाजपा जैसे दल चुप हैं। यहां बता दें कि जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद केंद्र सरकार ने पहली बार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। इसके अलावा पहाड़ियों व अन्य जनजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर उन्हें सामाजिक तौर पर सशक्त बनाने का प्रयास किया।

ऐसे में आरक्षण का दायरा बढ़कर 60 प्रतिशत के करीब जा पहुंचा है। पूर्व में यह लगभग 43 प्रतिशत था। ऐसे में नेकां और पीडीपी का आरोप है कि सामान्य वर्ग को शिक्षण संस्थान और नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। इन दलों ने विधानसभा चुनाव में भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा था और चुनाव के बाद नई आरक्षण नीति की समीक्षा का आश्वासन भी दिया था। अब सरकारी नौकरियां आने की खबर से पूर्व ही आरक्षण का मुद्दा गर्मी पकड़ने लगा है।

लेक्चरर भर्ती की सुगबुाहट के साथ उठा मुद्दा

जम्मू-कश्मीर के शिक्षा विभाग में लेक्चरर के 575 पदों पर भर्ती की तैयारी है। इनमें सामान्य वर्ग के 238, एससी के 51, एसटी-1 के 61, एसटी-2 के 56, एएलसी के 26, आरबीए के 51, ओबीसी के 42, ईडब्ल्यूएस के 48 पद भरे जाने हैं। भर्ती की तैयारियों की खबर बाहर आने के बाद से ही आरक्षण का मुद्दा उठने लगा है। 2020 में पहाड़ी भाषियों को चार प्रतिशत आरक्षण मिला जनवरी 2020 में जम्मू कश्मीर में तत्कालीन उपराज्यपाल जीसी मुर्मु ने पहाड़ी भाषियों के लिए चार प्रतिशत का आरक्षण तय कर दिया।

वर्ष 2024 में पहाड़ियों व अन्य जनजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्रदान कर दिया गया। साथ ही वंचित वर्ग को समाप्त कर अन्य पिछड़ा वर्ग को परिभाषित कर उनके कोटे में बदलाव किया गया। एसटी को दो वर्गों में एसटी-1 और एसटी-2 में बांटा गया है ताकि गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को पहले से मिल रहे आरक्षण में कोई कटौती न हो।

सामान्य वर्ग के लिए 50 प्रतिशत अवसर उपलब्ध

मार्च 2024 से पहले यह थी व्यवस्था मार्च 2024 से पहले तक सरकारी विभागों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण कोटे के मुताबिक एससी के लिए आठ, एसटी के लिए 10, कमजोर व अन्य सामाजिक जातियां एवं वंचित वर्ग के लिए चार, एएलसी आइबी के लिए चार, आरबीए के लिए 10, पहाड़ी भाषी समुदाय के लिए चार, ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत का आरक्षण था। तब सामान्य वर्ग के लिए 50 प्रतिशत अवसर उपलब्ध रहते थे।

मार्च 2024 के बाद नई व्यवस्था मार्च 2024 में पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने और अन्य सामाजिक जातियों को ओबीसी में परिभाषित करने के बाद जम्मू कश्मीर में एससी के लिए आठ, एसटी-1 के लिए 10, एसटी-2 के लिए 10, ओबीसी के लिए आठ, एएलसी आइबी के लिए चार, आरबीए और ईडब्ल्यूएस के लिए 10-10 प्रतिशत आरक्षण हो गया और सामान्य वर्ग के लिए 40 प्रतिशत स्थान रह गए।

पुंछ-राजौरी में सबको कोई न कोई कोटा

जम्मू-कश्मीर मामलों के जानकार सैयद अमजद शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी नियोक्ता सरकार ही है। इसलिए आरक्षण बड़ा मुद्दा बन रहा है। जिसे कोटे से बाहर करना चाहेंगे वही खिलाफ हो जाएगा। मौजूदा परिस्थितियों में राजौरी-पुंछ में शायद ही ऐसा कोई निवासी होगा जो आरक्षित वर्ग से बाहर होगा। दोनों जिलों में काफी बड़ी आबादी एसटी-1 और एसटी-2 वर्ग में आएगी। जो बचेगा वह एससी या ओबीसी कोटे या फिर एएलसी कोटे का लाभ उठाएगा। अगर फिर भी बच गया तो वह ईडब्ल्यूएस कोटे में शामिल होगा।

जम्मू कश्मीर की 69 प्रतिशत आबादी सामान्य वर्ग में

वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर जम्मू कश्मीर की 69 प्रतिशत आबादी सामान्य वर्ग में आती है। आरक्षण का मामला बहुत संवेदनशील है। यह पूरी तरह से राजनीतिक-सामाजिक मुद्दा है। इसमें किसी भी तरह की चूक सरकार के लिए भारी हो सकती है। इसलिए कांग्रेस, भाजपा इस मुद्दे पर चुप हैं और राज्य सरकार के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं। -सैयद अमजद शाह, जम्मू कश्मीर के मामलों के जानकार

आरक्षण व्यावहारिक होना चाहिए। ईडब्ल्यूएस सिर्फ सामान्य वर्ग में ही नहीं हैं। हम चाहते हैं कि आबादी के अनुपात के आधार पर इसे किया जाए। सामान्य वर्ग के लोगों के लिए अवसर सीमित होते जा रहे हैं। आरक्षण नीति की समीक्षा हो। यह समानता के अधिकार की बात है। -वहीद उर रहमान परा, पीडीपी के विधायक

सरकार को समाधान खोजने के लिए कुछ समय देना चाहिए

उम्मीद है कि सरकार जल्द इस मामले को हल करेगी। सरकार को समाधान खोजने के लिए कुछ समय देना चाहिए। मैंने स्वयं मुख्यमंत्री से बात की है। 22 दिसंबर तक संसद सत्र के समाप्त होने का इंतजार करें। अगर तब तक निर्णय नहीं होता है, तो मैं मुख्यमंत्री के आवास या कार्यालय के बाहर धरने पर बैठूंगा। -आगा सैयद रुहुल्ला, सांसद, नेशनल कान्फ्रेंस

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