अच्छी खबर: अब पराली नहीं फैलाएगी प्रदूषण, ऊर्जा का नया स्रोत बन लाएगी खुशहाली
अब पराली प्रदूषण नहीं फैलाएगी बल्कि ऊर्जा का नया स्रोत बनकर खुशहाली लाएगी। आईआईटी-आईएसएम धनबाद ने ऐसी तकनीक विकसित करने में सफलता हासिल की है जिससे पराली से ग्रीन ईंधन रसोई गैस यूरिया और कार्बन नैनो ट्यूब बनाया जा सकता है। इससे देश की आर्थिक समृद्धि में मदद मिलेगी। इसके साथ ही पराली के प्रदूषण से भी राहत मिल सकेगी।
शिशिर संतोष, धनबाद। पराली अब प्रदूषण का कारण नहीं बन पाएगी। यह ऊर्जा प्राप्ति का नया साधन बन सकेगी। इसका सदुपयोग देश की आर्थिक समृद्धि में सहायक हो सकता है।
आईआईटी-आईएसएम ने इसके लिए तकनीक का विकास किया है। इसके अनुसार, पराली का ग्रीन ईंधन, रसोई गैस, फर्टिलाइजर उद्योग में यूरिया और कार्बन नैनो ट्यूब बनाने में उपयोग हो सकता है।कार्बन नैनो ट्यूब का इस्तेमाल सूक्ष्म सर्किट में होता है। इससे इथेनाल भी बनाया जा सकता है। कई उद्योगों में इस ईंधन का उपयोग होता है।
शोध टीम का नेतृत्व प्रो. चंदन गुड़िया कर रहे हैं। कोलकाता विश्वविद्यालय से बीटेक, बेंगलुरु के आइआइएससी से एमटेक के बाद उन्होंने कानपुर आईआईटी से पीएचडी की।
आईआईटी-आईएसएम में पराली और कोयले की छाई से मीथेन गैस बनाने वाले लैब के उपकरण। जागरणधनबाद आईआईटी-आईएसएम में डिपार्टमेंट आफ पेट्रोलियम इंजीनियरिंग के प्रो. गुड़िया के मस्तिष्क में पराली जलने से त्रस्त दिल्ली, हरियाणा और पंजाब वासियों के संकट का निदान निकालने का विचार कौंधा।
कोरोना काल 2019-20 में इस पर काम शुरू किया। टीम बनाकर शोध का खर्च स्वयं वहन करना शुरू किया।प्रयोगशाला अधिकारी लालदीप गोप ने तकनीकी सहायता को हाथ बढ़ाया। फिर आईएसएम के तत्कालीन डायरेक्टर राजीव शेखर ने इसके लिए पांच लाख रुपये दिए।यह राशि कम थी, पर उन्होंने हार नहीं मानी। अब नए रिसर्च को बढ़ावा देने वाले नए डायरेक्टर प्रो. सुकुमार मिश्रा से टीम को काफी उम्मीद है।
वह बताते हैं कि इस शोध को पेटेंट कराने की प्रक्रिया जल्द पूरी हो जाएगी। भारत सरकार यदि इस तकनीक को अपना ले और प्लांट बनाकर उत्पादन करे तो पराली से खुशहाली आ सकती है।प्रो. चंदन गुड़िया।
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आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।पराली-कोयले की राख के टैबलेट से बनेगी मीथेन
प्रो. गुड़िया बताते हैं कि पराली यानी पुआल पूर्ण दहनशील है। यह कम राख पैदा करती है। कोयले की छाई की सस्ती धुलाई कर दोनों के मिश्रण से टैबलेट बनाया जाता है। टैबलेट को सुपर कंडीशन में बिना आक्सीजन के उच्च ताप पर जलाया जाता है। गैस एनलाइजर के अनुसार, इससे करीब 70-75 प्रतिशत मीथेन गैस मिलती है।शेष दूसरी गैसें होती हैं। वे भी उपयोगी हैं। भारत में कोयला नदी घाटियों में बना है, इसलिए सल्फरयुक्त प्रदूषण कम होता है।पराली जिसे क्रस कर कोयला में मिलाया जाता है। हाईड्रोजन भी बनती है, जिससे काफी मात्रा में ताप ऊर्जा मिलती है। मीथेन का घरेलू ग्रीन ईंधन के रूप में उपयोग हो सकता है। यूरिया और सीमेंट उद्योग में भी यह गैस उपयोगी है।इसकी राख का उपयोग ईंट बनाने में भी किया जा सकता है। शोध बता रहा है कि पराली और कोल डस्ट ऊर्जा का उपयुक्त व उत्तम साधन हो बन है। प्रदूषण का हल निकल सकता है।शोध के दौरान विस्फोट से लगी आग
रसायनों के संसार में खतरे कम नहीं है। विज्ञानियों ने शोध के दौरान बिचाली और कोयला की छाई से उत्पन्न गैस को पहले बैलून में भरा। बैलून फूलने पर टीम को प्रसन्नता हुई, क्योंकि इसमें उनके रिचर्स की सफलता भरी हुई थी। इसमें ऐसी ज्वलनशील गैस थी जिसमें भारत के प्रदूषण को रोकने का उपाय और जीवन में उपयोगिता थी।पराली और कोयले की छाई को गैस में बदलने वाले उपकरण के साथ शोध टीम के हेड प्रो. चंदन गुड़िया, तकनीकी अधिकारी लालदीप गोप, संदीप कुमार निमाई महतो और पीछे संजय चौधरी। रिचर्स जब आगे बढ़ा तो जार में इसे भरने के दौरान उपकरण में विस्फोट हो गया और आग लग गई। शोध प्रमुख प्रो. गुड़िया जख्मी हुए पर बड़ा हादसा नहीं हुआ। इसके बाद टीम और सतर्क होकर काम करती है।यह भी पढ़ेंपंजाब-हरियाणा में पराली जलने से रोकने को तैनात की गईं 26 केंद्रीय टीम, सख्त कार्रवाई के आदेशरिसर्च टीम : शोध प्रमुख आईआईटी-आईएसएम के प्रोफेसर डा. चंदन गुड़िया, उत्पादन एवं उत्पाद परीक्षण प्रयोगशाला के तकनीकी अधिकारी लालदीप गोप के अलावा संदीप कुमार, विकास कुमार सिंह, विजय महतो, संजय चौधरी, दिलीप कुमार, निमाई महतो, धर्मेंद्र कुमार।
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