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    घाटशिला उपचुनाव 2025: हेमंत के आने से बदला चुनावी समीकरण!

    Updated: Fri, 14 Nov 2025 07:35 PM (IST)

    वर्ष 2025 में होने वाले घाटशिला उपचुनाव में, मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने शुरुआती दौर में झामुमो के किले को हिला दिया था। हालांकि, हेमंत सोरेन के चुनावी मैदान में उतरते ही पूरी फिजा बदल गई। हेमंत के आने से झामुमो कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार हुआ और चुनावी परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया।

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    झामुमो के सम्मेलन के बाद घाटशिला उपचुनाव में सोमेश के नाम की घोषणा कर टिकट प्रदान करते हेमंत सोरेन। (फाइल फोटो)

    जागरण संवाददाता, घाटशिला। घाटशिला उपचुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई थी। न झामुमो ने प्रत्याशी घोषित किया था, न भाजपा ने, लेकिन इसी शुरुआती दौर में चंपाई सोरेन सबसे पहले मैदान में सक्रिय दिखे।

    दिवंगत मंत्री रामदास सोरेन के निधन के बाद घाटशिला इलाके में झामुमो प्रभावशाली नेतृत्व की कमी महसूस कर रहा था। ऐसे समय में चंपाई ने अपने दौरे तेज किए, गांव-गांव पहुंचकर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू की। 

    इससे झामुमो का पारंपरिक किला हिलना शुरू हो गया और पार्टी के भीतर चिंता बढ़ने लगी। झामुमो की बेचैनी को देखते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद चुनावी रणनीति पर काम शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले विधानसभा स्तर के नेताओं के साथ बैठक की और फिर रांची में स्व. रामदास सोरेन के परिवार से मुलाकात कर उपचुनाव को लेकर उनकी राय और सुझाव सुने। 

    इसके बाद रणनीतिक तौर पर उन्होंने कोल्हान के कद्दावर नेता दीपक बिरूवा को चुनावी मोर्चे पर उतारा। बिरूवा ने पूरे दमखम से मोर्चा संभाला और उपचुनाव अभियान को जीत की दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    इस बीच चंपाई सोरेन लगातार जमीनी स्तर पर सक्रिय थे, जिससे राजनीतिक माहौल में दिलचस्प मुकाबले की हवा बनने लगी थी। लेकिन चुनावी तस्वीर तब निर्णायक रूप से बदली जब हेमंत सोरेन स्वयं घाटशिला के रण में उतर गए। 

    उनके सक्रिय होने के बाद से झामुमो का जनाधार तेजी से मजबूत होता गया और चुनावी हवा साफ तौर पर झामुमो की ओर मुड़ गई। हेमंत के मैदान में उतरने का असर इतना गहरा रहा कि झामुमो न केवल चुनाव जीतने में सफल रहा, बल्कि यह जीत पिछले चुनावों की तुलना में अधिक अंतर से दर्ज की गई। 

    घाटशिला सीट, जिसे झामुमो पहले ही कांग्रेस से छीनकर तीन बार जीत चुका था, इस उपचुनाव में भी पार्टी के खाते में गई। इस बार सोमेश चंद्र सोरेन ने जीत की चौथी कड़ी जोड़ते हुए झामुमो की पकड़ को और मजबूत कर दिया।

    चंपाई सोरेन के शुरुआती प्रयासों ने उपचुनाव को रोमांचक बनाया, लेकिन हेमंत सोरेन की रणनीति, संगठनात्मक मजबूती और समय पर उठाए गए कदमों ने अंततः झामुमो के लिए जीत की नई इबारत लिख दी।

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