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    एंबुलेंस के ल‍िए मह‍िला जंगल में करती रही ढाई घंटे तक इंतजार, अंतत: वाहन में हो गया प्रसव

    By M EkhlaqueEdited By:
    Updated: Thu, 06 Jan 2022 11:31 AM (IST)

    jharkhand news स्‍वजन ने तीन किलोमीटर तक खट‍िया की डोली पर गर्भवती को मुख्य सड़क तक पहुंचाया। इसके बावजूद उसे नसीब नहीं हुई एंबुलेंस। प्रभारी चिकित्सक ने जांच के बाद जच्चा-बच्चा दोनों को स्वस्थ बताया है। फंफुदी जंगल में वाहन के लिए ढाई घंटे तक उसे इंतजार करना पड़ा।

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    jharkhand news : जंगल के रास्‍ते खट‍िया पर मह‍िला को लाद कर ले जाते ग्रामीण। जागरण

    हजारीबाग, (अरुण खुशबू) : कराहती ममता, सिसकती व्यवस्था। जी हां, तस्वीर इसकी गवाह है। हजारीबाग जिले के इचाक में प्रसव पीड़ा से कराहती गर्भवती को अस्पताल ले जाने के लिए एक एंबुलेंस तक नसीब नहीं हुई। सहिया दीदी अधिकारियों को फोन लगाती रहीं, लेकिन आश्वासन ही मिलता रहा। अंतत: स्वजन ने उसे खाट‍िया की मदद से किसी तरह अस्पताल पहुंचाया।

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    खट‍िया को डोली बनाकर तीन किलोमीटर तब ले गए

    राज्‍य सरकार की ओर से गर्भवती महिलाओं की सुविधा से संबंधित तमाम दावे खोखले दिखे। यूं कहें कि यहां व्यवस्था सिसकती दिखी। अधिकारियों की लापरवाही ही है कि प्रखंड के सुदूरवर्ती पंचायत डाड़ीघाघर अंतर्गत पुरनपनियां गांव के उमेश हंसदा की 20 वर्षीय पत्नी गर्भवती गुडिय़ा देवी को प्रसव पीड़ा के दौरान ग्रामीणों ने खट‍िया को डोली बनाकर तीन किलोमीटर पहाड़ी पगडंडी होते हुए सड़क तक तो पहुंचा तो दिया, लेकिन एंबुलेंस या ममता वाहन नहीं मिलने के चलते गुडिय़ा जंगल में ढाई घंटे तक कराहती रही। सुरक्षित प्रसव के लिए साथ चल रहीं सहिया दीदी ने ममता वाहन के लिए हजारीबाग फोन कर मदद मांगी, लेकिन उसे आश्वासन ही मिलता रहा।

    वाहन में हुआ प्रसव

    फंफुदी जंगल में करीब ढाई घंटे से प्रसव पीड़ा के लिए तड़प रही गुडिय़ा को कोई सरकारी मदद न मिलता देख किसी तरह सहिया दीदी ने शाम पांच बजे मोबाइल से संपर्क स्थापित कर एक निजी वाहन को बुलाया। गर्भवती को किसी तरह वाहन में लेटाकर ले जाने लगे तभी गाड़ी में ही महिला का प्रसव हो गया। उसने एक स्वस्थ बालक को जन्म दिया। इसके बाद जच्चा बच्चा को उसी हालत में साढ़़े छह बजे शाम को सामुदायिक अस्पताल इचाक लाया गया, जहां प्रभारी चिकित्सक डा. ओमप्रकाश ने जांचोंपरांत दोनों को सुरक्षित बताया।

    आजादी के बाद भी नहीं बनी सड़क

    डाडीघाघर पंचायत में ममता वाहन नहीं है। दूसरी पंचायतों के ममता वाहन यहां उपयोग में लाया जाता है। गांव जाने के लिए सड़क नही है। इसलिए ग्रामीण अपने सुविधानुसार पहाड़ी रास्ते होकर मरीज को अस्पताल लाते हैं। फंफुदी के रमेश कुमार हेंब्रम ने बताया कि आजादी से आजतक सड़क नहीं बनी है। राज्य सरकार तक कई एक बार लिखित आवेदन देने के बावजूद आदिवासी बहुल यह गांव विकास से कोसो दूर है। सरकार और जनप्रतिनिधियों का भी ध्यान इस ओर नहीं है।