चरमराई रांची यूनिवर्सिटी! एक व्यक्ति दो-दो, तीन-तीन पदों पर, कुलपति का पद भी प्रभार में
रांची विश्वविद्यालय में 'एक व्यक्ति, एक पद' के सिद्धांत का पालन नहीं हो रहा है, जिससे प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा गई है। कई व्यक्ति दो-दो, तीन-तीन पदों प ...और पढ़ें

हाल रांची विवि का, पठन-पाठन पर पड़ रहा असर।
जागरण संवाददाता, रांची। झारखंड के राज्यपाल सह कुलाधिपति संतोष गंगवार ने रांची विश्वविद्यालय सहित सभी राज्य विश्वविद्यालयों में 'एक व्यक्ति, एक पद' के सिद्धांत को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया था, लेकिन रांची विवि में इसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है।
यहां एक व्यक्ति दो-दो पदों को संभाल रहे हैं। इससे रांची विवि की पूरी व्यवस्था ही चरमरा गई है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति कामर्स विभाग की है। यहां कुल पांच लोग हैं, लेकिन दो लोग प्रशासनिक पदों पर हैं। डा सुदेश साहू स्टूडेंट वेलफेयर के डीन हैं। वहीं डॉ मुकुंद चंद्र मेहता प्राक्टर भी हैं और वोकेशनल कोर्स के डायरेक्टर भी हैं। इसी तरह डा संजय सिंह पालिटिकल साइंस के हेड भी हैं और परीक्षा नियंत्रक का प्रभार भी संभाल रहे हैं।
डॉ पीके झा पीजी इतिहास विभाग के हेड भी हैं और 'कन्टीन्यूइंग एजुकेशन एंड डेवलपमेंट सेंटर' (सीसीडीसी) के मुखिया भी हैं। डॉ स्मृति सिंह विवि की पीआरओ भी हैं, वोकेशनल कोर्स की डिप्टी डायरेक्टर भी हैं और कमेस्ट्री की हेड भी हैं। एक दूसरी समस्या यह है कि रांची विवि की वेबसाइट पर सूचनाएं भी आधी-अधूरी हैं।
रजिस्ट्रार का पेज खोलने पर यह जानकारी मिलती है कि डा गुरुचरण साहू रजिस्ट्रार हैं, वे कब से इस पद पर हैं, कोई जानकारी नहीं। इसी तरह उनके पहले डॉ विनोद नारायण का कार्यकाल में बस 02.12.2023 अंकित है। वे कब से कब तक रहे, कोई उल्लेख नहीं। वैसे, रजिस्ट्रार डॉ गुरुचरण साहू कमेस्ट्री विभाग में भी हैं।
प्रभार में कुलपति, प्रोवीसी का पद खाली
राज्य के सबसे बड़े विश्वविद्यालय की स्थिति इससे समझ सकते हैं कि यहां कुलपति ही प्रभार में चल रहे हैं। डॉ अजीत कुमार सिन्हा 20 जून 2025 को सेवानिवृत्त हो गए। इसके बाद नीलांबर-पीतांबर विवि के कुलपति डॉ डीके सिंह को इसका प्रभार 21 जून को दिया गया, लेकिन उन पर तरह-तरह के आरोप लगे और राज्यपाल ने उन्हें 30 जुलाई को ही इस पद से हटा दिया।
इसके बाद झारखंड यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी के कुलपति डॉ डीके सिंह को प्रभार सौंपा गया। वे आधे समय अपने विश्वविद्यालय में रहते हैं और आधे समय यानी दूसरी पाली में रांची विवि आते हैं। छात्रों को अपनी समस्या बताने के लिए दूसरी पाली का इंतजार करना पड़ता है।
इन्हें भी केवल संचालन का प्रभार ही दिया गया है। नीतिगत निर्णय ये नहीं ले सकते हैं। इसी तरह प्रोवीसी का पद यहां 2023 से ही खाली है। एक समय दुनिया में प्रतिष्ठित मानव विज्ञान विभाग में अब पीजी में दो दर्जन से भी कम छात्र हैं।
विलंब से रांची विवि का सत्र
इसका दुष्परिणाम भी सामने आने लगा है। यहां एक साल विलंब से सत्र चल रहा है। विभागों में पर्याप्त अध्यापक नहीं हैं। नीड बेस्ट अध्यापकों से काम चल रहा है। किसी-किसी विभाग में एक या दो ही अध्यापक हैं। पिछले महीने नर्सिंग छात्र-छात्राओं ने सत्र विलंब को लेकर रांची विवि के प्रशासनिक भवन में तालाबंदी कर जमकर प्रदर्शन किया।
बता दें कि पोस्ट बेसिक और बेसिक बीएससी नर्सिंग के सत्र 2020-24, 2021-25, 2022-26, 2023-27 और 2024-28 के परिणाम और परीक्षा शेड्यूल में 2 से 3 साल का विलंब हो चुका है। अब चूंकि परीक्षा नियंत्रक भी प्रभार में ही हैं। लेकिन वे तेजी से समस्याओं के निराकरण की ओर ध्यान दे रहे हैं। हालांकि हर विभाग का यही हाल है।
अभी तक पीजी सत्र 2025–27 की नामांकन प्रक्रिया भी शुरू नहीं हुई। जबकि अगस्त-सितंबर में शुरू हो जाना चाहिए। यूजी के अंतिम सेमेस्टर का परिणाम भी अभी तक नहीं आया है।
पीएच.डी. प्रवेश परीक्षा 2024 के आयोजन में विलंब
रांची विवि के शोध का हाल भी बेहाल है। विश्वविद्यालय ने अक्टूबर 2024 में पीएच.डी. प्रवेश परीक्षा की अधिसूचना जारी की थी और दिसंबर 2024 से मार्च 2025 तक आवेदन लिया था, लेकिन अब तक परीक्षा आयोजित नहीं की गई। अब 2025 भी समाप्त हो रहा है।
सैकड़ों छात्र परेशान हैं। इसमें पेच इसलिए फंस गया है कि राज्यपाल सह कुलाधिपति संतोष कुमार गंगवार ने झारखंड के सभी सरकारी विश्वविद्यालयों में पीएचडी प्रवेश परीक्षा के आयोजन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
उनका स्पष्ट निर्देश है कि पीएचडी में नामांकन केवल यूजीसी की गाइडलाइन के अनुसार ही होगा। लेकिन जिन छात्रों ने आवेदन कर दिया और शुल्क जमा कर दिया, उन्हें विवि सही जवाब भी नहीं दे रहा।

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