"सबके मम्मी-पापा अच्छे हैं, बस आप ही स्ट्रिक्ट हो"- क्या आपका बच्चा भी करता है ऐसा इमोशनल ब्लैकमेल?
आज माता-पिता इस बात से चिंतित हैं कि संतान कहीं भावनात्मक तौर पर कमजोर न पड़ जाए। इसका गलत फायदा उठाते देर नहीं लगती और बच्चे हर बात को बना लेते हैं जिद। पैरेंटिंग काउंसलर मीनाक्षी अग्रवाल बता रही हैं कि कैसे करें भावनाओं का संतुलन और न होने पाएं मैनिपुलेट।

टीनेज बच्चे के साथ कैसे बनाएं इमोशनल बैलेंस? (Picture Courtesy: Freepik)
लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। सान्वी अभी 14 साल की है और भावनात्मक तौर पर काफी संवेदनशील भी। ऐसे में उसके माता-पिता उसकी हर इच्छा को सिर-आंखों पर रखते हैं, ताकि वो किसी बात पर आहत न हो जाए। स्मार्टफोन दिलाने से लेकर आनलाइन खरीदारी तक, जो सान्वी चाहे बस वही होता है। अगर ऐसा न हो तो सान्वी बस इतना ही कहती है ‘मुझसे कोई प्यार ही नहीं करता। सबके मम्मी-पापा इतने अच्छे हैं, मेरे साथ ही आप लोग स्ट्रिक्ट रहते हो।’
अगर आपने भी ऐसा कुछ सुनकर अपने बच्चे की जिद पूरी की है तो आप अकेले नहीं हैं। ये वाक्य किसी भी उम्र के बच्चों, खासकर टीनएजर्स का भावनात्मक हथियार होते हैं। जब बच्चे अपनी इच्छाएं मनवाने के लिए कुशलता से या भावनात्मक मोल-तोल करते हैं।
इसके अलावा कई बार खुद माता-पिता भी इसी चिंता में रहते हैं कि कहीं उनकी डांट-फटकार या मनाही से बच्चे आहत होकर कोई गलत कदम न उठा लें। इसके चलते वे आवश्यक सीमाओं में भी ढील देने लगते हैं। इसी को सरल भाषा में मैनिपुलेट करना कहते हैं।
यह है भावनात्मक हथियार
बच्चों द्वारा मैनिपुलेशन की जड़ें अक्सर पिछले अनुभवों में छिपी होती हैं, जहां उन्हें अपनी जिद पर ‘जीत’ हासिल हुई हो। हालांकि बच्चों के मैनिपुलेशन के पीछे उनकी कुछ असली जरूरतें भी हो सकती हैं, जैसे फ्रस्ट्रेशन या एंग्जायटी, जिसे वे सीधे व्यक्त करने के बजाय भावनात्मक दबाव डालकर प्रकट करते हैं।
आमतौर पर बच्चे अपनी बात मनवाने के लिए कुछ तरीके अपनाते हैं जैसे- एक ही बात को बार-बार पूछना, जब तक कि माता-पिता थक न जाएं। माता-पिता के कम्युनिकेशन गैप का फायदा उठाना (एक ही बात दोनों से अलग-अलग पूछना)।
कई बार तो बच्चे भावनात्मक रूप से गिल्ट देने लगते हैं जैसे ‘आपको बस दीदी ही अच्छी लगती है’ या ‘आप मेरे स्कूल फंक्शन में नहीं आए तो उसके बदले में मुझे नए कपड़े चाहिए।’ इसके अलावा टीनएजर्स का सबसे बड़ा हथियार होता है तुलनात्मक दबाव डालना। जैसे कि ‘मेरी कक्षा में सबके पास फोन है, आप ही मुझे नहीं दे रहे!’
ऐसे बनाएं स्वस्थ रिश्ते
बच्चों की आवश्यकता और जिद को संतुलित करने के लिए जरूरी है कि एक स्वस्थ रिश्ता बनाने के लिए माता-पिता निम्नलिखित कदम उठाएं-
- बच्चों की पूरी बात बिना टोके और बिना जजमेंटल हुए सुनें। इससे उन्हें महसूस होता है कि आप उन्हें अहमियत दे रहे हैं।
- सुनने का मतलब सहमत होना नहीं है। अगर आप उस विषय पर सहमत नहीं हैं या तुरंत कुछ नहीं कहना चाहते, तो बोलें: ‘मैं इसके बारे में सोचूंगा/सोचूंगी और फिर हम बात करेंगे।’ इससे बच्चे को अपनी बात तुरंत मनवाने की आदत नहीं पड़ेगी।
- अगर बच्चा बहुत ऊंची आवाज में बात कर रहा है या झगड़ रहा है, तो स्पष्ट कहें कि जब तुम शांत होगे, तभी बात कर पाएंगे और तुरंत वहां से हट जाएं।
- माता-पिता को अपने डर, चिंता और गिल्ट को नियंत्रित करना चाहिए। जब बच्चे देखते हैं कि पैरेंट्स मजबूत हैं, तो वे मैनिपुलेट करने की गलतफहमी नहीं रखते।
- छुट्टी के समय परिवार का एक साथ समय बिताना, जिसमें प्यार और अनुशासन का सही मिश्रण हो, बहुत जरूरी है। यह बच्चों में आत्मविश्वास और भावनात्मक सुरक्षा बढ़ाता है।
- घर पर एक रूटीन, सभी विषयों पर सहज बातचीत और सहयोग का माहौल बनाएं।
- बच्चों के मामलों में माता-पिता का सहयोग स्पष्ट होना चाहिए। दोनों एक ही बात पर सहमत हों, ताकि बच्चा किसी एक का फायदा न उठा पाए।
- बच्चों को हर उम्र में स्पष्ट सीमाओं और व्यवहार के नियमों के बारे में जागरूक करना जरूरी है। इससे उन्हें पता चलता है कि परिवार में क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं।
कहां हो जाती है भूल
सवाल यह है कि बच्चे तो अपनी सहूलियत देख रहे होते हैं, पर माता-पिता क्यों पिघल जाते हैं? तो उसके पीछे भी कुछ कारण होते हैं:
- आज माता-पिता पिछली पीढ़ी से अधिक संपन्न हैं और अक्सर अपने अधूरे सपनों को बच्चों के जरिए पूरा करना चाहते हैं। उचित-अनुचित जानते हुए भी, वे भावनाओं में बह जाते हैं।
- बच्चों/परिवार को कम समय दे पाने का गिल्ट माता-पिता के भीतर एक खालीपन पैदा करता है। इस गिल्ट को वे बच्चों की हर मांग पूरी करके, एक तरह की सांत्वना और आत्मसंतुष्टि से भरने की कोशिश करते हैं। बच्चे इस नब्ज को बखूबी पहचानते हैं।
- टीनएजर्स के साथ बढ़ते टकराव और तनाव की खबरों के कारण माता-पिता इस डर में रहते हैं कि कहीं बच्चा कोई गलत कदम न उठा ले या रिश्ते खराब न हो जाएं। इस डर में उनका सारा ध्यान बच्चों को नाराज न करने पर केंद्रित हो जाता है, जिसके दुष्परिणामों को वे नजरअंदाज करते जाते हैं।

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