NEET PG: हाई कोर्ट ने पीजी दाखिले में प्रदेश के मूल निवासी छात्रों से भेदभाव के आरोप पर मांगा जवाब, जानिए क्या है पूरा मामला
जबलपुर हाई कोर्ट ने नीट पीजी दाखिले में प्रदेश के मूल निवासी छात्रों से भेदभाव के आरोप पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि नियमों में बदलाव से दूसरे प्रदेशों से एमबीबीएस करने वाले छात्रों के साथ अन्याय हो रहा है, क्योंकि मध्य प्रदेश के मूल निवासियों को प्राथमिकता दी जा रही है, भले ही उन्होंने एमबीबीएस कहीं से भी किया हो। कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी किया है।

मप्र हाईकोर्ट भवन (प्रतीकात्मक चित्र)
डिजिटल डेस्क, जबलपुर। मप्र हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा व न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने प्रदेश के मूल निवासी छात्रों से भेदभाव के आरोप पर जवाब मांगा है। कोर्ट ने इस संबंध में राज्य शासन और डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन सहित अन्य को नोटिस जारी किए हैं।
दरअसल, मेडिकल नीट पीजी में 100 प्रतिशत आरक्षण को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया कि नियमों में संशोधन कर मूल निवासी शब्द को विलोपित कर दिया गया है, जिस कारण उन छात्रों से भेदभाव हो रहा है, जिन्होंने दूसरे प्रदेश से एमबीबीएस किया है और मप्र से पीजी करना चाहते हैं।
याचिकाकर्ता बालाघाट निवासी डा. विवेक जैन और रतलाम के डा. दक्ष गोयल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि प्रदेश के 15 मेडिकल कालेज में 1468 पीजी की सीट हैं, 50 प्रतिशत सीट आल इंडिया कोटे के लिए आरक्षित हैं। प्रदेश कोटे की 50 प्रतिशत सीटों में ओबीसी, एसटी, एससी, ईडब्ल्यूएस कोटा दिया जाता है। इसके बाद सामान्य वर्ग के लिए 518 सीट बचती हैं। पीजी काउंसलिंग के पहले और दूसरे दौर में सिर्फ मप्र से एमबीबीएस करने वाले छात्र ही शामिल हो सकते हैं।
जो छात्र पहले व दूसरे दौर में शामिल नहीं हुए, वे माप-अप दौर में शामिल नहीं हो सकते। मप्र में अध्ययन करने वाले अन्य राज्यों के छात्रों को नहीं बल्कि मूल निवासी छात्रों को पीजी नीट दाखिले में प्राथमिकता दी जाती है, चाहे उन्होंने एमबीबीएस कोर्स किसी प्रदेश से किया हो। सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के न्यायदृष्टांतों के अनुसार कोटे की सीट में मूल निवासी छात्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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