Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Dussehra 2023: देश के कई राज्यों में अनोखे तरह से मनाया जाता है दशहरा, सेलिब्रेशन देखने विदेशों से आते हैं सैलानी

देश के कई जगहों पर दशहरे के त्योहार को हर्षोल्लास और भव्यता के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। वहीं विजयादशमी के जश्न में शामिल होने के लिए लाखों की संख्या में सैलानी एक जगह से दूसरे जगह जाते हैं और दशहरे के इस पावन पर्व को मनाते हैं। देश के कई जगहों पर दशहरे को अलग-अलग नामों से भी जाता है जिसमें विजयदशमी दशहरा दशईं आदी नाम शामिल हैं।

By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Tue, 24 Oct 2023 09:33 AM (IST)
Hero Image
पूरे देश में मनाया जा रहा दशहरे का त्योहार।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Dussehra 2023: असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक दशहरे का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। देश के अलग अलग हिस्सों में यह त्योहार विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। विजयादशमी के जश्न में शामिल होने के लिए बड़ी तादाद में लोग एक जगह से दूसरी जगहों पर जाते हैं और दशहरे के इस पावन पर्व को मनाते हैं। बच्चों में दशहरे के मेले को लेकर खासा हत्साह होता है। नौ दिनों की रामलीला के आयोजन के बाद दशमी के दिन दशहरा मनाया जाता है।

देश के कई जगहों पर दशहरे को अलग-अलग नामों से भी जाता है, जिसमें विजयदशमी, दशहरा, दशईं आदी नाम शामिल हैं। दशहरा हर साल नवरात्रि के अंत में मनाया जाता है। देश के इन बहुचर्चित जगहों पर दशहरे का त्योहार कैसे मनाते हैं आइए जानते हैं।  

बस्तर

छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का दशहरा देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। बस्‍तर में यह पर्व जिस अंदाज में मनाया जाता है वह न केवल अनूठा है बल्कि दुनिया में सबसे ज्यादा दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व भी बन जाता है। यहां आमतौर पर यह पर्व 75 दिनों का होता है, लेकिन इस बार यह पर्व 107 तक दिन तक मनाया जाएगा। मालूम हो कि इस बार बस्तर दशहरा की शुरुआत पाठ जात्रा रस्म के साथ 17 जुलाई से हुई। वहीं, रथ निर्माण का काम 27 सितंबर से डेरी गडाई रस्म के साथ शुरू हुआ, जबकि दशहरे की शुरुआत 14 अक्टूबर को काछनगादी रस्म के साथ हुई। इस दिन काछन गुड़ी देवी की विशेष पूजा की जाती है।

कोलकाता

पश्चिम बंगाल में दशहरे का त्योहार पूरे धूम-धाम से मनाया जाता है। यहां दुर्गा पूजा का एक अलग ही महत्व है। नवरात्रि के दिनों में बंगाल के अलग-अलग जगहों पर पूजा पंडाल भव्यता के साथ बनाया जाता है। हालांकि, पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में इसको बड़े पैमाने पर धूमधाम से मनाया जाता है। यहां पर पंडालों को अलग-अलग थीम पर बनाया जाता है और मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पर पंडालों को देखने के लिए श्रद्धालु देश ही नहीं विदेशों से भी आते हैं।

पश्चिम बंगाल में दशहरा के अंतिम दिन सिन्दूर खेला का बहुत ही पुरानी परंपरा रही है, जिसमें महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और मिठाई खिलाती हैं। मां की विदाई के खुशी में सिंदूर खेला मनाया जाता है। महाआरती के बाद विवाहित महिलाएं देवी के माथे और पैरों पर सिंदूर लगाती हैं फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाने की परंपरा है।

वाराणसी

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में दशहरे को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहां पर रामलीला का आयोजन होता है और हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां के रामलीला को देखने दूर-दूर तक आते हैं। वाराणसी में रामलीला के दौरान अयोध्या, लंका और अशोक वाटिका के दृश्य को बनाया जाता है, जिसको देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। यहां पर कई कलाकार रामलीला का पाठ करते हैं और अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। वाराणसी में रावण के खानदान के कई सदस्यों के पुतले का दहन किया जाता है। यहां पर रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले का दहन किया जाता है, जिसको देखने के लिए भारी संख्या में सैलानी आते हैं।

   

यह भी पढ़ेंः Bastar Dussehra 2023: देश के इस राज्य में सबसे लंबे समय तक मनाया जाता है दशहरे का पर्व, लेकिन नहीं होता 'रावण दहन'

रामलीला मैदान

देश की राजधानी दिल्ली में भी दशहरा जोर-शोर से मनाया जाता है। पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान में दशहरे के दिन रावण, कुंभकरण और मेघनाथ का एक साथ पुतला फूंका जाता है। दिल्ली के रामलीला मैदान में दशहरे के दिन मेला लगता है, जिसका आनंद लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।  

कुल्लू

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा देश और दुनिया में प्रसिद्ध है। कुल्लू में पहली बार दशहरा साल 1660 में मनाया गया था। उस समय वहां राजा जगत सिंह का शासन था। कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलने के कारण उन्होंने दशहरा मनाने की घोषणा की। कहा जाता है कि इस उत्सव में शामिल होने के लिए 365 देवी- देवताओं ने शिरकत की थी। यहां पर दशहरे की शुरुआत  भगवान रघुनाथ के भव्य रथयात्रा के साथ शुरू होती है। इस दौरान यात्रा के साथ देवी-देवताओं के भी रथ चलते हैं। कहा जाता है कि यहां देवी-देवता एक दूसरे से मिलने के लिए भी आते हैं। यहां का दशहरा देव मिलन के रूप में भी मनाया जाता है। कुल्लू के दशहरे को देखने के लिए देश-विदेश से भारी संख्या में लोग आते हैं।  

यह भी पढ़ेंः Dussehra 2023: जानिए, दशहरा का क्या है महत्व, ताकि अगली पीढ़ी को समझा सकें इसकी कीमत