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    भारतीयों में एकता की कमी पर गांधीजी के विचार औपनिवेशिक शिक्षा से प्रभावित – मोहन भागवत

    Updated: Sat, 29 Nov 2025 06:53 PM (IST)

    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में कहा कि विवादों में उलझना भारत के स्वभाव में नहीं है। उन्होंने राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव में बोलते हुए कहा कि भारत की परंपरा हमेशा से भाईचारे और सद्भाव पर जोर देती रही है। भागवत ने राष्ट्रवाद की भारतीय अवधारणा को पश्चिमी विचारों से अलग बताया और कहा कि भारत प्राचीन काल से एक राष्ट्र रहा है। उन्होंने एआई के उपयोग को मानव जाति के लाभ के लिए बताया।

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    नागपुर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत।

    राज्य ब्यूरो, मुंबई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (रा.स्व.संघ) प्रमुख मोहन भागवत के अनुसार महात्मा गांधी का यह कहना कि ब्रिटिश शासन से पहले भारतीयों में एकता का अभाव था, औपनिवेशिक शिक्षा से प्रेरित एक झूठी कहानी है।

    शनिवार को नागपुर में राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव में बोलते हुए भागवत ने कहा कि गांधीजी ने अपनी पुस्तक हिंद स्वराज में लिखा है कि अंग्रेजों के आने से पहले हम एकजुट नहीं थे। लेकिन यह उनके द्वारा हमें सिखाई गई झूठी कहानी है। गांधीजी द्वारा 1908 में गुजराती में लिखी गई और 1909 में उनके द्वारा ही अंग्रेजी में अनुवादित हिंद स्वराज में 20 अध्याय हैं, और यह एक पत्रिका के पाठक और संपादक के बीच संवाद के रूप में लिखी गई है।

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    'हमारा किसी से कोई विवाद नहीं'

    भागवत ने कहा कि भारत की 'राष्ट्र' की अवधारणा प्राचीन, जैविक और राष्ट्र की पश्चिमी अवधारणा से मौलिक रूप से भिन्न है। उन्होंने कहा कि हमारा किसी से कोई विवाद नहीं है। हम विवादों से दूर रहते हैं। विवाद करना हमारे देश की प्रकृति में नहीं है। एकजुट रहना और भाईचारा बढ़ाना हमारी परंपरा है। जबकि दुनिया के अन्य हिस्से संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में विकसित हुए हैं। वहां एक बार कोई राय बन जाने के बाद, उस विचार के अलावा कुछ भी अस्वीकार्य हो जाता है। वे अन्य विचारों के लिए दरवाज़े बंद कर देते हैं और उसे '...वाद' कहना शुरू कर देते हैं।

    'विविधता के बाद भी हम एकजुट'

    भागवत ने कहा कि दूसरी ओर हम ‘राष्ट्रीयता’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं, ‘राष्ट्रवाद’ का नहीं। राष्ट्र के प्रति उनके (अन्य देशों के) अत्यधिक अहंकार के कारण दो विश्व युद्ध हुए, यही वजह है कि कुछ लोग राष्ट्रवाद शब्द से डरते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम पश्चिमी संदर्भ में राष्ट्र की परिभाषा पर विचार करें तो इसमें आमतौर पर एक राष्ट्र-राज्य शामिल होता है, जिसमें एक केंद्रीय सरकार क्षेत्र का प्रबंधन करती है। जबकि भारत हमेशा से एक 'राष्ट्र' रहा है। यहां तक कि विभिन्न शासनों और विदेशी शासन के दौर में भी।

    उन्होंने कहा कि भारत की राष्ट्रीयता अहंकार या गर्व से पैदा नहीं हुई है, बल्कि लोगों के बीच गहरे अंतर्संबंध और प्रकृति के साथ उनके सह-अस्तित्व से पैदा हुई है। हम सब भाई हैं, क्योंकि हम भारत माता की संतान हैं। विविधता के बावजूद, हम एकजुट हैं क्योंकि यही हमारी मातृभूमि की संस्कृति है।

    'एआई के आगमन को रोका नहीं जा सकता'

    कार्यक्रम में युवा लेखकों के साथ बातचीत करते हुए भागवत ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसी प्रौद्योगिकियों के आगमन को रोका नहीं जा सकता। लेकिन हमें इस पर अपना अधिकार बनाए रखना चाहिए। और उपयोग करते समय अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए।

    उन्होंने कहा कि एआई का उपयोग मानव जाति के लाभ के लिए तथा मनुष्य को बेहतर बनाने के लिए किया जाना चाहिए। भाषा और संस्कृति पर वैश्वीकरण की चुनौती के बारे में पूछे गए एक प्रश्न पर भागवत ने कहा कि यह फिलहाल एक भ्रम है। वैश्वीकरण का वास्तविक युग अभी आना बाकी है और भारत इसे लाएगा।

    उन्होंने कहा कि भारत में शुरू से ही वैश्वीकरण की अवधारणा रही है और इसे 'वसुधैव कुटुम्बकम'  कहा जाता है। भागवत ने कहा कि हम वैश्विक बाज़ार नहीं बनाते, बल्कि एक परिवार बनाते हैं, जो वैश्वीकरण का असली सार होगा, और वह युग अभी आना बाकी है। इसलिए, वैश्वीकरण के बारे में अपने दिल से डर या गलतफहमी निकाल दीजिए।

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