ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच पांच वर्ष के बाद द्विपक्षीय वार्ता तभी संभव हुई जब चीन सीमा पर अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति बहाल करने पर सहमत हुआ। करीब 4 वर्ष से LAC पर जारी तनाव और गतिरोध के बीच भारत लगातार यह कहता रहा कि चीन ने सीमा पर स्थिति बदलने का एकतरफा प्रयास किया है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पैदा हुए हालात को लेकर भारत और चीन के बीच हुआ समझौता वर्षों से चल रहे विवाद और तनाव को सुलझाने की दिशा में एक बहुत छोटा कदम है, लेकिन इसका स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि लद्दाख सहित एलएसी पर जो तनाव था, वह इस स्तर पर था कि कभी भी यह विस्फोटक रूप ले सकता था, क्योंकि दोनों देशों की सेनाएं कई स्थानों पर आमने सामने खड़ी थीं। ऐसे हालात में इस बात की गुंजाइश काफी अधिक रहती है कि सेनाओं के बीच कभी भी टकराव हो जाए, जो एक बड़े संघर्ष का रूप ले ले।
अगर तनाव कम होता है तो यह भारत और चीन दोनों के लिए अच्छी बात है। भारत पहले भी कह चुका है कि वह चीन के साथ युद्ध या ऐसे हालात नहीं चाहता है, जिससे युद्ध की स्थिति बने। वहीं, चीन चाहता था कि भारत को पीछे धकेला जाए, धौंस जमाई जाए।हालांकि, वर्तमान परिदृश्य में चीन भी ऐसी स्थिति नहीं पैदा करना चाहता है, जहां भारत के साथ युद्ध की स्थिति पैदा हो जाए । इसके अलावा दो-तीन चीजें चीन को सता रहीं थीं।
पहली: बेपटरी होती अर्थव्यवस्था ने झुकाया
पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर चीन का प्रदर्शन कमजोर रहा है। चीन नहीं चाहता है कि ऐसे समय में जब उसको अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रयास करना है तो भारत के साथ सीमा पर तनाव का माहौल रहे, क्योंकि इसका असर चीन और भारत के आर्थिक रिश्तों पर भी पड़ रहा था।हालांकि, तनाव के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है, लेकिन गलवन में सेनाओं के बीच संघर्ष के बाद चीन की कंपनियों के लिए भारत में कारोबार करना आसान नहीं रह गया है।
इसके अलावा चीन की कंपनियों के लिए भारत में निवेश करना कठिन हो गया है। ऐसा भारत सरकार के कड़े रुख की वजह से हुआ है। जाहिर है कि चीन को साफ दिख रहा था कि सीमा पर तनाव के बीच भारत के साथ आर्थिक रिश्ते फल-फूल नहीं सकते हैं।
दूसरी: यूरोप और अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाया
चीन के उत्पादों के लिए अमेरिका और यूरोप सबसे बड़े बाजार हैं। अमेरिका और यूरोप में चीन के उत्पादों को लेकर सख्ती बढ़ रही है। चीन के उत्पादों पर टैरिफ भी बढ़ाया जा रहा है।
अभी तक चीन की अर्थव्यवस्था में भारत की वह अहमियत नहीं है, जो अमेरिका और यूरोप की है। भले ही भारत और चीन के बीच कारोबार 100 अरब डॉलर से ज्यादा का है, लेकिन चीन के शीर्ष 10 ट्रेड पार्टनर की बात करें तो हमारा स्थान शीर्ष 10 के बाद ही आता है।अब अगर बड़े व्यापारिक साझीदार आप पर लगाम लगा रहे हैं और इन देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों में तनाव है तो आप नहीं चाहेंगे कि भारत जैसे बड़े बाजार में, जहां चीन के उत्पादों की बड़ी मांग है, भी सेंध लगे। यह भी एक कारण है।
तीसरी: पश्चिमी देशों के खेमे में शामिल होने का डर
खालिस्तान के मुद्दे पर भारत और पश्चिमी देशों के बीच खटास पैदा हुई है। ऐसे में चीन को लग रहा है कि भारत पश्चिमी देशों की ओर ज्यादा न झुके, यह उसके हित में होगा। हालांकि, भारत की पहले से नीति रही है कि वह किसी खेमे में न रहे और सबके साथ रिश्ते बनाए।चीनी सरकार की सोच है कि भारत पर इतना दबाव न डाला जाए कि वह अमेरिका और पश्चिमी देशों के खेमे की ओर जाने के लिए मजबूर हो जाए। अगर ऐसा होता है तो यह चीन के हित में नहीं होगा।
चीन पर भरोसा मतलब बड़ी गलती!
इसका मतलब यह नहीं है कि चीन भारत के साथ सीमा पर जो तनाव है, उसके समाधान की ओर जा रहा है। अगर कोई ऐसा सोचता है कि चीन सीमा पर अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति में चला जाएगा तो इस पर मुझे शक है। इसके कई कारण हैं।पहली बात यह है कि चीन ने लद्दाख में जो किया भारत उसे विश्वासघात मानता है। इसकी वजह यह है कि चीन ने 1990 के बाद हुए समझौतों की परवाह नहीं की। ऐसे में भारत ने भी सीमा पर सेना तैनात कर दी। चीन अगर मिसाइल लाया तो भारत ने भी मिसाइलें तैनात कीं। चीन ने 50,000 सैनिक तैनात किए तो हमने भी इतनी ही संख्या में फौज वहां उतार दी।
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चीन के इस विश्वासघात की तुलना कारगिल युद्ध से की जा सकती है। पहले पाकिस्तान और भारत की सेनाएं ठंड के मौसम में अपनी चौकियां खाली कर देती थीं। और इस बात को लेकर सहमति थी कि कोई एक-दूसरे की चौकियों पर कब्जा नहीं करेगा, लेकिन कारगिल ने इस विश्वास को खत्म कर दिया। अब भारत की सेना हर मौसम में चौकियों पर तैनात रहती है।
ऐसा ही चीन के साथ लगती सीमा पर भी हो सकता है, क्योंकि भारत के लिए अब चीन पर विश्वास करना आसान नहीं होगा। इसका एक सकारात्मक नतीजा यह हो सकता है कि दोनों देशों के बीच शायद एलएसी तय हो जाए। चूंकि, भारत और चीन के बीच अभी एलएसी तय नहीं है, लेकिन अगर सेनाएं तैनात रहती हैं तो वर्तमान एलएसी ही दोनों देश थोड़े बदलाव के साथ स्वीकार कर सकते हैं।सीमा विवाद का समाधान एक जटिल मुद्दा है , ऐसे में दोनों देशों में एलएसी को लेकर सहमति बनना द्विपक्षीय संबंधों को आगे आगे बढ़ने का एक तरीका हो सकता है।
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