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    Bihar Election Result 2025: बिहार में क्यों हारा महागठबंधन, राहुल-तेजस्वी से कहां हुई चूक? PK के लिए सीक्रेट मैसेज

    By ASHUTOSH JHAEdited By: Narender Sanwariya
    Updated: Fri, 14 Nov 2025 07:29 PM (IST)

    Bihar Election Result 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे ने राजग को प्रचंड बहुमत दिया है। मोदी-नीतीश की जोड़ी ने जनता का विश्वास जीता। विपक्षी दलों की रणनीति विफल रही। जनसुराज पार्टी का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा। 

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    बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे ने एनडीए को प्रचंड बहुमत मिला।

    Bihar Election Results 2025: आशुतोष झा, नई दिल्ली। बिहार का चुनाव नतीजा सिर्फ सरकार गठन का जनादेश नहीं है। उसके लिए तो 122 ही पर्याप्त था। मिले उसले लगभग सौ ज्यादा। राजग गठबंधन के लिए मिला यह प्रचंड जनादेश संदेश है कि जनता कभी कभार कुछ मुद्दों पर भ्रमित हो सकती है लेकिन विकास और सतत विकास ही प्रमुख मुद्दा है।

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    बिहार में इसका जोरदार डंका बजा है जिसकी गूंज दूसरे राज्यों तक भी पहुंचेगी। यह संदेश है कि वादे और नारे उसके सुने और अपनाए जाते हैं जिसकी विश्वसनीयता हो। बिहार में मोदी-नीतीश के चेहरे ने यह भरोसा भर दिया कि डबल इंजन ही आगे का रास्ता है।

    विपक्षी दलों को चुनावी रणनीति

    यह संदेश है कि राजनीति में घोर परिवारवाद लोगों को नापसंद है। यह इसका भी संदेश देता है कि वोट चोरी और चुनाव में हेरा फेरी जैसे तथ्यहीन व नकारात्मक नारों से खुद के ही हाथ जलते हैं। और जनादेश यह भी बताता है कि विपक्षी दलों को चुनावी रणनीति का लंबा पाठ पढ़ने की जरूरत है तथा नई पार्टी बनाना तो आसान है लेकिन लोगों का मन जीतना मुश्किल।

    अब तक की सबसे बड़ी जीत

    यूं तो अधिकतर लोग बिहार चुनाव के नतीजे से हतप्रभ हैं। ऐसा है भी क्योंकि राजग नेताओं की ओर से भी इसकी आशा नहीं की जा रही थी। हां, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जरूर अब तक की सबसे बड़ी जीत की बात कही थी। लेकिन बिहार में विकास की ललक, महिलाओं में विकास की उत्कंठा, बिहारी आत्म सम्मान की प्रबलता इतनी ज्यादा है कि जब जरूरत हो तो ऐसा ही जनादेश आता है।

    नीतीश कुमार की बड़ी जीत

    वर्ष 2010 में भी इसी तरह बड़ी जीत मिली थी जब महागठबंधन एमवाई समीकरण और जाति भावनाओं को भड़काकर वापस सत्ता में आना चाहता था। बीस साल तक लगातार नीतीश कुमार के सत्ता में रहने के कारण इस बार उतनी बड़ी जीत को लेकर आशंका जताई जा रही थी लेकिन पीएम मोदी की विश्वसनीयता जुड़ते ही कमाल हो गया।

    अमित शाह का चुनावी चक्रब्यूह काम कर गया

    मोदी का चेहरा, मोदी की गारंटी, नीतीश के लिए सदभाव और अमित शाह का चुनावी चक्रब्यूह काम कर गया। संकल्पपत्र में उन सभी मुद्दों पर रोडमैप रखा गया जो लोगों के दिल में थे। राजग एकजुट होकर लड़ा वहीं महागठबंधन में आखिरी समय तक रस्साकसी दिखी। जनता ने समझ लिया कि जाति पाति में पड़े को फिर पिछड़े।

    डबल इंजन का जोर

    यहां तक कि माई समीकरण भी ध्वस्त हो गया जो साधारणतया 2014 के लोकसभा चुनाव से मोदी के नाम पर टूटता रहा था। लोगों ने देखा है कि मोदी और नीतीश शासन में विकास जाति पाति और धर्म से परे होता है। डबल इंजन का जोर लगा और सरपट दौड़ा। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि अगले चार महीनों में होने वाले पश्चिम बंगाल चुनाव में भी इसका असर दिखेगा।

    पश्चिम बंगाल में कैसे इसकी गूंज दिखेगी?

    बिहार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में महागठबंधन ने एसआइआर जैसे मुद्दे पर चुनाव को केंद्रित करने की कोशिश की थी जो गलत था। जो नाम कटे वह सही थे इसीलिए एसआईआर के बाद जनता की ओर से कोई भी नाकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं हुई। बल्कि सवाल यह पूछआ जाने लगा है कि महागठबंधन के दलों की ओर से ऐसे लोगों को सूची में रखने का दबाव क्यों है जो वोटर हैं ही नहीं। पश्चिम बंगाल में इसकी गूंज दिखेगी जहां एसआइआर की शुरूआत हो गई है और सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की ओर से विरोध हो रहा है। चाहे तृणमूल हो या एआइडीएमके वह सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुके हैं और विरोध के लिए पर्याप्त कारण नहीं है।

    पीएम मोदी को निशाना बनाया

    यूं तो कांग्रेस के अंदर भी कई नेता राहुल गांधी के नारों से मतभेद रखते रहे हैं लेकिन इस चुनाव ने यह साबित कर दिया कि चाहे 2019 लोकसभा चुनाव के वक्त ''चौकीदार चोर है'' या फिर अभी ''वोट चोर'' जैसे नारों को जनता नापसंद करती है। खासतौर से तब जब पीएम मोदी को निशाना बनाया जाए।

    आपत्तिजनक शब्दों को अपनाते राहुल

    बिहार चुनाव में राहुल गांधी ने राज्य के बारे मे कम, मोदी, भाजपा और संघ के बारे में ज्यादा बयान दिए जो सवाल खड़ा करते हैं कि वह मुद्दों से भटकते हैं। तथ्यों के आधार पर आक्रामक होने की बजाय आपत्तिजनक शब्दों को अपनाते हैं और खुद ही घायल हो जाते हैं। राहुल गांधी ने महापर्व छठ से जुड़े एक मुद्दे पर भी ड्रामा शब्द का इस्तेमाल किया था और भाजपा ने इसे मुद्दा बनाया था।

    कहां हुई राहुल और तेजस्वी से चूक?

    • राहुल के मंच से ही एक व्यक्ति ने पीएम मोदी की मां को लेकर अश्लील शब्द कहे थे और राहुल या तेजस्वी यादव की ओर से इसके लिए खेद तक नहीं जताया गया।
    • वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों को थोड़ी संख्या मिली, हालांकि वह सम्मिलित रूप से भी अकेले भाजपा की संख्या से कम थे लेकिन उनका मनोबल बढ़ा था।
    • ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश के अलावा 2024 में महाराष्ट्र और बिहार में भी राजग को अपेक्षाकृत कम सीटें मिली थीं। लेकिन उसके बाद जिस तरह महाराष्ट्र में लोगों ने अभूतपूर्व निर्णय दिया और उसके बाद बिहार का जनादेश आया है।
    • उससे यह चर्चा भी छिड़ गई है कि क्या जनता 2024 की क्षतिपूर्ति करना चाहती है। अगर यह सच है तो फिर देखना होगा कि उत्तर प्रदेश में जनता क्या गुल खिलाती है। परिवारवाद पर चोट बहुत गहरा है। राजद जमीन पर आ चुका है।

    बिहार रिजल्ट का दूसरे राज्यों पर असर

    यह देखना बाकी है कि दूसरे राज्यों से क्या संदेश दिया जाता है। बिहार चुनाव में इस बार जनसुराज पार्टी और उस प्रशांत किशोर की भी बहुत चर्चा थी। लेकिन वह जिस तरह फ्लाप हुआ उसने यह सिद्ध कर दिया है कि कोच होने और प्लेयर होने में फर्क होता है। दूसरी बात, नई पार्टी सिर्फ नाम से नहीं बनती है।

    क्या होगा प्रशांत किशोर का?

    जनसुराज में अधिकतर लोग तो दूसरी पार्टियों के पुराने चेहरे थे। एक आंदोलन के जरिए दिल्ली में प्रवेश करने वाली आम आदमी पार्टी के पास उस वक्त चेहरे भी नए थे और तौर तरीका भी जो बाद में फीका पड़ गया। जनसुराज के लिए यह नतीजा आखिरी कील है और राजद व कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चेतावनी।

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