बिहार में कैसे फेल हो गया पीके फैक्टर? कई नेताओं को दिलाई थी जीत; पढ़ें कैसे बदला समीकरण
बिहार चुनाव में पीके की पार्टी जनसुराज पार्टी को जीरो सीट मिली हैं, यहां तक कि उनके काफी उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गई। पीके को चुनावी इम्तिहान में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा है।

जिस पीके ने कई नेताओं को चुनाव में जीत दिलाई, वह बिहार में हो गया धराशाही (फोटो- एक्स)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक समय था जब पीके भारत की राजनीति में चाणक्य बनकर उभरे। पहले पीएम मोदी के साथ तो बाद में ममता बनर्जी, लालू-नीतीश और तमाम तमाम पार्टियों के साथ काम किया और उनके चुनावों में बड़ी जीत दिलाई। लेकिन वही पीके (प्रशांत किशोर) बिहार की राजनीति में अपनी पार्टी का खाता भी नहीं खुलवा पाए।
जनसुराज पार्टी की कई उम्मीदवारों की जमानत जब्त
बिहार चुनाव में पीके की पार्टी जनसुराज पार्टी को जीरो सीट मिली हैं, यहां तक कि उनके काफी उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गई। पीके को चुनावी इम्तिहान में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा है। बिहार में तीसरे मोर्चे और एक राजनीतिक विकल्प के रूप में प्रचारित उनकी जन सुराज पार्टी, अंदरूनी इलाकों के चुनावी संग्राम में खाता भी नहीं खोल पाई।
पीके ने कई नेताओं को जीत दिलाई
किशोर ने एक चुनावी रणनीतिकार के रूप में सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने 2012 के गुजरात चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के विजयी अभियान की रूपरेखा तैयार की। उस समय, चुनावों के लिए राजनीतिक परामर्श बहुत आम नहीं था, और भाजपा की जबरदस्त जीत के साथ किशोर सुर्खियों में छा गए।
इसके बाद 2014 में लोकसभा चुनाव में पीके की मदद ली गई और भाजपा मोदी लहर पर सवार होकर केंद्र में सत्ता में आई। वहीं, इसके बाद 2015 में प्रशांत किशोर दूसरी तरफ थे, बिहार में महागठबंधन अभियान को धार दे रहे थे, और उन्होंने फिर से सफलता हासिल की जब नीतीश कुमार-लालू यादव की जोड़ी ने शानदार जीत हासिल की।
2017 के पंजाब चुनाव में, किशोर ने तत्कालीन कांग्रेस नेता अमरिंदर सिंह को जीत दिलाई। इसके बाद उन्होंने वाईएसआरसीपी के जगन मोहन रेड्डी की मदद की और उन्हें आंध्र प्रदेश में जीत दिलाई।
2021 में, किशोर ने तमिलनाडु में एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके और ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस की सहायता की और दोनों दलों ने बड़ी सफलता हासिल की।
बिहार में बदल गए सारे समीकरण
पीके ने लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों बाद, उन्होंने जन सुराज पार्टी के गठन की घोषणा की। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जन सुराज पार्टी 2025 का बिहार चुनाव लड़ेगी। चुनाव से पहले, किशोर की जन सुराज पार्टी ने जोरदार प्रचार अभियान चलाया और सोशल मीडिया पर अपनी पकड़ बनाए रखी। कई लोगों का मानना था कि यह एक मजबूत राजनीतिक ताकत बनकर उभरेगी।
साक्षात्कारों में, किशोर ने विश्वास जताया कि जन सुराज अच्छा प्रदर्शन करेगी और ज़ोर देकर कहा कि जेडीयू हार के कगार पर है। जन सुराज के उम्मीदवारों में भोजपुरी गायक, पूर्व नौकरशाह, शिक्षाविद और पहले अन्य दलों में रह चुके वरिष्ठ राजनेता भी शामिल थे।
हालांकि, मतगणना के दिन तस्वीर उलट थी। जन सुराज अपना खाता भी नहीं खोल पाई और उसके उम्मीदवारों की गिनती से पता चला कि उनकी गिनती भी कुछ खास नहीं रही। दूसरी ओर, जेडीयू ने बड़ी बढ़त हासिल की और 2020 की तुलना में 41 सीटें ज्यादा जीतीं।
पीके का अभी तक कोई बयान सामने नहीं आया है
एक इंटरव्यू के दौरान किशोर से पूछा गया कि अगर जन सुराज अभियान अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है तो वे क्या करेंगे। तब उन्होंने कहा था कि उन्होंने बिहार के लिए 10 साल समर्पित किए हैं और अगले पांच साल तक राज्य के लिए काम करते रहेंगे। उन्होंने अभी तक नतीजों पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है।

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