Maharashtra Election Result: महाराष्ट्र में महायुति की सुनामी, MVA की करारी हार; पढ़ें चुनाव के नतीजों के बड़े फैक्टर
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत और कांग्रेस की करारी हार ने एक बार फिर महाराष्ट्र की राजनीति को नया आयाम दे दिया है। इस चुनाव में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी को अच्छा समर्थन मिला है। दोनों ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार के नेतृत्व वाले अपने प्रतिद्वंद्वी गुटों से बढ़त हासिल की है।
जेएनएन, नई दिल्ली। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को जहां 235 सीटें अपने खाते में कर ली है, वहीं कांग्रेस गठबंधन 49 सीटों पर सिमटती हुई दिख रही है। अकेले भाजपा ने 132 सीटें जीत ली हैं, वहीं कांग्रेस को 16 सीटें मिली हैं। आइए जानते हैं महायुति को क्यों मिली प्रचंड जीत और महाविकास आघाड़ी की हार के पांच कारण के बारे...
महायुति की जीत के पांच कारण
1- लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता न मिलने के बाद भाजपा ने अपनी हार के कारणों की समीक्षा की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करके कमियों को दूर करने की रणनीति बनाई गई। मतदाता सूचियां दुरुस्त करने का काम शुरू किया गया।
2- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पूरी तरह से कमान संभाली। शुरुआत में भाजपा के स्थानीय नेताओं के साथ, फिर अकेले ही घर-घर जाकर लोगों को शत-प्रतिशत मतदान करने के लिए प्रेरित किया गया। मतदान के दिन लोगों को घरों से निकालने एवं बूथ तक पहुंचाने का काम भी संघ एवं भाजपा कार्यकर्ताओं ने मिलकर किया। इस बार संघ ने यह काम सिर्फ भाजपा उम्मीदवारों के लिए ही नहीं, बल्कि राज्य के सभी 288 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के सहयोगी दलों के लिए भी किया।
3- लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद आए राज्य सरकार के बजट में माझी लाडकी बहिन सरीखी कई कल्याणकारी योजनाएं न सिर्फ घोषित की गईं, बल्कि उन्हें शीघ्र लागू करने के प्रयास भी तुरंत शुरू हो गए। इनमें सबसे प्रमुख रही लाडकी बहिन योजना के तहत राज्य में लाखों महिलाओं को चुनाव आचार संहिता के दौरान के भी 7,500 रुपए पहले ही उनके खाते में पहुंचा दिए गए। इससे महिलाओं में शिंदे सरकार के प्रति भरोसा बढ़ा। वे बड़ी संख्या में मतदान करने निकलीं, और सरकार के पक्ष में मतदान किया।
4- लोकसभा चुनाव में भाजपा को मराठा आरक्षण आंदोलन के कारण अच्छा-खासा नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार एक तरफ भाजपा के सहयोगी दल शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे ने अपने विश्वस्त साथियों के जरिए मराठा कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल के साथ अच्छा तालमेल स्थापित किया, तो दूसरी तरफ भाजपा ने अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के अपने प्रतिबद्ध मतदाताओं को जोड़ने पर ध्यान दिया। इससे महायुति मराठों का गुस्सा कम करने के साथ-साथ ओबीसी का वोट पाने में सफल रही।
5- इस बार भाजपा और साथी दलों में सीट समझौता अपेक्षाकृत जल्दी हो गया, और आपस में कोई तकरार भी सुनाई नहीं दी। जिन सीटों पर विवाद था, वहां भी भाजपा ने साथी दलों के चुनाव चिन्ह पर अपने उम्मीदवार लड़वाने की रणनीति अपनाई। जिसका फायदा भाजपा और उसके साथी दलों को भी हुआ।