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    अस्पताल में होने वाले संक्रमण का हो सकेगा इलाज, चंडीगढ़ में तैयार की जा रही दवा, प्री क्लीनिकल ट्रायल सफल

    By Sohan Lal Edited By: Sohan Lal
    Updated: Tue, 02 Dec 2025 05:11 PM (IST)

    चंडीगढ़ में अस्पताल में होने वाले संक्रमणों से निपटने के लिए वैज्ञानिक एक नई दवा विकसित करने में जुटे हैं। इस दवा का उद्देश्य अस्पताल के वातावरण में प ...और पढ़ें

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    दवा के लिए एमटेक के वैज्ञानिक डाॅ. विनोद चौधरी की टीम ने करीब छह वर्ष के शोध में लगी है।

    सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़। अस्पताल के आईसीयू में होने वाले संक्रमण रोगों का इलाज संभव हो पाएगा। आईसीयू में होने वाले संक्रमण से इंसान के शरीर में एंटी माइक्रोबाइल रजिस्टेंस (प्रतिरोध) तैयार हो जाता है जो कि सामान्य इलाज से ठीक नहीं होता।

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    विभिन्न एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक नहीं होने वाले संक्रमण के लिए चंडीगढ़ के सेक्टर-39 स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबाइल टेक्नोलाॅजी (इमटेक) की टीम एक दवा तैयार कर रही है।

    एमटेक के वैज्ञानिक डाॅ. विनोद चौधरी की टीम ने करीब छह वर्ष के शोध में लगी है। दवा का प्री क्लीनिकल ट्रायल सफल हो चुका है। अब इंसानों पर परीक्षण किया जाना है, जिसके बाद मार्केट में दवा उपलब्ध होगी।

    ज्यादा या गलत दवा खाने से भी हो सकता संक्रमण

    अभी तक दवा का शोध अस्पताल में होने वाले संक्रमण के लिए किया गया है। अस्पताल संक्रमण के अलावा एंटीबायोटिक रजिस्टेंस होने के कई कारण हैं। एक बड़ा कारण गलत या फिर जरूरत से ज्यादा प्रतिरोधक दवा खाना भी है। इंसान वायरल इंफेक्शन के समय बिना डाॅक्टर्स से जांच करवाए एंटीबायोटिक की दवा इस्तेमाल करते हैं।

    इसी प्रकार से डाॅक्टर की प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार इंसान दवा का इस्तेमाल नहीं करता जिसके कारण इंसान के शरीर में एंटीबायोटिक (प्रतिरोध) तैयार होते हैं और वह कई प्रकार की एंटीबायोटिक दवा से ठीक नहीं होते। स्थिति गंभीर होने पर जिससे इंसान की मौत तक हो जाती है। एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक मूक महामारी (साइलेंट पैडामिक) है।

    यूटीआई, सेप्सिस और निमोनिया को देखते हुए तैयार हुई दवा

    एंटीबायोटिक प्रतिरोध के शोधकर्ता टीम ने बताया कि अभी तक यह संभावना है कि यह दवा यूटीआई, सेप्सिस और निमोनिया जैसे संक्रमण को रोकने में कारगर साबित होगी। इसके बाद दूसरे संक्रमण में इस्तेमाल करने पर भी काम किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए ज्यादा शोध की जरूरत होगी।



    एंटीबायोटिक रजिस्टेंस एक बड़ी समस्या है। वैज्ञानिकों की अध्ययन के अनुसार वर्ष 2050 तक 10 मिलियन लोग इससे प्रभावित होंगे। शोध टीम ने प्रतिरोध से बचने के लिए एक प्रयास किया है जिसका प्री क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा है। जैसे ही कोई फार्मा कंपनी इसे क्लीनिकल ट्रायल करने के लिए मिलती है तो इसका इस्तेमाल इंसानों पर किया जा सकेगा। यह दवा भविष्य के लिए वरदान साबित होगी।
    -डाॅ. संजीव खोसला, निदेशक एमटेक सेक्टर-39