Tula Sankranti 2024: तुला संक्रांति पर करें इन मंत्रों का जप, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम
ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में सूर्य मजबूत रहने से जातक को करियर में मनमुताबिक सफलता मिलती है। इसके साथ ही शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। संक्रांति तिथि (Tula Sankranti 2024) पर सूर्य देव को जल का अर्घ्य देने से साधक को आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। इस दिन दान करना परम सुखदायी होता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 15 Oct 2024 02:20 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, 17 अक्टूबर को तुला संक्रांति है। सनातन धर्म में संक्रांति तिथि पर स्नान-दान और पूजा, जप-तप करने का विधान है। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में साधक गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करते हैं। इसके साथ ही सूर्य देव की उपासना करते हैं। सूर्य देव की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। ज्योतिष भी करियर को नया आयाम देने के लिए सूर्य देव की पूजा करने की सलाह देते हैं। अगर आप भी सूर्य देव (Tula Sankranti 2024) की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो तुला संक्रांति के दिन गंगाजल युक्त पानी से स्नान कर भक्ति भाव से सूर्य देव की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय इन मंत्रों का जप करें।
सूर्य मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमःॐ घृणिः सूर्याय नमःॐ ह्रीं घृणिः सूर्याय नमःॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय सहस्रकिरणाय नमःॐ भास्कराय नमःॐ हिरण्यगर्भाय नमःॐ जगद्धिताय नमःॐ खगाय नमःॐ अरुणाय नमःॐ भानवे नमःसूर्य का पौराणिक मंत्रजपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।
तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।।सूर्य वैदिक मंत्रऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।सूर्य गायत्री मंत्रऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात ।।सूर्य अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्रम्सूर्योsर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि:।
गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर:।।पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वयुश्च परायणम ।सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधोsड़्गारक एव च ।।इन्द्रो विश्वस्वान दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर:।ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वरुणो यम:।।वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैन्धनस्तेजसां पति:।धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाड़्गो वेदवाहन:।।कृतं तत्र द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय:।
कला काष्ठा मुहूर्ताश्च क्षपा यामस्तया क्षण:।।संवत्सरकरोsश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु:।पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन:।।कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद:।वरुण सागरोsशुश्च जीमूतो जीवनोsरिहा ।।भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत:।स्रष्टा संवर्तको वह्रि सर्वलोकनमस्कृत:।।अनन्त कपिलो भानु: कामद: सर्वतो मुख:।जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता ।।
मन: सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक:।धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवोsअदिते: सुत:।।द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह:।स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम ।।देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख:।चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय करुणान्वित:।।एतद वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजस:।नामाष्टकशतकं चेदं प्रोक्तमेतत स्वयंभुवा ।।