Kaal Bhairav Jayanti 2024: काल भैरव देव की पूजा करते समय करें इस कथा का पाठ, दूर होंगी सभी बाधाएं
काल भैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti 2024) का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन लोग पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि भैरव बाबा बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और अपने सभी भक्तों के कष्टों को हर लेते हैं। आज हम जानेंगे कि भगवान काल भैरव का अवतरण (Lord Shivas Fierce Avatar) कैसे हुआ? तो चलिए जानते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। काल भैरव जयंती का पर्व बहुत खास होता है। इसे भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव जी का अवतरण हुआ था। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह शुभ त्योहार मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 22 नवंबर, 2024 यानी आज मनाया जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि इस मौके (Kaal Bhairav Jayanti 2024) पर शिव जी विशेष पूजा-अर्चना करने से साधक के जीवन में खुशहाली आती है और भगवान शंकर की भी कृपा प्राप्त होती है।
शिव जी के क्रोध से हुआ काल भैरव का अवतरण (Lord Shiva's Fierce Avatar)
भगवान शिव ने सृष्टि के कल्याण के लिए कई स्वरूप धारण किए हैं, जिनकी महिमा अपार है। काल भैरव भगवान शिव का सबसे उग्र रूप माने जाते हैं। उन्हें दंडाधिपति और दंडपाणि भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं (Kaal Bhairav origin story) के अनुसार, भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को दंडित करने के लिए काल भैरव रूप धारण किया था। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्म देव को अहंकार हो गया था कि वह ब्रह्मांड को बनाने वाले हैं और इसी अभिमान के चलते उन्होंने सभी देवी-देवताओं को अपमानित करना शुरू कर दिया था। इससे महादेव क्रोधित हो गए थे और तब उन्होंने काल भैरव का रूप धारण कर लिया था।
पश्चाताप के लिए जाना पड़ा काशी
इस घटना से पहले ब्रह्मा जी के पांच सिर थे। उनके अंहकार को नष्ट करने के लिए काल भैरव जी ने ब्रह्मा देव के पांच सिरों में से एक को अपने त्रिशूल से काट दिया था। इस घटना के पश्चाताप के लिए भगवान शिव को काशी पहुंचने तक एक भिखारी के रूप में भटकना पड़ा और यहीं पर आकर काल भैरव जी को अपने पापों के बोझ से मुक्ति मिली थी।
बुराइयों को खत्म करने का था उद्देश्य
हालांकि काल भैरव का अवतरण अहंकार, अभिमान और अन्य बुराइयों को खत्म करने के लिए किया गया था, जो हर किसी के पतन का कारण बनते हैं। इस प्रकार, ब्रह्मा जी को भी अपनी गलती का एहसास हो गया था और उन्होंने इसके लिए क्षमा याचना की।
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