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Dashrath Shani Strota: शनिवार के दिन जरूर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, सभी दुखों का होगा नाश

सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि त्रेता युग में एक बार अकाल पड़ा। उस समय सूखे की विपदा से मुक्ति पाने हेतु राजा दशरथ न्याय के देवता शनि देव के पास गए। राजा दशरथ की विनती सुन शनि देव ने विपदा दूर करने का आश्वासन दिया। साथ ही वरदान मांगने को कहा। कहा जाता है कि तत्क्षण राजा दशरथ ने शनि स्तोत्र पाठ कर शनि देव को प्रसन्न किया था।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 29 Mar 2024 05:37 PM (IST)
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Dashrath Shani Strota: शनिवार के दिन जरूर करें इस चमत्कारी स्तोत्र का पाठ
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Dashrath Shani Strota: सनातन धर्म में शनिवार के दिन न्याय के देवता शनि देव की श्रद्धा भाव से पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही साधक मनोकामनाएं पूर्ण हेतु शनि देव के निमित्त व्रत रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि शनिदेव की उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और दरिद्रता दूर हो जाती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से शनि देव की पूजा करते हैं। अगर आप भी अपने जीवन में व्याप्त दुख और संकटों से निजात पाना चाहते हैं, तो शनिवार के दिन विधि-विधान से शनि देव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस चमत्कारी स्त्रोत का पाठ अवश्य करें।

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दशरथकृत शनि स्तोत्र:

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च ।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते ।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते ।

नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च ।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे ।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥

प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे ।

एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।

अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥

शनि स्तोत्र के लाभ

सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि त्रेता युग में एक बार अकाल पड़ा। उस समय सूखे की विपदा से मुक्ति पाने हेतु राजा दशरथ न्याय के देवता शनि देव के पास गए। राजा दशरथ की विनती सुन शनि देव ने विपदा दूर करने का आश्वासन दिया। साथ ही वरदान मांगने को कहा। कहा जाता है कि तत्क्षण राजा दशरथ ने शनि स्तोत्र पाठ कर शनि देव को प्रसन्न किया था। कालांतर में शनि देव की कृपा से राजा दशरथ की प्रजा को सूखे के संकट से मुक्ति मिली थी। अतः दशरथ कृत शनि स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं।

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