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Benefits Of Wearing Rudraksha: कब और कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति और क्यों ज्योतिष पहनने की देते हैं सलाह?

सनातन धर्म में सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव संग मां पार्वती की पूजा की जाती है। इसके साथ ही सोमवार का व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। ज्योतिष भी शीघ्र विवाह के लिए भगवान शिव की पूजा करने की सलाह देते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sat, 23 Nov 2024 05:41 PM (IST)
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Benefits Of Wearing Rudraksha: रुद्राक्ष पहनने के लाभ
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में त्रिदेव की विशेष पूजा की जाती है। इनमें भगवान शिव के उपासकों की संख्या सबसे अधिक है। भगवान शिव की पूजा करने वाले साधकों को शैव कहा जाता है। वहीं, भगवान विष्णु की पूजा करने वाले साधकों को वैष्णव कहा जाता है। जबकि, ब्रह्म देव की पूजा करने वाले उपासक निर्गुण विचारधारा के होते हैं। धार्मिक मत है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। विधि के विधान में भी भगवान शिव बदलाव कर सकते हैं। अतः साधक सम और विषम दोनों स्थिति में भगवान शिव की पूजा करते हैं। सोमवार का दिन भगवान शिव को अति प्रिय है। इसके लिए सोमवार के दिन भगवान शिव संग मां पार्वती की पूजा की जाती है। इसके साथ ही सोमवार का व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक पर महादेव की कृपा बरसती है। ज्योतिष दुख और संकट दूर करने के लिए रुद्राक्ष धारण करने की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई है और कब रुद्राक्ष धारण करना शुभ होता है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

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कैसे हुई रुद्राक्ष की उत्पत्ति?

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, चिरकाल में त्रिपुरासुर नामक असुर के अत्याचार से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर त्रिपुरासुर ने स्वर्ग पर अपना अधिपत्य जमा लिया था। इसके बाद सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उन्हें आपबीती सुनाई। तब देवता संग ब्रह्मा जी बैकुंठ लोक भगवान श्रीनारायण के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने उन्हें भगवान शिव से सहायता लेने की सलाह दी। सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। देवताओं को व्याकुल देख भगवान शिव बोले- आप चिंतित न हो। आप सभी की परेशानी अवश्य दूर होगी। यह कहकर भगवान शिव ध्यान में लीन हो गए। लंबे समय तक तप करने के बाद भगवान शिव ने आंखें खोलीं। उस समय भगवान शिव की आंखों से आंसू टपकने लगे। आंसू गिरने वाले स्थानों पर रुद्राक्ष के पेड़ उग गए। अतः रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसू से हुई है। रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति की सभी परेशानी दूर हो जाती है। तत्कालीन समय में भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध कर तीनों लोकों में शांति स्थापित की।

कब पहनें रुद्राक्ष

ज्योतिषियों की मानें तो सावन के महीने में रुद्राक्ष धारण करना बेहद शुभ माना जाता है। इसके अलावा, सोमवार और पूर्णिमा तिथि पर रुद्राक्ष पहनना उत्तम होता है। सावन के महीने में बिना ज्योतिषीय सलाह के किसी दिन रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। तीन मुखी वाला रुद्राक्ष धारण करना सही होता है। हालांकि, रुद्राक्ष धारण करने से पहले नजदीक के ज्योतिष से अवश्य ही संपर्क करें। इसके बाद ही रुद्राक्ष धारण करें।

रुद्राक्ष पहनने के लाभ

ज्योतिषियों की मानें तो एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से करियर को नया आयाम मिलता है। साथ ही कुंडली में सूर्य मजबूत होता है। वहीं, दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है। साथ ही शुभ कार्यों में सफलता मिलती है। जबकि, तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने से पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं। धर्म-कर्म में रूचि बढ़ती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। ज्योतिषीय सलाह लेकर आप रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।