कुंभ में साध्वी बनी 14 साल की किशोरी ने छोड़ी जिद, घर लौटकर बोली- ऐसा कदम...
प्रयागराज में पिछले वर्ष हुए कुंभ मेले के दौरान 14 वर्षीय राखी धार्मिक माहौल से प्रभावित होकर संन्यास लेकर साध्वी बन गई थी। वह तीन बार घर से निकल चुकी थी, लेकिन पुलिस की काउंसलिंग के बाद आखिरकार अपनी जिद छोड़कर वापस घर लौट आई। किशोरी ने अब तय किया है कि वह पहले अपनी पढ़ाई पूरी करेगी और उसके बाद ही भविष्य के बारे में कोई निर्णय लेगी।
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संवाद सूत्र, फतेहाबाद। प्रयागराज में बीते वर्ष आयोजित हुए कुंभ में साध्वी बनी 14 वर्ष की किशोरी ने अपनी जिद छोड़ दी है। तीन बार घर से गई किशोरी आखिरकार घर लौट आई। पुलिस ने काउंसलिंग के जरिये किशोरी को समझाकर हल निकाला। किशोरी ने कहा कि पहले वह पढ़ेगी, इसके बाद ही आगे कोई कदम उठाएगी।
डौकी की रहने वाली 14 वर्षीय राखी 28 दिसंबर 2024 को प्रयागराज कुंभ में स्नान के लिए स्वजन के साथ गई थी। धार्मिक माहौल से प्रभावित होकर संन्यास लेकर साध्वी बन गई थी। हालांकि जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि ने उसे आश्रम से निकाल दिया। किसी तरह स्वजन राखी को घर ले आए। कुछ दिन रुकने के बाद राखी घर से कहीं चली गई। किसी तरह नारी निकेतन पहुंच गई। जानकारी होने पर स्वजन पांच नवंबर को नारी निकेतन से उन्हें घर ले आए। परिवार को लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा, लेकिन आठ नवंबर को वह पुनः घर से चली गई।
स्वजन ने डौकी थाना पहुंचकर बेटी के लापता होने की जानकारी दी। तलाश में जुटी पुलिस को राखी हरियाणा के विलासपुर में स्थित कौशल किशोर आश्रम में मिली। डौकी लाकर तीन दिन तक पुलिस ने काउंसलिंग की। रविवार को राखी अपने परिवार के साथ जाने के लिए तैयार हो गई और घर लौट गई। थाना प्रभारी योगेश कुमार ने बताया कि काउंसलिंग के बाद किशोरी घर में रहने के लिए तैयार हो गई। वह स्वजन के साथ घर चली गई है।
नाबालिग होने के कारण संन्यास कराया था वापस
कुंभ में पहुंची राखी ने जूना अखाड़े के महंत कौशल गिरि के सानिध्य में साध्वी बनने का निर्णय लिया था। वहां राखी को संन्यास दिलाया गया, उन्हें साध्वी गौरी नाम दिया गया। पिंडदान की तैयारी चल रही थी, तभी जूना अखाड़ा के संरक्षक हरि गिरि महाराज ने साध्वी का संन्यास नाबालिग होने की बात कहते हुए वापस करा दिया था।
कथा सुनने के बाद जागी सनातन में रुचि
राखी ने बताया वह पढ़ लिखकर कुछ करना चाहती है। तीन साल पहले उनके गांव में कथा हुई थी। पहली बार कथा सुनने के बाद सनातन में रुचि बढ़ी और संन्यास लेने का फैसला किया। कुंभ में जाने पर वहां के भक्तिमय माहौल को देखकर साध्वी बन गई थी।

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