श्रेया को अफसर बनने से नहीं डिगा सकी मां की मौत, बेटी के कठिन तप को देख नतमस्तक हुई सफलता और बना दिया DPRO
बेटी को अफसर बनाने में दुनिया से जा चुकी मां के सपनों का साकार कर आज श्रेया उपाध्याय बलरामपुर की जिला पंचायतराज अधिकारी के पद पर तैनात हैं। श्रेया बताती हैं कि मां के सबक और सपनों ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है। मां ने ही मेरा लक्ष्य तय किया था। उनकी मृत्यु होने के बाद लक्ष्य को पाने का अचानक जुनून अपार हो गया।
अरविंद सिंह, अंबेडकरनगर। मां की मृत्यु के दो दिन बाद नौकरी के इंटरव्यू की तिथि थी। मन में अपार पीड़ा लिए श्रेया घर से बाहर कदम बढ़ाने में कांप रही थीं। तब उसी मां के सबक और सपने श्रेया का संबल बने और नौकरी का इंटरव्यू देने के लिए चलने की ताकत दी। बेटी को अफसर बनाने में दुनिया से जा चुकी मां के सपनों का साकार कर आज श्रेया उपाध्याय बलरामपुर की जिला पंचायतराज अधिकारी के पद पर तैनात हैं।
जिला मुख्यालय के गांधीनगर मोहल्ले में मोबाइल शॉप चलाने वाले घनश्याम उपाध्याय के तीन बेटों में बड़ा शुभम और शिवम के बाद इकलौती बेटी श्रेया फिर सुयश हैं। दोनों भाई निजी क्षेत्र में नौकरी करते हैं। छोटा भाई अभी पढ़ाई कर रहा है।
बचपन से होनहार श्रेया को अफसर बनाने के लिए गृहणी मां अनीता उपाध्याय ने राह दिखाना शुरू किया। हाईस्कूल में 76 प्रतिशत, इंटरमीडिएट में 86 प्रतिशत और स्नातक में 69 प्रतिशत अंक पाने के बाद श्रेया लक्ष्य भेदने के लिए प्रयागराज चल पड़ीं। माता-पिता ने बेटी का साथ दिया।
वर्ष 2017 से यूपी-पीसीएस की परीक्षा देने के लिए तैयारी आरंभ की। वर्ष 2018 से 2021 तक कई परीक्षाएं दी, लेकिन सफलता में चूक जाती थीं। कभी मुख्य और इंटरव्यू में निराशा हाथ लगती रही। हालांकि, इस दौरान मां ने असफलता की हताशा को तोड़ते हुए बेटी को हौसले के साथ आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रेरित किया।
श्रेया बताती हैं कि मां कहती थीं कि परीक्षा में असफल होने पर निराश होने के बजाए चूक की समीक्षा करके अगली तैयारी की ओर ध्यान देना चाहिए। बीती असफलता को भी सकारात्मक व ज्ञानवर्धक मानना चाहिए। वह हमेशा कहती थीं, कि मेरी बेटी अफसर बनकर रहेगी। आखिरकार वर्ष 2022 की परीक्षा में सफलता मिली। मुख्य परीक्षा पास होने के बाद 14 मार्च 2023 को इंटरव्यू की तिथि निर्धारित हुई थी।
उधर, नियति श्रेया को अथाह दर्द देकर कठिन परीक्षा लेने चल पड़ी और इंटरव्यू के दो दिन पहले 12 मार्च को मां अनीता उपाध्याय का निधन हो गया। इंटरव्यू की तैयारी मां के वियोग में बह गई। जिस मां ने बेटी को अफसर बनने का सपना देखा था, वही नहीं रह गई थी। अंदर से टूट चुकी श्रेया को स्वजन ने समझाया व मां के सपने और सबक की याद दिलाई। इसके बाद कठोर मन से श्रेया ने अपनी मां के सपनों का लक्ष्य भेदने के लिए कदम बढ़ा दिया। अथाह पीड़ा के बीच सवालों का जवाब देते हुए बेटी को देखकर सफलता नतमस्तक हो गई।
मां ने तय किया लक्ष्य
जिला पंचायतराज अधिकारी के पद पर बलरामपुर में श्रेया उपाध्याय को पहली तैनाती मिली है। वह बताती हैं कि मां के सबक तथा सपनों ने मुझे यहां तक पहुंचाया है। मां ने ही मेरा लक्ष्य तय किया था। उनकी मृत्यु होने के बाद लक्ष्य को पाने का अचानक जुनून अपार हो गया। मां-पिताजी मेरी छोटी सफलता को बड़े खुशी से मनाते थे।