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UP की इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस चार दशक से तलाश रही जीत, दिग्गज भी आजमा चुके हैं किस्मत

वर्ष 1967 के चुनाव में कांग्रेस को यहां हार का सामना करना पड़ा था लेकिन वर्ष 1971 के चुनाव में जनमत दोबारा कांग्रेस के साथ लौटा आया। वर्ष 1967 में रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया से सांसद चुने गए रामजी राम के कांग्रेस के शामिल होने के बाद दोबारा जनता ने इनपर भरोसा जताया था। कांग्रेस को यहां आखिरी जीत वर्ष 1984 में राम प्यारे सुमन के रूप में मिली थी।

By Abhishek Malviya Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Fri, 22 Mar 2024 06:32 PM (IST)
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UP की इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस चार दशक से तलाश रही जीत

अभिषेक मालवीय, अंबेडकरनगर। लोकसभा क्षेत्र के गठन के साथ पहली जीत दर्ज करने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बीते चार दशक यहां जीत भी भूमि तलाश रही है। इस बीच 11 आम चुनाव (दो उपचुनाव भी शामिल) हो चुके हैं।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां प्रत्याशी तो घोषित किया, लेकिन प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतर सका था। इस बार कांग्रेस सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। अब सपा के साथ मिलकर कांग्रेस अपनी वापसी को तलाशने में जुटी है।

वर्ष 1962 में फैजाबाद (अयोध्या) से पांच विधानसभा सीट अकबरपुर, कटेहरी, टांडा, जलालपुर व आलापुर को शामिल कर अकबरपुर सुरक्षित (वर्तमान में अंबेडकरनगर लोकसभा) सीट का गठन किया गया था। पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से पन्ना लाल सांसद चुने गए थे।

वर्ष 1967 के चुनाव में कांग्रेस को यहां हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन वर्ष 1971 के चुनाव में जनमत दोबारा कांग्रेस के साथ लौटा आया। वर्ष 1967 में रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया से सांसद चुने गए रामजी राम के कांग्रेस के शामिल होने के बाद दोबारा जनता ने इनपर भरोसा जताया था।

कांग्रेस को यहां आखिरी जीत वर्ष 1984 में राम प्यारे सुमन के रूप में मिली थी। उसके बाद से कांग्रेस यहां जीत के लिए भूमि तलाश रही है। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के राम प्यारे सुमन जनता दल के राम अवध से 85 हजार मतों से हार गए थे।

गिरता चला गया कांग्रेस का मत प्रतिशत

Bवर्ष 1989 के बाद हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का मत प्रतिशत लगातार नीचे गिरता चला गया है। वर्ष 1991 के चुनाव में कांग्रेस के राम लोचन को 43 हजार के करीब मत मिले थे। उस चुनाव में वह पांचवें स्थान पर थे। इसके बाद से ही कांग्रेस के वोटों में कमी आती गई।

दिग्गज भी आजमा चुके हैं किस्मत

यही नहीं कांग्रेस ने लोकसभा सीट पर जीत ने लिए दिग्गजों को भी चुनावी मैदान में उतारा था। वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव बसपा की अध्यक्ष मायावती के सामने अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद ने चुनाव लड़ा था।

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने यहां चुनावी जनसभा भी की, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी है। माता प्रसाद को 19,522 मत ही मिले थे, जबकि मायावती 2,59,762 मत मिले थे। चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी पांचवें स्थान थे। वर्ष 2014 में कांग्रेस के प्रदेश सचिव रहे अयोध्या जनपद के अशोक सिंह भी अपनी किस्मत लोकसभा चुनाव में आजमाई थी। वह भी 22 हजार मतों तक सिमट कर रह गए थे।

पिछले चुनाव पर्चा हुआ खारिज

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने उमेद निषाद को प्रत्याशी घोषित किया था। उन्होंने प्रचार-प्रसार करने के साथ अपना नामांकन भी दाखिल किया, लेकिन बाद वह चुनाव मैदान से पीछे हट गए। हालांकि बाद में नामांकन के बाद जांच में उनका पर्चा भी खारिज हो गया था। वहीं इस बार कांग्रेस सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। सपा ने यहां लालजी वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया। कांग्रेस उन्हीं के साथ चुनावी मैदान में चहलकदमी कर रही है।

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