Lok Sabha Election : अपने ही गढ़ में सुस्त हो रही हाथी की चाल, बसपा के मजबूत किले को भेदने में सपा और भाजपा ने झोंकी ताकत
UP Politics News बसपा के पास रितेश पांडेय के रूप में मात्र लोकसभा सीट ही बची थी लेकिन वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले वह भी बसपा के हाथ निकल गया। अब दोबारा बसपा यहां खुद को खड़ा करने की जुगत तलाश रही है। बसपा ने यहां बसखारी के मो. कलाम शाह को लोकसभा प्रभारी प्रत्याशी घोषित किया था।
अभिषेक मालवीय, अंबेडकरनगर। बसपा को अपने गढ़ में ही दुविधा आ गई है। मजबूत किले की दीवारें तो गत विधानसभा चुनाव में ही दरक गई थी। अब घोषित प्रत्याशी को बदलने और किसी कद्दावर को चुनावी मैदान में उतारने को लेकर कशमकश में है। प्रत्याशी का चयन ही उसकी सबसे बड़ी उलझन बनी है। इस बीच पुराने बसपाई भाजपा और सपा के घोषित प्रत्याशी वोट बैंक को साधने में जुटे हैं। वे पुराने घर से भी फायदे को भुनाने की जुगत में लगे हैं।
1995 में हुआ था जिला गठन
वर्ष 1995 में जिला गठन के साथ अकबरपुर सुरक्षित लोकसभा सीट ज्यादातर बसपा के कब्जे में ही चली आ रही है। बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती भी यहां लोकसभा का तीन चुनाव लड़ी और जीत दर्ज कर चुकी हैं। साथ ही तीन बार उनके नेता सदन तक पहुंचे है।राजनीतिक दृष्टि से देखें तो लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा यह हमेशा से बसपा के लिए रिजर्व रही, लेकिन वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के पहले पार्टी के कद्दावर नेता माने जाने वाले लालजी वर्मा, रामअचल राजभर, राकेश पांडेय, त्रिभुवन दत्त ने चोला बदल लिया और साइकिल पर सवार हो गए थे। यही कारण रहा कि बसपा को यहां एक भी विधानसभा सीट नहीं मिल सकी थी।
ऑडियो वायरल होने से बढ़ी परेशानी
बसपा के पास रितेश पांडेय के रूप में मात्र लोकसभा सीट ही बची थी, लेकिन वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव के ठीक पहले वह भी बसपा के हाथ निकल गया। अब दोबारा बसपा यहां खुद को खड़ा करने की जुगत तलाश रही है। बसपा ने यहां बसखारी के मो. कलाम शाह को लोकसभा प्रभारी प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन भाजपा से रितेश पांडेय और सपा से लालजी वर्मा को देख बसपा कशमकश में आ गई है।
गत दिनों बसपा प्रत्याशी कलाम शाह का आडियो वायरल होने के बाद अब यहां नया चेहरा तलाश रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती भी इस लोकसभा सीट को खोना नहीं चाहती हैं। ऐसे प्रत्याशी के चयन को लेकर दुविधा बनी है, जिससे सीट पर बसपा का कब्जा बरकरार रहे।
भाजपा और रितेश पांडेय भी अपनी जीत को दोहराना चाह रहे हैं। इसीलिए वह वोट बैंक को अपने पाले में लाने की मुहिम छेड़ दी है। सपा प्रत्याशी लालजी वर्मा भी कांग्रेस का समर्थन पाने के बाद वह भी पिछले दल के जरिए भी वोट बैंक साध रहे हैं। अब कहां तक खुद को साबित करेगी यह तो आगामी चार जून मतगणना के साथ ही साफ होगा।
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