Bareilly Road Safety : Accident के बाद ट्रामासेंटर और एंबुलेंस के इंतजार में ही बीत जाता है Golden Hour
Bareilly Road Safety बरेली में एक्सीडेंट के बाद ट्रामासेंटर और एंबुलेंस के इंतजार में ही गोल्डन आवर बीत जाता है।तब तक घायल या पीड़ित के शरीर से खून इतना बह जाता है कि उसे बचाना मुश्किल हो जाता हैं।

बरेली, जागरण संवाददाता। Bareilly Road Safty : बरेली 31 मई की सुबह, मरीज व तीमारदारों के लेकर जिला अस्पताल की ओर आ रही एंबुलेंस। अचानक चालक मेंहदी हसन को झपकी आई और एंबुलेंस सामने मिनी ट्रक में जा घुसी। सात लोग लहूलुहान हो गए। कोई दूसरी एंबुलेंस वहां नहीं पहुंच पाई। गोल्डन आवर भी पूरा हो गया।
हादसे में खुर्शीद, उनकी पत्नी समीरन बेगम, बेटे आरिफ, बहन सगीर बानों, भतीजे मोहम्मद जफर, साली नसरीन व एंबुलेंस चालक मेंहदी हसन की माैत हो गई। यह महज एक उदाहरण मात्र है।
बरेली की सड़कों पर होने वाले आए दिन के हादसों में इसी तरह लोग जान गवां रहे हैं। वजह, यहां सरकारी विभाग के पास कोई ट्रामा सेंटर नहीं और ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज की सुविधा भी नहीं है। शहर आते-आते खून इतना बह जाता है कि मरीज की सांसे थम जाती हैं।
जागरण की टीम ने 311 किलोमीटर सड़क पर सुरक्षा का हाल देखा तो इलाज की बड़ी कमी पाई। सिर्फ एक जगह एंबुलेंस खड़ी मिली। प्राइवेट अस्पतालों की एंबुलेंस जरूर सड़कों पर मरीजों को झपटने को खड़ी दिखाई दीं।
सीएचसी-पीएचसी केवल रेफरल सेंटर
नियमानुसार सीएचसी तो 24 घंटे और पीएचसी को सुबह 10 से चार बजे तक खुले रहने का प्रावधान हैं। अधिकारियों के दावों की पड़ताल करने पर पता चलता है कि अधिकांश सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) पर डाक्टरों की कमी के चलते पूरी सुविधाएं नहीं मिलती हैं।
वहां संसाधनों की भी कमी है। हादसे के बाद यहां पर पहुंचने वाला मरीज को अधिकतर रेफर ही किया कर दिया जाता है। जिले के सीएचसी पीएचसी तो महज एक रेफरल सेंटर ही हैं। सीएमओ डा. बलवीर सिंह ने बताया कि जिले में कुल 76 सीएचसी पीएचसी हैं। इसमें से 16 सीएचसी एवं 50 पीएचसी हैं। इसी के साथ 208 हेल्थ एवं वेलनेंस सेंटर हैं।
क्या होता है गोल्डन आवर
एसीएमओ डा. हरपाल सिंह बताते हैं कि हादसा होने के बाद अगले एक घंटे के अंदर मरीज को सही इलाज मिल जाए तो उसकी जान बचने की उम्मीद काफी ज्यादा हो जाती है। हादसे के बाद के पहले एक घंटे को ही गोल्डन आवर कहा जाता है। डा. हरपाल बतातें है कि दुर्घटना में घायल होने के बाद कई बार घायल के शरीर से काफी ज्यादा खून बह जाता है।
जान बचाने के लिए खून को रोकना काफी जरूरी हो जाता है। वहीं कुछ मामलों में हादसे के बाद कुछ लोगों को शाक लग जाता है। ऐसी स्थिति में हार्ट अटैक आने का खतरा ज्यादा हो जाता है। हार्ट अटैक के दौरान रक्त संचार अवरुद्ध होने से भी हृदय की गति प्रभावित होकर बिगड़ जाती है। इस स्थिति में अगले कुछ मिनट का समय बेहद कीमती होता है। इसलिए हादसे के बाद के एक घंटे को गोल्डन आवर कहा गया है।
घायलों को झपटने में तेज हैं प्राइवेट एंबुलेंस चालक
जिले में तमाम ऐसे निजी अस्पताल हैं, जिनकी एंबुलेंस सड़कों पर खड़ी रहती है। वह राहगीरों पर गिद्ध नजरें जमाए रहते हैं। अगर कही हादसा हुआ तो तुरंत ही घायलों को झपटने को दौड़ पड़ते हैं। फिर वह घायलों को उसी अस्पताल में पहुंचाते हैं, जहां से उन्हें अधिक कमीशन मिलता है।
चाहे रास्ते में पहले कितने भी अच्छे अस्पताल हों, वह घायलों को वहां नहीं ले जाते। इससे कई बार घायलों की जान बचाने का गोल्डन आवर भी निकल जाता है।
एक भी एंबुलेंस नहीं करती पेट्रोलिंग
कहने को तो जिले में कुल 88 एंबुलेंस हैं। जिसमें से 43 एंबुलेंस 108, 43 एंबुलेंस 102 और दो एडवांस लाइफ सपोर्ट एएलएस हैं। लेकिन एक भी एंबुलेंस पेट्रोलिंग नहीं करती है। एंबुलेंस कंपनी के प्रोग्राम मैनेजर विष्णु कुमार यादव ने बताया कि जिले में कुल 43 हाटस्पाट बने हैं जहां पर एंबुलेंस के लिए खड़ा किया जाता है।
लेकिन पेट्रोलिंग एक भी एंबुलेंस नहीं करती है। विष्णु कुमार का कहना है कि काल होने पर लखनऊ से ही सीधे पास की एंबुलेंस को मरीज के पास तक भेज दिया जाता है।
जिला अस्पताल में बन रहा है ट्रामा सेंटर
स्वास्थ्य विभाग का जिले में एक भी ट्रामा सेंटर नहीं हैं। सीएमओ डा. बलवीर सिंह ने बताया कि जिले में अभी तक तो कोई भी ट्रामा सेंटर नहीं है, लेकिन जिला अस्पताल के टीबी वार्ड की ओर एक ट्रामा सेंटर बनाया जा रहा है। लेकिन यह ट्रामा सेंटर कब तक पूरा हो सकेगा। इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है।
एक नजर में आंकड़े
कुल सीएचसी : 16
कुल पीएचसी : 50
हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर : 208
108 एंबुलेंस : 43
102 एंबुलेंस : 43एएलएस : 02

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।