कोर्ट ने खारिज की मुठभेड़ की कहानी, अब 3 पुलिसकर्मियों पर होगी FIR, SP को 15 दिन में जांच के आदेश
उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने एक पुलिस मुठभेड़ की कहानी को झूठा बताते हुए तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। अदालत ने पुलिस अधीक्षक को 15 दिनों के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया है। अदालत ने पाया कि पुलिसकर्मियों ने झूठी कहानी बनाकर एक निर्दोष व्यक्ति को फंसाने की कोशिश की। पुलिसकर्मियों पर झूठी गवाही देने और सबूत गढ़ने के आरोप हैं।

विधि संवाददाता, देवरिया। दारोगा की पिस्टल छीनकर पुलिसकर्मियों पर फायर करते हुए अभिरक्षा से भागने का प्रयास करने वाले गोतस्करी के आरोपित को मुठभेड़ में गोली लगने की कहानी कोर्ट में खारिज हो गई। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मंजू कुमारी की कोर्ट ने गुरुवार को आरोपित दिलीप सोनकर का रिमांड निरस्त कर दिया। सीजेएम ने थानाध्यक्ष बनकटा गोरखनाथ सरोज के विधिक ज्ञान पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए एसपी देवरिया को 15 दिन के भीतर मामले की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।
न्यायालय ने एसआइ सुशांत पाठक, हेड कांस्टेबल राजेश कुमार व कांस्टेबल सज्जन चौहान को पदीय शक्तियों का दुरुपयोग करने का आरोपित मानते हुए उनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर 48 घंटे के भीतर सूचित करने तथा एसआइ की पिस्टल को बैलिस्टिक जांच के लिए फारेंसिक लैब भेजने का भी आदेश दिया है। बनकटा थाने के उप निरीक्षक जयप्रकाश दुबे ने दिलीप सोनकर को गुरुवार सुबह सीजेएम कोर्ट में पेश किया।
लूट, चोरी की संपत्ति रखने, लोक सेवक पर हमला करने, हत्या के प्रयास व आर्म्स एक्ट के मुकदमे में पुलिस ने उसकी रिमांड मांगी। प्रपत्रों के अवलोकन में सीजेएम ने पाया कि अभियुक्त 12 नवंबर 2025 को पशु क्रूरता अधिनियम में गिरफ्तार होकर थाने की हवालात में बंद था। पेट दर्द की शिकायत पर उसे उप निरीक्षक सुशांत पाठक, हेड कांस्टेबल राजेश कुमार और कांस्टेबल सज्जन चौहान अस्पताल ले जा रहे थे। रास्ते में उसने शौच का बहाना बनाकर पुलिसकर्मी की पिस्तौल छीनकर भागने की कोशिश की। आधे घंटे बाद तलाशी में वह झाड़ियों में छिपा मिला। इस दौरान उसने पुलिस पर फायर झोंक दिया। जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने उसके पैर में गोली मार दी।
गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज
थानाध्यक्ष गोरखनाथ सरोज की तहरीर पर अभियुक्त के खिलाफ हत्या के प्रयास, लूट और अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर सीजेएम मंजू कुमारी ने पाया कि थानाध्यक्ष गोरखनाथ सरोज ने विधि की मूल समझ के विपरीत घटना को लूट की संज्ञा देते हुए गंभीर धाराओं में गलत तरीके से मुकदमा दर्ज किया है। न्यायालय ने आदेश में कहा कि अभियुक्त के पैर में गोली लगने पर उसी पिस्टल के बरामद होने पर लूट तथा बरामदगी अर्थात धारा-309 (4) तथा धारा-317 (2) बीएनएस का अभियोग अन्य धाराओं के साथ लगाया गया है, जबकि घटनाक्रम में स्पष्ट रूप से लूट की कोई घटना ही नहीं घटित हुई है।
अभियुक्त पर पुलिस से छीनी हुई पिस्टल से ही पुलिस वालों पर एक फायर करना बताया गया है। कहा गया है कि उक्त फायर घटनास्थल पर मौजूद कई पुलिसकर्मियों में से किसी को भी सौभाग्य से नहीं लगा और न ही घटनास्थल पर अंधेरा होने व झाड़ियां होने के कारण खाली कारतूस बरामद किया जा सका। ऐसे में प्रथम दृष्टया अभियुक्त द्वारा हत्या के प्रयास का अपराध किया जाना भी नहीं पाया जाता।
मान भी लिया जाए कि अभियुक्त ने एसआइ सुशांत पाठक की अभिरक्षा से निकलकर भागते समय पिस्टल छीन ली तो भी धारा- 7 आयुध अधिनियम की परिभाषा के दायरे में नहीं आता। इस अपराध के दृष्टिगत प्रथम दृष्टया मात्र धारा-28 आयुध अधिनियम के प्रविधान के तहत कार्रवाई हो सकती है। भारतीय न्याय संहिता की जिन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है, उनके आवश्यक तत्व ही प्रथम सूचना रिपोर्ट में अंकित नहीं हैं।

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