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गर्भवती को मधुमेह होने से बच्‍चे की जान को खतरा, ऐसे करें बचाव

मधुमेह से पीड़ित गर्भवती मह‍िलाओं के नवजात की जान को खतरा रहता है। गर्भवती को भी कई तरह की परेशानियां हो जाती हैं। सामान्य प्रसव की संभावना कम हो जाती है। ज्यादातर मामलों में आपरेशन से प्रसव कराना पड़ता है। प्रसव के बाद इन्फेक्शन के खतरे बढ़ जाते हैं।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Mon, 15 Nov 2021 03:09 PM (IST)
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मधुमेह से पीड़ित मह‍िलाओं को गर्भवास्‍था में काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। मधुमेह एक जटिल बीमारी है। यदि गर्भवती को हो गई तो बच्‍चे की जान को खतरा रहता है। गर्भवती को भी कई तरह की परेशानियां हो जाती हैं। सामान्य प्रसव की संभावना कम हो जाती है। ज्यादातर मामलों में आपरेशन से प्रसव कराना पड़ता है। प्रसव के बाद अधिक रक्तस्राव व इन्फेक्शन के खतरे बढ़ जाते हैं। ब्लड प्रेशर बढ़ जाने से झटके आने की आशंका होती है।

समय-समय पर जांच मुश्किलों से बचाएगी

यह बातें इंडियन सोसाइटी आफ पेरिनेटोलाजी एंड रिप्रोडक्टिव बायोलाजी (आइएसओपीएआरबी) व गोरखपुर आब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलाजिकल सोसाइटी (जीओजीएस) के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय सेमिनार के अंतिम दिन स्त्री रोग विशेषज्ञों ने कही। सेमिनार मोहद्दीपुर स्थित एक होटल में आयोजित था। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था की शुरुआत में कुछ जांच करने से यह पता लग सकता है कि इस गर्भवती को बाद में अधिक रक्तचाप होने की संभावना है या नहीं। अगर इन जांचों में महिला हाई रिस्क में आती है तो इकोस्प्रिन दवा पहले ही दे दी जाती है, ताकि ब्लड प्रेशर न बढ़े। क्योंकि ब्लड प्रेशर बढऩे से मां और बच्‍चा दोनों की जान को खतरा रहता है।

इन्‍होंने रखे व‍िचार

सेमिनार को डा. विनीता दास, डा. प्रशांत नायक, डा. मीना, डा. तपन व डा. गिरिजा, डा. अंजनी अपन, डा. अलका मुखर्जी, डा. संपत कुमारी, डा. सविता, डा. सरिता अग्रवाल, डा. किरण पांडेय, डा. अरुल कुमारन, डा. पीसी महापात्रा, डा. मंदाकिनी मेघ, डा. सुरेश, डा. मुरलीधर पाई, डा. साधना गुप्ता व डा. अमित त्रिपाठी ने संबोधित किया। संचालन डा. बबीता शुक्ला ने किया। इस अवसर पर डा. राधा जीना, डा. दीप्ति चतुर्वेदी, डा. अरुणा छापडिय़ा, डा. राजेश गुप्ता, डा. सुनील कमानी, डा. मधुबाला, डा. रीता ङ्क्षसह व डा. अनुभव गुप्ता आदि उपस्थित थे।

प्रस्तुत किए गए शोध पत्र व निबंध

स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों ने शोध पत्र व निबंध प्रस्तुत किया। शोध पत्र में डा. ऋचा शर्मा को प्रथम, डा. मोनिका अग्रवाल को द्वितीय व डा. वंदना सोलंकी को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। निबंध में डा. संगीता मेहरोत्रा को प्रथम, डा. रीता स‍िंह को द्वितीय व डा. सपना ङ्क्षसह को तृतीय स्थान हासिल हुआ।

गर्भावस्था में खून की कमी होना बहुत आम बात है। यदि महिलाओं के खानपान का विशेष ध्यान नहीं रखा गया तो गर्भावस्था में आने पर उनको खून की कमी हो जाती है। जिसकी वजह से मां को कई तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ता है और इसका प्रभाव ब'चे के विकास पर भी पड़ता है। - डा. रीना श्रीवास्तव, पूर्व अध्यक्ष, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, बीआरडी मेडिकल कालेज।

गर्भावस्था में समय-समय पर खून की जांच कराते रहने की जरूरत है। ताकि समय पर खून की कमी का पता चल सके। इस दौरान कई तरह के वायरल व बैक्टीरियल इन्फेक्शन भी हो सकते हैं। इसकी वजह से ब'चे की पेट में मौत हो जाती है। समय से जांच पर इन समस्याओं से बचा जा सकता है। - डा. मीनाक्षी गुप्ता, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ।

गर्भावस्था में किसी भी तरह का इंफेक्शन होने पर बच्‍चों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में पैदा होने के बाद ब'चे बहरे, अंधे हो सकते हैं। उनका मानसिक विकास अवरुद्ध हो सकता है। झटका आ सकता है। लिवर व किडनी की बीमारी हो सकती है। पेट में ही उनकी मौत हो सकती है। - डा. अमृता जयपुरियार, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ।

कभी-कभी यह देखा गया है कि किसी महिला का बार-बार गर्भपात हो जाता है। इसके कई कारण होते हैं जैसे क्रोमोसोमल, इंफेक्शन, ब'चेदानी में कुछ कमी, डायबिटीज, थायराइड या अपला ङ्क्षसड्रोम आदि। ज्यादातर मध्यम वर्ग की महिलाएं गभीर होती हैं। इसलिए सभी की शुरुआत में ही अल्ट्रासाउंड जांच जरूरी है। - डा. रंजना बागची, स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ।

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