रामायण और महाभारत को अक्सर केवल अतीत का दस्तावेजीकरण माना जाता है लेकिन क्या यह सच है? जानिए कैसे ये ग्रंथ हमारे जीवन के लिए सबक देते हैं और धर्म को परिभाषित करते हैं। अमी गणात्रा और विजय मनोहर तिवारी के साथ एक विशेष चर्चा में हम हिंदू धर्म पर विजय और वीर सावरकर के राष्ट्रवाद के बारे में भी बात करेंगे।
विकास मिश्र, लखनऊ। साहित्य को दायरे में नहीं बांधा जा सकता। इसमें सभी का समावेश है। जितना वैविध्य होगा, कहानी उतनी पसंद की जाएगी। अंत:करण को जोड़ने वाले विषय ही पसंद किए जाते हैं। विषय चयन का यह मजबूत आधार है।
किताबों के विषय से लेकर हिंदी में साहित्य की परिभाषा और लेखन में धर्म-अध्यात्म को जगह देने समेत प्रकाशन तक के सफर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में आयोजित जागरण संवादी के विशेष सत्र ‘जागरण हिंदी बेस्टसेलर’ में खुलकर चर्चा हुई। इस बार बेस्टसेलर में हिंदुओं का हश्र, महाभारत का अनावरण और वीर सावरकर को शामिल किया गया।
संचालन कर रहे लेखक नवीन चौधरी ने रामायण का अनावरण और महाभारत का अनावरण जैसी रचनाओं के जरिए पाठकों में अलग पहचान बना चुकीं अमी गणात्रा से धर्म की परिभाषा के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, महाभारत को धर्मशास्त्र कहा जाता है। जरा सोचिए, महाभारत में क्या है। पारिवारिक कलह है, लेकिन फिर भी धर्मशास्त्र मानते हैं।
श्रीकृष्ण कहते हैं, क्योंकि वह धारण करता है, इसलिए उसे धर्म कहा जाता है। महाभारत के विषय में यह भी कहा जाता है कि ‘जो इसमें है वह आपको संसार में कहीं न कहीं अवश्य मिल जाएगा और जो इसमें नहीं है वह संसार में आपको अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा।’ महाभारत हमें न केवल बाहरी, बल्कि भीतरी शत्रुओं से भी सावधान करता है।
अमी कहती हैं, हमारे ऋषियों ने रामायण और महाभारत को इतिहास कहा है और मेरा मानना है कि वे सही हैं। हमारे पास विभिन्न प्रकारों, श्रुति, स्मृति और साहित्य का एक बहुत ही जटिल वर्गीकरण है। इसलिए वे स्पष्ट रूप से जानते थे। इतिहास वह है जो अतीत में घटी किसी घटना पर आधारित है, कथा के रूप में वर्णित है और इसका उद्देश्य चार पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का निर्देश देना है, ताकि एक फलदायी जीवन जिया जा सके।
इस अर्थ में, इतिहास केवल अतीत का दस्तावेजीकरण कतई नहीं है, बल्कि अतीत में जो कुछ हुआ, उसकी एक टिप्पणी है जिसमें हमारे अपने जीवन के लिए सबक हैं। इसको ठीक से समझने की जरूरत है।
तुर्क मुसलमानों ने हिंदुओं की बेटियों को मंडी में बेचा
वहीं, हिंदू धर्म पर विजय मनोहर तिवारी ने खुलकर बात की। उन्होंने कहा, इस्लाम के बलपूर्वक विस्तार की घातक प्रवृत्तियों की गहरी पड़ताल हमारे लिए घायल अतीत की ह्रदय विदारक यात्रा के कटु अनुभव जैसी है। लाहौर और दिल्ली पर तुर्क मुसलमानों के कब्जे के बाद बाकी भारत ने सदियों तक क्या कुछ भोगा-भुगता है, इसके बारे में इतिहास की किताबों में परदा डालकर रखा गया।
भारत में इस्लाम की इस रोंगटे खड़े कर देने वाली शृंखला में वही सत्य उजागर किया गया है, जो बीते आठ सौ वर्षों के दौरान समकालीन मुस्लिम लेखकों ने दस्तावेजों में दर्ज किया। आलिमों और सूफियों ने कैसे हिंदुओं के कठोर दमन के दिशा-निर्देश तैयार किए थे। बदकिस्मती से आजाद भारत के इतिहासकारों ने भारत में इस्लाम के फैलाव की इस घृणित सच्चाई को छुपाकर रखा।
मध्यकाल के इतिहास में सल्तनत और मुगलकाल जैसे कोई कालखंड नहीं हैं। वह अपने समय के दुर्दांत आतंकियों और अपराधियों का इतिहास है, जो दिल्ली को अपना अड्डा बनाकर बैठ गए थे। दिल्ली की मंडी में लड़कियों के रेट लगाए जाते थे और उन्हें बेचा जाता था।इब्न-बतूता खुद दिल्ली की मंडी में 12-15 साल की बच्चियों की खरीद-फरोक्त करता था। मतांतरण कराने वाले लोगों के लिए आप सिर्फ काफिर हैं। भारत में धर्म की तबाही सौ वर्षों तक हुई, इसके बाद भी अगर हम-आप जैसे लोग बचे हैं तो यह किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं है।
वीर सावरकर भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा के पितामह थे
नवीन चौधरी ने वीर सावरकर को मुस्लिम विरोधी सवाल पर लेखक व इतिहासकार उदय माहूरकर ने कहा, वीर सावरकर भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा के पितामह थे। उनकी छवि को निरंतर धूमिल करने के प्रयास इसलिए किए जाते हैं, क्योंकि भारत की एकता, अखंडता व सुरक्षा के विरुद्ध सक्रिय ताकतें नहीं चाहती हैं कि वीर सावरकर की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति सोच जन-जन तक पहुंचे। सावरकर राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के विद्वान थे और उन्होंने पड़ोसी मुल्कों से सुरक्षा के लिए आवश्यक सैन्य शक्ति के विकास की बात बहुत पहले ही कर दी थी।
उन्होंने उत्तर-पूर्व में घुसपैठ के खतरे की भविष्यवाणी 1940 में, चीन से खतरे की भविष्यवाणी 1952 में ही कर दी थी। इसकी ओर ध्यान न देने के परिणामस्वरूप हमें चीन से हारना पड़ा। सावरकर सदैव देश के आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ होने के साथ सैन्य शक्ति के मोर्चे पर भी मजबूती के पक्षधर थे। कुछ लोग वीर सावरकर पर आक्षेप लगाते हैं कि वह भारत के विभाजन के पक्षधर थे, जबकि सच्चाई यह है कि सावरकर सदैव अखंड भारत के पक्षधर रहे।
सावरकर की दूरदर्शिता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में हिंदुओं को सैन्य प्रशिक्षण के लिए प्रेरित किया और इसके पीछे का कारण था कि वह विभाजन के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच पैदा होने वाले हालात को पहले ही भांप चुके थे। सावरकर किसी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं थे, बल्कि सभी धर्मों को स्वीकार करते हुए राष्ट्रवादी विचारधारा के पक्षधर थे।
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