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Karhal एक बार फिर से सपा के हिस्से, तेज प्रताप ने फूफा अनुजेश को दी मात; 5 प्वॉइंट्स में समझिए जीत के कारण

Karhal By Election Result 2024 मैनपुरी के करहल विधानसभा सीट पर सपा के तेज प्रताप यादव ने जीत हासिल कर ली है। उन्होंने अपने फूफा अनुजेश यादव को कड़ी टक्कर दी। करहल सीट पर तेज प्रताप यादव के जीत के कई कारण हैं। भाजपा द्वारा यादव प्रत्याशी उतारे जाने के बाद भी सपा के तेज प्रताप का ही जादू चला। तेज प्रताप की जीत के कारण कुछ प्वॉइंट्स में समझिये...

By Sakshi Gupta Edited By: Sakshi Gupta Updated: Sat, 23 Nov 2024 03:22 PM (IST)
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तेज प्रताप यादव ने करहल सीट पर जीत हासिल की है। (तस्वीर जागरण)
 डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। (Karhal By Election Result 2024) मैनपुरी के करहल सीट को उसका नया किंग मिल गया है। सपा के तेज प्रताप यादव ने भाजपा के अनुजेश यादव को 14,704 मतों से हरा दिया है। ये मुकाबला काफी दिलचस्प रहा। बता दें कि करहल विधानसभा सीट सबसे हॉट रही। हो भी क्यों ना, इस सीट पर मेन फाइट फूफा और भतीजे के बीच था। ये सीट सपा का गढ़ मानी जाती है, लेकिन भाजपा ने इस सीट पर यादव कैंडिडेट अनुजेश यादव को उतारकर मुकाबले को और भी दिलचस्प कर दिया था। हालांकि भाजपा के अनुजेश का जादू चल नहीं पाया और सपा के तेज प्रताप यादव ने 14,704 मतों से जीत हासिल की।

ये सीट इसलिए भी हॉट थी, क्योंकि इस पर मुलायम सिंह यादव के दामाद अनुजेश और लालू यादव के दामाद तेज प्रताप यादव आमने-सामने थे। सपा ने तो जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन यह वही सीट है, जहां भाजपा ने भी अपनी पूरी ताकत झोंकी थी। करहल विधानसभा उपचुनाव के लिए भाजपा ने डिप्टी सीएम बृजेश पाठक को प्रभारी बनाया था। उनके साथ पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह, उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय और राज्य मंत्री अजीत पाल सिंह को कमान सौंपी थी।

बावजूद इसके तेज प्रताप यादव ने अपने फूफा को पटकनी दे दी और एक बार फिर से करहल की सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से आई।

आइये पांच प्वॉइंट में जानते हैं, सपा के तेज प्रताप यादव की जीत के कारण-

यादव परिवार की परंपरागत सीट रही है करहल

मैनपुरी की करहल सीट समाजवादी पार्टी के दबदबे वाली सीट मानी जाती है। ये सीट सपा का गढ़ मानी जाती है। इस सीट को यादव लैंड के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि करहल में लोग किसी पार्टी के प्रत्याशी नहीं, बल्कि सपा के नाम पर वोट देते हैं। हालांकि भाजपा ने यादव चेहरा अनुजेश यादव लाकर वोटों में सेंध लगाने की खूब कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। क्योंकि ये धरती नेताजी के नाम से ही जानी जाती है।

सही मायनों के 1957 के चुनाव में करहल सीट अस्तित्व में आई। उससे पहले देश के पहले विधानसभा चुनाव के दौरान 1952 में करहल वेस्ट कम शिकोहाबाद नाम से विधानसभा क्षेत्र का सृजन किया गया था। इसमें शिकोहाबाद का बड़ा हिस्सा शामिल था। उस चुनाव में केएमपीपी के बंशीदास धनगर ने जीत हासिल की थी। 1957 में करहल स्वतंत्र रूप से विधानसभा सीट बनी, तो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े नत्थू सिंह ने जीत हासिल की थी। इसके बाद सीट सुरक्षित कर दी गई, जो वर्ष 1974 में सामान्य हुई।

सीट सामान्य होने पर नत्थू सिंह ने बीकेडी से भाग्य आजमाया और जनता ने उनको जीत दिलाई। 2002 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर लड़े सोबरन सिंह यादव विजेता रहे। इसके बाद सोबरन सिंह यादव सपा में शामिल हो गए। 2007, 2012 व 2017 के चुनाव में भी उनको जीत मिली। यहां पर हमेशा पीडीए का ही जादू चलता रहा है।

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सात विधानसभा चुनावों में सपा 6 बार जीती, भाजपा सिर्फ एक बार

बता दें कि भाजपा ने दूसरी बार यादव चेहरे पर दांव लगाया था। इससे पहले साल 2002 में भाजपा ने सोबरन सिंह को मैदान में उतारा था और वो जीत भी गए थे। हालांकि बाद में वे सपा में शामिल हो गए। सोबरन सिंह इसी सीट से चार बार विधायक रहे। 1993 और 1996 में बाबूराम यादव विधायक बने थे। फिर साल 2022 में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपना पहला विधानसभा चुनाव इसी सीट पर लड़ा था और जीत भी गए थे। बाद में लोकसभा चुनाव 2024 में कन्नौज की सीट से सांसद चुने जाने के बाद अखिलेश ने ये सीट छोड़ दी। कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी इस सीट पर 6 बार विधानसभा चुनाव जीती है। साल 1993 से लेकर 2022 तक सिर्फ सपा का ही राज रहा। अखिलेश के सीट खाली करने पर उपचुनाव में अखिलेश की विरासत संभालने के लिए सपा ने पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को प्रत्याशी बनाया था।

जातीय समीकरण भी जीत का रहा बड़ा कारण

करहल सीट पर कुल मतदाता 3 लाख 80 हजार हैं। जिसमें यादव मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, जो सवा लाख के करीब मानी जाती है। इसके बाद दूसरे नंबर शाक्य मतदाता आते हैं, जिनकी संख्या 40 हजार के आसपास मानी जाती है। क्षत्रिय और जाटव मतदाता 30-30 हजार हैं। पाल-धनगर मतदाताओं की संख्या 30 से 35 हजार के बीच मानी जाती है। ब्राह्मण और मुसलमान मतदाता 15-15 हजार बताए जाते हैं। कठेरिया समाज और लोधी समाज के मतदाता 18-18 हजार के आसपास बताई जाती है।

अब चूंकि करहल की सीट यादव बाहुल्य है, इसलिए ये पूरा मुकाबला काफी दिलचस्प रहा। क्योंकि यहां भाजपा और सपा नहीं, बल्कि यादव बनाम यादव की लड़ाई थी।

नेताजी के नाम पर तेज प्रताप को मिली जीत

करहल विधानसभा उपचुनाव में सपा और भाजपा के प्रत्याशियों के साथ एक और दिलचस्प बात जुड़ी है। भाजपा के अनुजेश यादव स्व. मुलायम सिंह यादव के भाई अभयराम के दामाद हैं। उनको मुलायम सिंह के दामाद के रूप में भी पहचाना जाता है। वहीं सपा के तेजप्रताप यादव बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के दामाद हैं। एक मत ये भी है कि ये धरती नेताजी के नाम से जानी जाती है और यहां के लोग नेताजी के नाम पर ही वोट देते हैं। तेज प्रताप यादव के जीतने का एक कारण ये भी है कि करहल और मैनपुरी की जनता नेताजी को ही मानती है, इसलिए उनके पोते तेज प्रताप यादव को भारी मतों से जिताया। इसके इतर, सपा ने इस यादव बनाम यादव की लड़ाई में पूरी ताकत झोंकी थी।

सपा अध्यक्ष ने संभाल रखी थी कमान

करहल सीट पर अपने भतीजे तेज प्रताप यादव को मैदान में उतारने के बाद मुखिया अखिलेश यादव ने कमान संभाल रखी थी। यादव समुदाय के वोट तो सपा के पक्ष में पहले से ही थे, लेकिन सपा ने शाक्य समुदाय की तर्ज पर पाल समुदाय के वोटों को भी साधने के लिए शुरुआती दौर से प्रदेश अध्यक्ष श्याम पाल को लगाया था। इसके अलावा, लोध समुदाय के वोटों को साधने के लिए हमीरपुर सपा सांसद अजेंद्र सिंह राजपूत को प्रचार प्रसार में जोरों से लगाया था। इतना ही नहीं, सपा ठाकुर, ब्राह्मण और दलित वोटों को भी अपने पक्ष में करने के लिए जी जान से जुटी थी।

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